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शनिवार, 15 मई 2021

चित्र पर रचना


चित्र-चित्रण-६३,
सुप्रभात मित्रों ! 
आज का चित्र भारतवर्ष के ग्रामीण परिवेश पर आधारित है ! आज यद्यपि भारतवर्ष बहुत प्रगति कर रहा है तथापि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर इसी तरह के किचन आज भी देखने को मिल जाते हैं जिसका मुख्य कारण संभवतः अशिक्षा, कार्य करने के उचित माहौल का न होना व उससे जनित गरीबी ही है | अपने देश की विडंबना यह है कि जो भी व्यक्ति अमीर है वह बहुत अमीर तथा जो भी बेचारा गरीब है वह बहुत ही गरीब है ...........परन्तु दोस्तों ! शिक्षा बहुत बड़ी चीज है यदि उचित मार्गदर्शन मिले तो इसी चूल्हे की रोटी खाकर व्यक्ति अपने परिश्रम से आई० ए० एस० तक बन सकता है ........)
तो आइये करते हैं इस चित्र का काव्यमय चित्रण ..............
(नोट : इस प्रतियोगिता में प्रविष्टि देने की अंतिम तिथि दिनांक १४-०५-२०११ दिन शनिवार की देर रात तक है ........दिनांक १५-०५-२०११ दिन रविवार को प्रातः ९-०० बजे इसका निर्णय पोस्ट किया जायेगा......आप सभी से अनुरोध है कि कृपया दी गई प्रविष्टियों पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य पोस्ट करें!)
पिछली प्रतियोगिता चित्र-चित्रण-६२ के प्रथम स्थान के विजेता आदरणीय आचार्य संजीव "सलिल" जी "चित्र-चित्रण-६३" के निर्णायक होंगें।
***

इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

प्रथम स्थान के विजेता आदरणीय आचार्य संजीव "सलिल" जी "चित्र-चित्रण-६३" के निर्णायक होंगें .........
सभी मित्रों के प्रोत्साहन हेतु यह दुर्मिल सवैया छंद प्रस्तुत है
//भुंई बैठि के श्यामल कर्म करै मुसकाय जो शीतल मेह दिखै,
निज जीवन धर्म जहाँ मिट्टी मिट्टी जिमि गेह सुगेह दिखै,
जेंहि चूल्हेसि चाय बनाय चुकी वहि ईंधन देह सुदेह दिखै,
तेहिं देखि रसोइनि की महिमा जंह गाँवन पावन नेह दिखै.
Vinod Bissa Poet
(०१)
ढ़ूंडो तो मिले खुशी
चाहे हो वह झोपड़
जीना सुखमय सीखो
संसाधन भले न सही
(०२)
देख चेहरे की मुस्कुराहट
क्या महलों में मिलती
शांत माहोल, जीने की राह
जीवन शक्ति भर देती
(०३)
आशा भरी सांसे
बलवती स्वास्थ्य
अब अच्छे समय का
करे हंसकर इंतजार
(०४)
भारतीत नारी शक्ति स्वरुपा
यूं ही नहीं कहलाती
विपत्तियों में भी प्रसन्नचित्त रह
आपदाओं को हराती
(०५)
टूटी फूटी रसोई
बीन कर लाई टहनियां
राजी खुशी फिर भी रहें
भारत की गृहणियां
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

//ढूंढो तो मिले खुशी
चाहे हो वह झोपड़
जीना सुखमय सीखो
संसाधन भले न सही//
बहुत सुन्दर सन्देश युक्त पंक्तियाँ .........बहुत बहुत बधाई .....
(०२)
//देख चेहरे की मुस्कुराहट
क्या महलों में मिलती
शांत माहोल, जीने की राह
जीवन शक्ति भर देती//
सच कहा आपने ! यह मुस्कराहट सभी के नसीब में कहाँ ?
(०३)
//आशा भरी सांसे
बलवती स्वास्थ्य
अब अच्छे समय का
करे हंसकर इंतजार//
इन पंक्तियों से हृदय में आशा व उमंग का संचार होता है ......पुनः बधाई ..........
(०४)
//भारतीय नारी शक्ति स्वरुपा
यूं ही नहीं कहलाती
विपत्तियों में भी प्रसन्नचित्त रह
आपदाओं को हराती//
भारतीय नारी के सम्बन्ध में यही सच है.........मित्र .......
(०५)
//टूटी फूटी रसोई
बीन कर लाई टहनियां
राजी खुशी फिर भी रहें
भारत की गृहणियां//
इन पंक्तियों में परम संतुष्टि का भाव है .............जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान...........
इन क्षणिकाओं के सृजन के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई .
MIrza A A Baig
A cup of tea made with so much care and love is sure to inebriate.अनु श्री अनु श्री
अनु श्री
जिंदगी से भरते रहे प्यालों में चाय
और करते रहे सब की खिदमत
कभी कोई इन के लिए भी करे दुआ
हाथ उठा के कुछ इबादत.
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
स्वागत है अनु श्री......
//जिंदगी से भरते रहे प्यालों में चाय
और करते रहे सब की खिदमत
कभी कोई इन के लिए भी करे दुआ
हाथ उठा के कुछ इबादत........//
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ ........आपको बहुत-बहुत बधाई ......:))
Yograj Prabhakar

