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शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

एक रचना:
दस दिशा में चलें छंद-सिक्के खरे..
--- संजीव 'सलिल'
*
नील नभ नित धरा पर बिखेरे सतत, पूर्णिमा रात में शुभ धवल चाँदनी.
अनगिनत रश्मियाँ बन कलम रच रहीं, देख इंगित नचे काव्य की कामिनी..

चुप निशानाथ राकेश तारापति, धड़कनों की तरह रश्मियों में बसा.
भाव, रस, बिम्ब, लय, कथ्य पंचामृतों का किरण-पुंज ले कवि हृदय है हँसा..

नव चमक, नव दमक देख दुनिया कहे, नीरजा-छवि अनूठी दिखा आरसी.
बिम्ब बिम्बित सलिल-धार में हँस रहा, दीप्ति -रेखा अचल शुभ महीपाल की..

श्री, कमल, शुक्ल सँग अंजुरी में सुमन, शार्दूला विजय मानोशी ने लिये.
घूँट संतोष के पी खलिश मौन हैं, साथ सज्जन के लाये हैं आतिश दिये..

शब्द आराधना पंथ पर भुज भरे, कंठ मिलते रहे हैं अलंकार नत.
गूँजती है सृजन की अनूपा ध्वनि, सुन प्रतापी का होता है जयकार शत..

अक्षरा दीप की मालिका शाश्वती, शक्ति श्री शारदा की त्रिवेणी बने.
साथ तम के समर घोर कर भोर में, उत्सवी शामियाना उषा का तने..

चहचहा-गुनगुना नर्मदा नेह की, नाद कलकल करे तीर हों फिर हरे.
खोटे सिक्के हटें काव्य बाज़ार से, दस दिशा में चलें छंद-सिक्के खरे..

वर्मदा शर्मदा कर्मदा धर्मदा, काव्य कह लेखनी धन्यता पा सके.
श्याम घन में झलक देख घनश्याम की, रासलीला-कथा साधिका गा सके..

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

achal verma ✆ मुझे ने कहा…

गूंथे इतने सरस शब्द में इतने सारे नाम
हे कवि धन्य आप हैं अपने धन्य आपके काम
विविध भाँति के काव्य रचे जा रहे आप अविराम
हम सब कितने किस्मतवाले साथ पुन्य के धाम
Achal Verma

- drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

आपकी सृजन -धर्मिता को नमन !

- ksantosh_45@yahoo.co.in ने कहा…

आ० सलिल जी
वाह, वाह।
छंद के ये सिक्के चलेंगे,चलेंगे।
कृपा करती रहेगी स्वमं अक्षरा,
शब्द सारे फलेंगे,फलेंगे,फलेंगे।।
छंद के ये सिक्के चलेंगे,चलेंगे।
सन्तोष कुमार सिंह

dks poet ✆ ekavita ने कहा…

आदरणीय सलिल जी,
एक बार को ऐसा लगा जैसे राकेश जी की कोई रचना पढ़ रहा हूँ। सुंदर रचना हेतु साधुवाद स्वीकार करें
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’