साॅनेट गीत ३१-३२
नवांकुर
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नवांकुर को खाद-पानी दीजिए।
मोह-माटी में न उसको कैद करिए, जड़ जमीं में खुद जमाने दें।
सड़ा देगा लाड़ ज्यादा मानिए भी, धूप-बारिश सहे हो मजबूत।
गीत गाए आप अपने भाव के वह, मत उसे बासी तराने दें।।
दिखे कोमल वज्र सी है शक्ति उसमें, और है संकल्प शक्ति अकूत।।
रीझने हँसकर रिझाए, रीझिए
नवांकुर को खाद-पानी दीजिए।
देख बालारुण नहीं आभास होता, यही है मार्तण्ड सूर्य प्रचण्ड।
रश्मिरथ ले किरणपति बन सृष्टि को तम मुक्त कर, देगा नवल उजास।
शशि अमावस में कभी कब बता पाता, पूर्णिमा की रूप-राशि अखण्ड।।
बूँद जल की जलधि बन गर्जन करेगी, रोकने का मत करें प्रयास।।
भिगाए तो बाल-रस में भीगिए
नवांकुर को खाद-पानी दीजिए
हौसले ले नील नभ को नापना, चाहता तो नाप लेने दीजिए।
चढ़े गिरि पर गिरे तो उठ हो खड़ा, चोटियों पर चढ़े करतल ध्वनि करें।
दस दिशाएँ राह उसकी देखतीं, दिगंबर ओढ़े न राहें रोकिए।।
जां हथेली पर लिए दनु से भिड़े, हौसला दे, पुलक अभिनंदन करें।।
सफलता पय पिए, पीने दीजिए
नवांकुर को खाद-पानी दीजिए
१४-१२-२०२१
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सॉनेट
प्रेम की भागीरथी २६-२७
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प्रेम की भागीरथी में, प्रेमपूर्वक स्नान कर।
तिलक ऊषा का करें, संजीव हो हर जीव तब।
मन रहे मिथिलेश सा, तन व्यर्थ मत अभिमान कर।।
कांति हीरा लाल सी दे, हमें रवि ईशान अब।।
संत बन संतोष कर, जीवन बसंत बहार हो।
अस्मिता रख छंद-लय की अर्चना कर गीत की।
प्रवीण होकर पा विजय, हर श्वास बंदनवार हो।। २७
दिति-अदिति का द्वैत मेटो, रच ऋचाएँ प्रीत की।।
घर स्वजन से घर; विजन महल ना हमको चाहिए।
भक्ति पूर्वक जिलहरी को, तिलहरी पूजे निहार। २७
बिलहरी अभियान कर, हरितिमा हो अब कम नहीं।।
मंजरी छाया ग्रहणकर, अनंतारा पर निसार।। २७
साधना हो सफल, आशा पूर्ण हो, हर सुख प्रखर।
अनिल भू नभ सलिल पावक, शुद्ध मन्वन्तर निखर।।
१३-१२-२०२१
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सॉनेट
गृह प्रवेश २४
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गृह प्रवेश सोल्लास कर, रहिए सदा सचेष्ट।
ताजमहल सा भव्य, दर्शनीय न मकां बने।
आस-पास हों महकती, खुशियाँ नित्य यथेष्ट।।
स्वप्न करें साकार, हाथ रखें माटी सने।।
भँवरे खुश हों; सुरक्षित, रहें तितलियाँ मीत।
झूमे तरु पर बैठ, तोता पिंजरे में न हो।
नहीं बिल्लियों से रहे, गौरैया भयभीत।।
गीत-कहानी सत्य, लिखे कलम को भय न हो।।
कंकर-कंकर में सखे!, शंकर पाएँ देख।
कलरव सुनिए जाग, सूर्य-किरण आ जगाए।
माथे पर आए नहीं, चिंताओं की रेख।।
खूब पले अनुराग, मैं-तुम को हम सुहाए।।
गृह स्वामी गृह स्वामिनी, रहें न दो हों एक।
मन-बस; मन में हो बसा, आगंतुक सविवेक।।
१३-१२-२०२१
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