पिछली प्रतियोगिता चित्र-चित्रण-६२ के प्रथम स्थान के विजेता आदरणीय आचार्य संजीव "सलिल" जी को बहुत बहुत बधाई !
आदरणीय अम्बरीश भाई जी, बहुत ही सुन्दर छंद कहा है आपने ! बधाई स्वीकार करें !
//टूटी फूटी रसोई
बीन कर लाई टहनियां
राजी खुशी फिर भी रहें
भारत की गृहणियां//
बहुत सुन्दर लिखा है आदरणीय बिस्सा जी
Er Ganesh Jee Bagi
सर्व प्रथम तो मैं आचार्य संजीव सलिल जी को चित्र चित्रण प्रतियोगिता ६२ में भाग लेने और प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर बहुत बहुत शुभकामना प्रदान करना चाहूँगा, तथा चित्र चित्रण ६३ में सुंदर रचनाओं को आने की उम्मीद करता हूँ |
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

स्वागत है आदरणीय प्रभाकर जी ! आदरणीय आचार्य "सलिल" जी की तरह आप भी हम सभी को कृपया अपना स्नेहाशीष दें !...... :))आदरणीय प्रभाकर जी ! आपको यह छंद पसंद आया तो अपना कवि-कर्म सार्थक हुआ ......हृदय से बहुत-बहुत आभार आपका .......:))
आपका स्वागत है आदरणीय बागी जी ! आपके आगमन से हम सभी को अत्यंत हर्ष की अनुभूति हो रही है .........:))
पांच हाईकू
(१)
मिट्टी चूल्हा
लकड़ी जलावन
खाना पावन
(२)
दूर अँधेरा
टिमटिम ढिबरी
मन हर्षित
(३)
सोंधी खुशबु
प्याले की गर्म चाय
वाह जी वाह
(४)
कच्चा है घर
गोबर पुता फर्श
ठंढा मगर
(५)
रोटी औ दाल
लहसुन चटनी
पिज्जा बेकार
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

(१)
//मिट्टी चूल्हा
लकड़ी जलावन
खाना पावन//
वाह भाई बागी जी वाह ! क्या लाख टके की बात कही है ...........:))
...(२)
//दूर अँधेरा
टिमटिम ढिबरी
मन हर्षित//
क्या बात है ........इस हाइकु से तो इस दिल में भी प्रकाश छा गया ........
(३)
//सोंधी खुशबु
प्याले की गर्म चाय
वाह जी वाह//
वाह जी वाह!वाकई ! आनंद आ गया ..........
(४)
//कच्चा है घर
गोबर पुता फर्श
ठंढा मगर//
फिर भी इसकी ख़ूबसूरती के क्या कहने..........क्योंकि यह फर्श पर नित्य प्रति दो बार चौका जगाया जाता है......
(५)
//रोटी औ दाल
लहसुन चटनी
पिज्जा बेकार//
बिलकुल सच कहा आपने ! इसके आगे तो सरे व्यंजन बेकार हैं ........
आपने तो इस चित्र में जान ही डाल दी भाई ........कहाँ थे आप अभी तक ?...........:))
Yograj Prabhakar
वाह वाह वाह बागी साहिब, मिट्टी से जुडे हुए आपके पाँचों हाईकु वाक़ई दिलकश है ! भाई अम्बरीश जी की टिप्पणी के बाद यूँ तो कहने को कुछ नहीं बचा लेकिन एक बात अवश्य कहूँगा कि क्या "टू द पॉइंट" बात की है आपने चित्र को देखकर - आनंद आ गया! बधाई स्वीकार करें!

इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

//इक तो कच्चे मकान की खुश्बू !
उसपे ग़ुरबत की शान की खुश्बू !
माँ के हाथों की चाय यूँ महके,
जैसे हो ज़ाफ़रान की खुश्बू !//
क्या बात है आदरणीय प्रभाकर जी !............. चंद पंक्तियों में आपने गागर में सागर भर कर आपने हम सभी का दिल जीत लिया ...........भाई बागी जी नें एकदम सत्य कहा है .......ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई आपको ............:)))
Alok Sitapuri

सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई||
Yograj Prabhakar

//सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई||//
वाह वाह अलोक सीतापुरी जी - क्या ग़ज़ब का लिखा है आपने - आनंद आ गया पढ़कर !
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

//सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई|| //
बड़ी देर बाद आये मालिक .......राह देखते देखते आँखें पथरिया गयीं .............क्या बात है ! आपकी पंक्तियाँ ग़ज़ब की हैं....... जो कि कलेजे पे सीधा ही वार करती हैं ...............चित्र को परिभाषित करतीं व रोटी-चटनी का मेल मिलातीं बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ आपकी ........बहुत-बहुत बधाई आपको ........:))
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

थोड़ी देर में अर्थात आज रात्रि ९-०० बजे इस प्रतियोगिता में प्रविष्टि देने का समय समाप्त होने को है .....आदरणीय आचार्य संजीव "सलिल" जी (निर्णायक महोदय ) को प्रणाम करते हुए उनसे सादर अनुरोध है कि वह अपना निर्णय तैयार कर के उसे आज रात्रि ९-०० बजे के बाद शीघ्र ही पोस्ट कर दें .............:))
संजीव वर्मा 'सलिल'

आत्मीय जनों!
वन्दे मातरम.
विलंब हेतु ह्रदय से क्षमाप्रार्थी हूँ. आजकल जबलपुर से २५० की.मी. दूर छिंदवाडा में पदस्थ हूँ. ३ जिलों में शताधिक निर्माण परियोजनाओं का निर्माण करा रहा हूँ. वहां अंतरजाल की सुविधा और समय दोनों का आभाव है. भाई अम्बरीश जी ने उदारतापूर्वक मुझे गुरुतर दायित्व सौंपा, आभारी हूँ. आत्मीयता में सहमति की औपचारिकता आवश्यक नहीं होती... इनकार करना इस अपनेपन की अवमानना होती... आज किसी तरह भागकर जबलपुर आया कि इस दायित्व का विलम्ब से ही सही निर्वहन कर सकूँ. अस्तु...
प्रस्तुत चित्र मन को छूने में समर्थ है. कविता करनी नहीं पड़ेगी अपने आप हो जायेगी. अम्बरीश जी ने सम्यक-सार्थक विश्लेषण भी कर दिया है. इस चित्र पर तो लघुकथा या कहानी भी रची जा सकती है. किसी मंच पर एक ही चित्र पर गद्य-पद्य रचनाओं को आहूत किया जाये तो आनंद में वृद्धि होगी.
यहाँ प्राप्त रचनाओं की संख्या सीमित है. इस आयोजन की सर्वश्रेष्ठ पंक्तियाँ भाई योगिराज प्रभाकर की है:
इक तो कच्चे मकान की खुश्बू !
उसपे ग़ुरबत की शान की खुश्बू !
माँ के हाथों की चाय यूँ महके,
जैसे हो ज़ाफ़रान की खुश्बू !
इन पंक्तियों को जितनी बार पढ़िए उतना अधिक आनंद आता है. स्थूल रूप में देखें तो चित्र में खुशबू का कोई प्रसंग नहीं है... न फूल, न बगीचा, न ख़ुश्बू भरे अन्य पदार्थ किन्तु 'जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि' की उक्ति के अनुसार प्रभाकर जी के उर्वर मस्तिष्क ने इस चित्र का केंद्र भाव 'ख़ुश्बू' को बना दिया है. नये रचनाकारों के लिए यह एक उदाहरण है कि किस तरह दृश्य से अदृश्य को सम्बद्ध किया जाता है. 'ज़ाफ़रान की ख़ुश्बू' तो जग प्रसिद्ध है किन्तु उसे 'कच्चे मकान की ख़ुश्बू' और 'ग़ुरबत की शान की ख़ुश्बू' से जोड़ना रचनाकार की कल्पना प्रणवता का कमाल है. आम रचनाकार 'ग़ुरबत' को बदनसीबी, दया, करुणा आदि से जोड़ता किन्तु प्रभाकर जी ने 'गुरबत' को 'शान' से जोड़कर उसे जो आला दर्ज़ा दिया है वह बेमिसाल है.
सर्व श्रेष्ठ हो ते हुए भी इस रचना को रचनाकार ने प्रतियोगिता से बाहर रखकर नये रचनाकारों को प्रथम आने का अवसर दिया है... यह उनका औदार्य है.
शेष रचनाओं में श्री आलोक सीतापुरी रचित निम्न पंक्तियाँ मेरे अभिमत में प्रथम स्थान की अधिकारी हैं, उन्हें बधाई -
'सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई||'
यह रचना हिंदी की भोजपुरी शैली में है जो अपने माधुर्य के लिए विख्यात है. रचनारंभ में 'सैयां' संबोधन पाठक को गाँव की माटी से जोड़ता है. चित्र में दर्शित 'रोटी और कलाई' को कवि ने 'मोटी' और 'पतरी' विशेषण देकर एक भाव जगत की सृष्टि की है जिसे 'थकनि मिटाई' लिखकर चरम पर पहुँचाया है. 'सैयां' चित्र में कहीं न होने पर भी कवि ने उन्हें न केवल देख लिया है अपितु सकल क्रिया का लक्ष्य बना दिया है. 'चाहवा' तथा 'चटनिया' जैसे देशज शब्द भाव माधुर्य की वृद्धि कर रहे हैं.
शेष द्वितीय स्थान की अधिकारी है गोपाल सगर जी की क्षणिकाएँ :
(१) गुलाबी परिधान
मुस्काती हुई श्यामलवर्णी
जैसे कोई देवी
(२)नसीब में
मिट्टी के चूल्हे संग
बीनी हुई लकड़ियाँ
(३)कर्म का प्रतिफल
भगौने में दाल
स्नेह से पगी स्वादिष्ट रोटियां
(४)नित्य प्रति यही कर्म
स्वयं में जलती
शायद इसी ढिबरी की तरह
(५)बैठी पालथी मारे
छाने छन्नी से
स्वादिष्ट चाय या अमृत
(६)घोर अभाव
हर हाल में है खुश
शायद यही है भारतीय नारी |
चित्र के विविध पहलुओं को क्षणिकाओं में समेटा गया है किन्तु शब्द चित्र प्रायः
पूनम मटिया जी की रचना-
मुस्कान चेहरे पर सजाये
गृहणी चाय बनाए
चूल्हे की आग ठंडी हो
या माटी लिप्त हो फर्श
रोटी का स्वाद बने जभी
जब प्रिय को अपने हाथों खिलाए
एक दीपक की लौ
प्रकाशित करे रसोई को
बर्तनों का भी नहीं है भण्डार
कुछ लकड़ी के टुकड़े बीन लाइ
जलाने को अपना चूल्हा
और चलाने को घर संसार
हाथ बंधे गरीबी से पर
बाँध न पायी ये मेरी मुस्कान
अशिक्षित हूँ अभाव -ग्रस्त हूँ
तभी ऐसी है मेरी पहचान
अपने वरद हस्त मुझ पर
रख दो ए मातेश्वरी
पढूं ,लिखूं और निखारूँ
अपनों की किस्मत का लेख
मेहनत कश हूँ नहीं है तो बस
लगन और अनथक परिश्रम का अभाव
इस यथार्थपरक रचना में चित्र के दृश्य के स्थूल पदार्थों को केंद्र में रखा गया है. 'ढिबरी' के लिए 'दीपक' शब्द का प्रयोग एक त्रुटि है. संभवतः नगरी परिवेश में यह शब्द कवयित्री के लिए अनजाना हो.
रोटी का स्वाद बने जभी
जब प्रिय को अपने हाथों खिलाए
यहाँ 'जभी' के स्थान पर 'तभी' होना चाहिए.
इस सारस्वत आयोजन के संचालक भाई अम्बरीश श्री वास्तव ने एक रचना मित्रों के प्रोत्साहन हेतु प्रस्तुत की है ......
पका डाला है ये भोजन बनाकर चाय छानी है.
दिखे मुस्कान चेहरे पर मगर आँखों में पानी है.
है कच्चा घर रसोई भी गरीबी हमनसीबी क्यों-
मेरा जीवन भी ढिबरी सा यही अपनी कहानी है..
यह उत्तम मुक्तक प्रतियोगिता से बाहर श्रेणी में है. शिल्प की दृष्टि से यह निर्दोष है. भाषा का प्रवाह, पदभार (मात्रा), कथ्य तथा अंत में 'मेरा जीवन भी ढिबरी सा' में जीवन की क्षणभंगुरता को इंगित करना कवि की सामर्थ्य का प्रमाण है.
नव रचनाकार यह समझें कि केवल दृश्य का वर्णन कविता को उतना प्रभावी नहीं बनता जितना अदृश्य का वर्णन. कवि का कौशल वह कह पाने कीं है जो अन्य अकवि नहीं कह सके. इस चित्र से जुड़े अन्य पहलू अछूते रह गए जैसे कटी लकड़ियों से जोड़कर वनों और वृक्षों की पीड़ा, मात्र दो रोटी अर्थात अधपेट भोजन, चूल्हे का बुझा होना, महिला के माथे पर बिंदी न होना, जमीन पर कुछ बिछा न होना आदि. अस्तु संचालकों और पाठकों सभी का आभार.
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

आदरणीय आचार्य जी, प्रणाम ! आपका निर्णय देखकर मन गदगद हो गया ! रचनाओं का समीक्षात्मक विश्लेषण अत्यंत प्रभावशाली है जिससे ज्ञान तो प्राप्त हुआ ही है साथ-साथ हमारी बहुत सी जिज्ञासाओं का भी समाधान भी स्वतः ही हो गया है .......इस हेतु आपको कोटिशः धन्यवाद व हृदय से वंदन-अभिनन्दन .......आपका स्नेहाशीष पाकर यह कवि मन धन्य हुआ ......
सर्वश्रेष्ठ रचना प्रस्तुत करने के लिए भाई योगराज प्रभाकर जी का अभिनन्दन करते है साथ साथ उन्हें बहुत-बहुत बधाई !
तद्पश्चात प्रथम स्थान के विजेता भाई आलोक सीतापुरी जी, द्वितीय स्थान के विजेता भाई गोपाल सागर जी व तृतीय स्थान की विजेता आदरणीया पूनम जी को इस सम्पूर्ण ग्रुप की ओर से बहुत बहुत बधाई व अभिनन्दन .......इस प्रतियोगिता के सञ्चालन में सहयोग के लिए भाई योगराज जी व भाई बागी जी सहित सभी प्रतिभागियों व पाठकों का बहुत बहुत आभार :))
हम आशा करते हैं कि निकट भविष्य में भी यहाँ पर आने वाली रचनाओं को भी आपके स्तर से समीक्षा रूपी स्नेहाशीष मिलता रहेगा ........:)))

इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

//मुस्कान चेहरे पर सजाये
गृहणी चाय बनाए
चूल्हे की आग ठंडी हो
...या माटी लिप्त हो फर्श
रोटी का स्वाद बने जभी
जब प्रिय को अपने हाथों खिलाए
एक दीपक की लौ
प्रकाशित करे रसोई को
बर्तनों का भी नहीं है भण्डार
कुछ लकड़ी के टुकड़े बीन लाइ
जलाने को अपना चूल्हा
और चलाने को घर संसार
हाथ बंधे गरीबी से पर
बाँध न पायी ये मेरी मुस्कान
अशिक्षित हूँ अभाव -ग्रस्त हूँ
तभी ऐसी है मेरी पहचान
अपने वरद हस्त मुझ पर
रख दो ए मातेश्वरी
पढूं ,लिखूं और निखारूँ
अपनों की किस्मत का लेख
मेहनत कश हूँ नहीं है तो बस
लगन और अनथक परिश्रम का अभाव //
चित्र को पूरी तरह परिभाषित करती हुई सुन्दर सी प्रार्थना से सजी हुई बेहतरीन सन्देशयुक्त रचना ....बहुत-बहुत बधाई आदरणीया पूनम जी ........
आदरणीय बागी जी, आपके हाइकु पढ़कर मुझसे भी रहा नहीं गया..... देखिये....आखिर मैंने भी कुछ लिख ही डाला ........

इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

//इक तो कच्चे मकान की खुश्बू !
उसपे ग़ुरबत की शान की खुश्बू !
माँ के हाथों की चाय यूँ महके,
जैसे हो ज़ाफ़रान की खुश्बू !//
क्या बात है आदरणीय प्रभाकर जी !............. चंद पंक्तियों में आपने गागर में सागर भर कर आपने हम सभी का दिल जीत लिया ...........भाई बागी जी नें एकदम सत्य कहा है .......ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई आपको ............:)))
Alok Sitapuri

सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई||
Yograj Prabhakar

//सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई||//
वाह वाह अलोक सीतापुरी जी - क्या ग़ज़ब का लिखा है आपने - आनंद आ गया पढ़कर !
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

//सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई|| //
बड़ी देर बाद आये मालिक .......राह देखते देखते आँखें पथरिया गयीं .............क्या बात है ! आपकी पंक्तियाँ ग़ज़ब की हैं....... जो कि कलेजे पे सीधा ही वार करती हैं ...............चित्र को परिभाषित करतीं व रोटी-चटनी का मेल मिलातीं बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ आपकी ........बहुत-बहुत बधाई आपको ........:))
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

थोड़ी देर में अर्थात आज रात्रि ९-०० बजे इस प्रतियोगिता में प्रविष्टि देने का समय समाप्त होने को है .....आदरणीय आचार्य संजीव "सलिल" जी (निर्णायक महोदय ) को प्रणाम करते हुए उनसे सादर अनुरोध है कि वह अपना निर्णय तैयार कर के उसे आज रात्रि ९-०० बजे के बाद शीघ्र ही पोस्ट कर दें .............:))//खाना चूल्हे पर धरा, ढिबरी नेह दिखाय.
चाय छानती प्रेम से, बैठी भुंइ मुसकाय..
बैठी भुंइ मुसकाय, सुहावनि श्यामल काया.
मन हरती यह देख, निराली श्रम की माया..
सब व्यंजन बेकार, यहाँ पर सबने माना.
है नसीब दमदार, मिले जो घर का खाना..//
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Er Ganesh Jee Bagi
कविता प्रेमी समूह के सभी मित्रों से एक निवेदन : कृपया मेरे द्वारा पोस्ट की गई रचना को प्रतियोगिता से बाहर समझे, यह केवल आयोजन में निरंतरता बनाये रखने हेतु है |
Er Ganesh Jee Bagi
वाह वाह भाई अम्बरीश जी, बहुत ही शानदार कुंडली दागी है आपने, ऐसा लगा जैसे चित्र को जुबान मिल गई हो, बहुत बहुत बधाई |
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
भाई बागी जी! इसे सराहने के लिए आपका हृदय से बहुत-बहुत आभार मित्र!.......... आदरणीय आचार्य "सलिल" जी के साथ संयुक्त विजेता घोषित किये जाने के परिणामस्वरूप मेरी रचनाएँ तो इस प्रतियोगिता से स्वतःही बाहर हो गयी हैं


टंकड़ त्रुटि संशोधन: कृपा करके मेरे उपरोक्त सवैया छंद के प्रारंभिक शब्द "भुंई" को //"भुंइ"// पढ़ा जाय ! अक्षर "भ" से प्रारम्भ होने के कारण इसमें दग्धाक्षर दोष दिखता है परन्तु "भुंइ" शब्द धरती माँ (देवी माँ) का पर्याय भी है! सभी विद्वजन से अनुरोध है कि वह सब सुझायें कि इससे इस सवैया छंद में दग्धाक्षर दोष का परिहार हुआ या नहीं ? यदि नहीं तो "भुंइ" के स्थान पर "जहँ" पढ़ा जाय |
//दग्धाक्षर : गणों की ही तरह कुछ वर्ण भी अशुभ माने गये हैं, जिन्हें 'दग्धाक्षर' कहा जाता है.
कुल उन्नीस दग्धाक्षर हैं — ट, ठ, ढ, ण, प, फ़, ब, भ, म, ङ्, ञ, त, थ, झ, र, ल, व, ष, ह।
— इन उन्नीस वर्णों का पद्य के आरम्भ में प्रयोग वर्जित है. इनमें से भी झ, ह, र, भ, ष — ये पाँच वर्ण विशेष रूप से त्याज्य माने गये हैं.
छंदशास्त्री इन दग्धाक्षरों की काट का उपाय [परिहार] भी बताते हैं.
परिहार : कई विशेष स्थितियों में अशुभ गणों अथवा दग्धाक्षरों का प्रयोग त्याज्य नहीं रहता. यदि मंगल-सूचक अथवा देवतावाचक शब्द से किसी पद्य का आरम्भ हो तो दोष-परिहार हो जाता है.//
Vinod Bissa Poet

लोगों को संकोच नहीं करना चाहिये ॰॰॰ किसी भी चित्र को देखकर रचना रचित करना कोई कठिन कार्य नहीं है ॰॰ विचारों को पंक्तिबद्ध ही तो करना होता है ॰॰॰ अब जैसे लगे कि इस चित्र पर क्या लिखा जाये समझ नहीं आ रहा है तो झिझक मन से निकाल दिजिये क्योंकि यह भी एक विचार ही तो है ॰॰॰ ऐसे विचारों को भी अभिव्यक्ति दे देना चाहिये ॰॰॰ उदाहरण के लिये एक इसी तरह का विचार मन में रख अंकित की गई रचना है जिसे बनाने में महज पांच मिनिट लगे हैं शायद आप लोगों को पसंद आये और आपकी झिझक को खत्म करे ॰॰
उफ इस कठिन चित्र को
अभी ही आना था
जब मेरे मन को
प्रित भरा गीत गाना था
समझना चाहता भी तो
क्यूं समझता इस चित्र को
कोरी कल्पना को परवान जो
मोहब्बत में चढ़ाना था
ऐ चित्र तुम फिर कभी आना मेरे द्वार
बंदिशे बहुत सी सुनाउंगा
अभी तो मेरा मन प्रिय में रमा
तुम्हारे संग न्याय नहीं कर पाउंगा
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ 
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
सुप्रभात मित्रों ! प्रतिभागिता बढ़ाने के उद्देश्य से सभी मित्रों के प्रोत्साहन हेतु निम्नलिखित पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं ......
पका डाला है ये भोजन बनाकर चाय छानी है.
दिखे मुस्कान चेहरे पर मगर आँखों में पानी है.
है कच्चा घर रसोई भी गरीबी हमनसीबी क्यों-
मेरा जीवन भी ढिबरी सा यही अपनी कहानी है..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Gopal Sagar
"कुछ क्षणिकाएं"
(१) गुलाबी परिधान
मुस्काती हुई श्यामलवर्णी
जैसे कोई देवी
(२)नसीब में
मिट्टी के चूल्हे संग
बीनी हुई लकड़ियाँ
(३)कर्म का प्रतिफल
भगौने में दाल
स्नेह से पगी स्वादिष्ट रोटियां
(४)नित्य प्रति यही कर्म
स्वयं में जलती
शायद इसी ढिबरी की तरह
(५)बैठी पालथी मारे
छाने छन्नी से
स्वादिष्ट चाय या अमृत
(६)घोर अभाव
हर हाल में है खुश
शायद यही है भारतीय नारी |
Yograj Prabhakar
ज़मीन से जुड़ी हुई बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं कहीं हैं आपने aadrneey गोपाल सागर जी - साधुवाद स्वीकार करें !
Poonam Matia ·
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नमस्कार Ambarish Srivastavaजी ....कुछ लिखने का प्रयास किया है
मुस्कान चेहरे पर सजाये
गृहणी चाय बनाए
चूल्हे की आग ठंडी हो
या माटी लिप्त हो फर्श
रोटी का स्वाद बने जभी
जब प्रिय को अपने हाथों खिलाए
एक दीपक की लौ
प्रकाशित करे रसोई को
बर्तनों का भी नहीं है भण्डार
कुछ लड़की के टुकड़े बीन लाइ
जलाने को अपना चूल्हा
और चलाने को घर संसार
हाथ बंधे गरीबी से पर
बाँध न पायी ये मेरी मुस्कान
अशिक्षित हूँ अभाव -ग्रस्त हूँ
तभी ऐसी है मेरी पहचान
अपने वरद हस्त मुझ पर
रख दो ए मातेश्वरी
पढूं ,लिखूं और निखारूँ
अपनों की किस्मत का लेख
मेहनत कश हूँ नहीं है तो बस
लगन और अनथक परिश्रम का अभाव................पूनम
Yograj Prabhakar
Poonam ji, bahut hi sundar likha hai, diye gaye chitr ko saarthak karti huyi kavita ke liye apko badhayi deta hun.
Er Ganesh Jee Bagi
पूनम जी सार्थक रचना, चित्र को विश्लेषण करने का अंदाज पसंद आया ,
"कुछ लड़की के टुकड़े बीन लाइ" में टंकण सम्बंधित त्रुटी है , लकड़ी लड़की बन गई है
Yograj Prabhakar
प्रतोयोगिता से बाहर रहते हुए दिए हुए चित्र पर एक रुबाई पेश कर रहा हूँ :
इक तो कच्चे मकान की खुश्बू !
उसपे ग़ुरबत की शान की खुश्बू !
माँ के हाथों की चाय यूँ महके,
जैसे हो ज़ाफ़रान की खुश्बू !
Er Ganesh Jee Bagi
वॉय होय, क्या बात कही है आपने, सच दिल जीत लिया है आपने सम्पादक जी, वाकई माँ के हाथों में कुछ जादू जरूर होता है,
माँ के हाथों की चाय में जाफरान की खुश्बू, गमक उठा यह महफ़िल , बधाई इस खुबसूरत रुबाई हेतु |
Poonam Matia ·
त्रुटी सुधार के बाद .......स्वीकार करें
मुस्कान चेहरे पर सजाये
गृहणी चाय बनाए
चूल्हे की आग ठंडी हो
या माटी लिप्त हो फर्श
रोटी का स्वाद बने जभी
जब प्रिय को अपने हाथों खिलाए
एक दीपक की लौ
प्रकाशित करे रसोई को
बर्तनों का भी नहीं है भण्डार
कुछ लकड़ी के टुकड़े बीन लाइ
जलाने को अपना चूल्हा
और चलाने को घर संसार
हाथ बंधे गरीबी से पर
बाँध न पायी ये मेरी मुस्कान
अशिक्षित हूँ अभाव -ग्रस्त हूँ
तभी ऐसी है मेरी पहचान
अपने वरद हस्त मुझ पर
रख दो ए मातेश्वरी
पढूं ,लिखूं और निखारूँ
अपनों की किस्मत का लेख
मेहनत कश हूँ नहीं है तो बस
लगन और अनथक परिश्रम का अभाव .....पूनम...............
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
//मुस्कान चेहरे पर सजाये
गृहणी चाय बनाए
चूल्हे की आग ठंडी हो
...या माटी लिप्त हो फर्श
रोटी का स्वाद बने जभी
जब प्रिय को अपने हाथों खिलाए
एक दीपक की लौ
प्रकाशित करे रसोई को
बर्तनों का भी नहीं है भण्डार
कुछ लकड़ी के टुकड़े बीन लाइ
जलाने को अपना चूल्हा
और चलाने को घर संसार
हाथ बंधे गरीबी से पर
बाँध न पायी ये मेरी मुस्कान
अशिक्षित हूँ अभाव -ग्रस्त हूँ
तभी ऐसी है मेरी पहचान
अपने वरद हस्त मुझ पर
रख दो ए मातेश्वरी
पढूं ,लिखूं और निखारूँ
अपनों की किस्मत का लेख
मेहनत कश हूँ नहीं है तो बस
लगन और अनथक परिश्रम का अभाव //
चित्र को पूरी तरह परिभाषित करती हुई सुन्दर सी प्रार्थना से सजी हुई बेहतरीन सन्देशयुक्त रचना  बहुत-बहुत बधाई आदरणीया पूनम जी

इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
//इक तो कच्चे मकान की खुश्बू !
उसपे ग़ुरबत की शान की खुश्बू !
माँ के हाथों की चाय यूँ महके,
जैसे हो ज़ाफ़रान की खुश्बू !//
क्या बात है आदरणीय प्रभाकर जी !............. चंद पंक्तियों में आपने गागर में सागर भर कर आपने हम सभी का दिल जीत लिया ...........भाई बागी जी नें एकदम सत्य कहा है .......ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई आपको ............:)))
Yograj Prabhakar
आदरणीय अम्बरीश भाई जी - ह्रदय से आभारी हूँ आपकी ज़र्रानवाज़ी का !
Alok Sitapuri
सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई||
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
आपका स्वागत है आदरणीय प्रभाकर जी !
Yograj Prabhakar
//सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई||//
वाह वाह अलोक सीतापुरी जी - क्या ग़ज़ब का लिखा है आपने - आनंद आ गया पढ़कर !
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
//सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई|| //
बड़ी देर बाद आये मालिक .......राह देखते देखते आँखें पथरिया गयीं .............क्या बात है ! आपकी पंक्तियाँ ग़ज़ब की हैं....... जो कि कलेजे पे सीधा ही वार करती हैं ...............चित्र को परिभाषित करतीं व रोटी-चटनी का मेल मिलातीं बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ आपकी ........बहुत-बहुत बधाई आपको ........:))
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
थोड़ी देर में अर्थात आज रात्रि ९-०० बजे इस प्रतियोगिता में प्रविष्टि देने का समय समाप्त होने को है .....आदरणीय आचार्य संजीव "सलिल" जी (निर्णायक महोदय ) को प्रणाम करते हुए उनसे सादर अनुरोध है कि वह अपना निर्णय तैयार कर के उसे आज रात्रि ९-०० बजे के बाद शीघ्र ही पोस्ट कर दें .............:))
संजीव वर्मा 'सलिल'
आत्मीय जनों!
वन्दे मातरम.
विलंब हेतु ह्रदय से क्षमाप्रार्थी हूँ. आजकल जबलपुर से २५० की.मी. दूर छिंदवाडा में पदस्थ हूँ. ३ जिलों में शताधिक निर्माण परियोजनाओं का निर्माण करा रहा हूँ. वहाँ अंतरजाल की सुविधा और समय दोनों का आभाव है. भाई अम्बरीश जी ने उदारतापूर्वक मुझे गुरुतर दायित्व सौंपा, आभारी हूँ. आत्मीयता में सहमति की औपचारिकता आवश्यक नहीं होती... इनकार करना इस अपनेपन की अवमानना होती... आज किसी तरह भागकर जबलपुर आया कि इस दायित्व का विलम्ब से ही सही निर्वहन कर सकूँ. अस्तु...
प्रस्तुत चित्र मन को छूने में समर्थ है. कविता करनी नहीं पड़ेगी अपने आप हो जायेगी. अम्बरीश जी ने सम्यक-सार्थक विश्लेषण भी कर दिया है. इस चित्र पर तो लघुकथा या कहानी भी रची जा सकती है. किसी मंच पर एक ही चित्र पर गद्य-पद्य रचनाओं को आहूत किया जाये तो आनंद में वृद्धि होगी.
यहाँ प्राप्त रचनाओं की संख्या सीमित है. इस आयोजन की सर्वश्रेष्ठ पंक्तियाँ भाई योगिराज प्रभाकर की है:
इक तो कच्चे मकान की खुश्बू !
उसपे ग़ुरबत की शान की खुश्बू !
माँ के हाथों की चाय यूँ महके,
जैसे हो ज़ाफ़रान की खुश्बू !
इन पंक्तियों को जितनी बार पढ़िए उतना अधिक आनंद आता है. स्थूल रूप में देखें तो चित्र में खुशबू का कोई प्रसंग नहीं है... न फूल, न बगीचा, न ख़ुश्बू भरे अन्य पदार्थ किन्तु 'जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि' की उक्ति के अनुसार प्रभाकर जी के उर्वर मस्तिष्क ने इस चित्र का केंद्र भाव 'ख़ुश्बू' को बना दिया है. नये रचनाकारों के लिए यह एक उदाहरण है कि किस तरह दृश्य से अदृश्य को सम्बद्ध किया जाता है. 'ज़ाफ़रान की ख़ुश्बू' तो जग प्रसिद्ध है किन्तु उसे 'कच्चे मकान की ख़ुश्बू' और 'ग़ुरबत की शान की ख़ुश्बू' से जोड़ना रचनाकार की कल्पना प्रणवता का कमाल है. आम रचनाकार 'ग़ुरबत' को बदनसीबी, दया, करुणा आदि से जोड़ता किन्तु प्रभाकर जी ने 'गुरबत' को 'शान' से जोड़कर उसे जो आला दर्ज़ा दिया है वह बेमिसाल है.
सर्व श्रेष्ठ होते हुए भी इस रचना को रचनाकार ने प्रतियोगिता से बाहर रखकर नये रचनाकारों को प्रथम आने का अवसर दिया है... यह उनका औदार्य है.
शेष रचनाओं में श्री आलोक सीतापुरी रचित निम्न पंक्तियाँ मेरे अभिमत में प्रथम स्थान की अधिकारी हैं, उन्हें बधाई -
'सैंया मोरी पतरी कलइयां ते बनाइ धरी,
मोटी मोटी रोटिया पकाई|
चहवा पियाई तोरी थकनि मिटाई फिरि
रोटिया चटनिया खवाई||'
यह रचना हिंदी की भोजपुरी शैली में है जो अपने माधुर्य के लिए विख्यात है. रचनारंभ में 'सैयां' संबोधन पाठक को गाँव की माटी से जोड़ता है. चित्र में दर्शित 'रोटी और कलाई' को कवि ने 'मोटी' और 'पतरी' विशेषण देकर एक भाव जगत की सृष्टि की है जिसे 'थकनि मिटाई' लिखकर चरम पर पहुँचाया है. 'सैयां' चित्र में कहीं न होने पर भी कवि ने उन्हें न केवल देख लिया है अपितु सकल क्रिया का लक्ष्य बना दिया है. 'चाहवा' तथा 'चटनिया' जैसे देशज शब्द भाव माधुर्य की वृद्धि कर रहे हैं.
शेष द्वितीय स्थान की अधिकारी है गोपाल सगर जी की क्षणिकाएँ :
(१) गुलाबी परिधान
मुस्काती हुई श्यामलवर्णी
जैसे कोई देवी
(२)नसीब में
मिट्टी के चूल्हे संग
बीनी हुई लकड़ियाँ
(३)कर्म का प्रतिफल
भगौने में दाल
स्नेह से पगी स्वादिष्ट रोटियां
(४)नित्य प्रति यही कर्म
स्वयं में जलती
शायद इसी ढिबरी की तरह
(५)बैठी पालथी मारे
छाने छन्नी से
स्वादिष्ट चाय या अमृत
(६)घोर अभाव
हर हाल में है खुश
शायद यही है भारतीय नारी |
चित्र के विविध पहलुओं को क्षणिकाओं में समेटा गया है। 
तृतीय स्थान पर है पूनम मटिया जी की रचना-
मुस्कान चेहरे पर सजाये
गृहणी चाय बनाए
चूल्हे की आग ठंडी हो
या माटी लिप्त हो फर्श
रोटी का स्वाद बने जभी
जब प्रिय को अपने हाथों खिलाए
एक दीपक की लौ
प्रकाशित करे रसोई को
बर्तनों का भी नहीं है भण्डार
कुछ लकड़ी के टुकड़े बीन लाइ
जलाने को अपना चूल्हा
और चलाने को घर संसार
हाथ बंधे गरीबी से पर
बाँध न पायी ये मेरी मुस्कान
अशिक्षित हूँ अभाव -ग्रस्त हूँ
तभी ऐसी है मेरी पहचान
अपने वरद हस्त मुझ पर
रख दो ए मातेश्वरी
पढूं ,लिखूं और निखारूँ
अपनों की किस्मत का लेख
मेहनत कश हूँ नहीं है तो बस
लगन और अनथक परिश्रम का अभाव
इस यथार्थपरक रचना में चित्र के दृश्य के स्थूल पदार्थों को केंद्र में रखा गया है. 'ढिबरी' के लिए 'दीपक' शब्द का प्रयोग एक त्रुटि है. संभवतः नगरी परिवेश में यह शब्द कवयित्री के लिए अनजाना हो.
रोटी का स्वाद बने जभी
जब प्रिय को अपने हाथों खिलाए
यहाँ 'जभी' के स्थान पर 'तभी' होना चाहिए.
इस सारस्वत आयोजन के संचालक भाई अम्बरीश श्रीवास्तव ने एक रचना मित्रों के प्रोत्साहन हेतु प्रस्तुत की है ......
पका डाला है ये भोजन बनाकर चाय छानी है.
दिखे मुस्कान चेहरे पर मगर आँखों में पानी है.
है कच्चा घर रसोई भी गरीबी हमनसीबी क्यों-
मेरा जीवन भी ढिबरी सा यही अपनी कहानी है..
यह उत्तम मुक्तक प्रतियोगिता से बाहर श्रेणी में है. शिल्प की दृष्टि से यह निर्दोष है. भाषा का प्रवाह, पदभार (मात्रा), कथ्य तथा अंत में 'मेरा जीवन भी ढिबरी सा' में जीवन की क्षणभंगुरता को इंगित करना कवि की सामर्थ्य का प्रमाण है.
नव रचनाकार यह समझें कि केवल दृश्य का वर्णन कविता को उतना प्रभावी नहीं बनता जितना अदृश्य का वर्णन. कवि का कौशल वह कह पाने कीं है जो अन्य अकवि नहीं कह सके. इस चित्र से जुड़े अन्य पहलू अछूते रह गए जैसे कटी लकड़ियों से जोड़कर वनों और वृक्षों की पीड़ा, मात्र दो रोटी अर्थात अधपेट भोजन, चूल्हे का बुझा होना, महिला के माथे पर बिंदी न होना, जमीन पर कुछ बिछा न होना आदि. अस्तु संचालकों और पाठकों सभी का आभार.
इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
आदरणीय आचार्य जी, प्रणाम ! आपका निर्णय देखकर मन गदगद हो गया ! रचनाओं का समीक्षात्मक विश्लेषण अत्यंत प्रभावशाली है जिससे ज्ञान तो प्राप्त हुआ ही है साथ-साथ हमारी बहुत सी जिज्ञासाओं का भी समाधान भी स्वतः ही हो गया है .......इस हेतु आपको कोटिशः धन्यवाद व हृदय से वंदन-अभिनन्दन .......आपका स्नेहाशीष पाकर यह कवि मन धन्य हुआ ......
सर्वश्रेष्ठ रचना प्रस्तुत करने के लिए भाई योगराज प्रभाकर जी का अभिनन्दन करते है साथ साथ उन्हें बहुत-बहुत बधाई !
तद्पश्चात प्रथम स्थान के विजेता भाई आलोक सीतापुरी जी, द्वितीय स्थान के विजेता भाई गोपाल सागर जी व तृतीय स्थान की विजेता आदरणीया पूनम जी को इस सम्पूर्ण ग्रुप की ओर से बहुत बहुत बधाई व अभिनन्दन .......इस प्रतियोगिता के सञ्चालन में सहयोग के लिए भाई योगराज जी व भाई बागी जी सहित सभी प्रतिभागियों व पाठकों का बहुत बहुत आभार :))
हम आशा करते हैं कि निकट भविष्य में भी यहाँ पर आने वाली रचनाओं को भी आपके स्तर से समीक्षा रूपी स्नेहाशीष मिलता रहेगा
१५-५-२०११  
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