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बुधवार, 1 दिसंबर 2021

विविधताओं में निखरा व्यक्तित्व - विजयलक्ष्मी विभा

विविधताओं में निखरा व्यक्तित्व 
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विजयलक्ष्मी विभा
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उन दिनों मेरे अनुज लेखक एवं पत्रकार श्री जगदीश किंजल्क आकाशवाणी जबलपुर में प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत थे, तभी मेरा जबलपुर जाना हुआ था। एक धुंधली सी यादगार शाम आई थी जिसमें एक साहित्यिक संस्था "आंचलिक साहित्यकार परिषद" जबलपुर ने मुझे एक आयोजन में "साहित्य श्री" मानद उपाधि से नवाज़ा था। उसी आयोजन में एक कवि गोष्ठी थी जिसमें मैंने युवा संजीव वर्मा 'सलिल' जी (तब वे आचार्य नहीं हुए थे) का काव्य पाठ सुना था। उन दिनों भी उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली और आकर्षक था और तीन दशकों के बाद, आज जब उनके बारे में मनोरमा पाखी जी ने मुझसे कुछ लिखने को कहा है, मैं कल्पना कर सकती हूँ कि उनके बहुआयामी कृतित्व में जो अनगिनत स्मरणीय संदर्भ जुड़ चुके हैं तो अब उनका व्यक्तित्व भी उतना ही निखरा होगा ।

अभियान जबलपुर द्वारा आयोजित अखिल भारतीय दिव्य नर्मदा अलंकरण समारोह जबलपुर (१६.३.१९९७ तथा १०.८.१९९८) में मेरे अनुज जगदीश किंजल्क तथा संजीव 'सलिल' की जुगलबन्दी देखते ही बनती थी। हिंदी साहित्य के तीन मूर्धन्य हस्ताक्षरों महीयसी महादेवी वर्मा, अंबिका प्रसाद 'दिव्य' तथा रामानुजलाल श्रीवास्तव 'ऊँट' बिलहरीवी की स्मृति में अखिल भारतीय स्तर पर श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों को निष्पक्षता पूर्वक पुरस्कृत कर दोनों ने जबलपुर में एक अभिनव परंपरा आरंभ की; जिसका बाद में अन्य संस्थाओं ने अनुकरण किया। कालांतर में किंजल्क सागर स्थानांतरित हो गए और इस अनुष्ठान की दो शाखाएँ जबलपुर तथा सागर में पल्लवित-पुष्पित हुईं।   

"विश्ववाणी हिन्दी संस्थान अभियान जबलपुर" के संयोजक आचार्य सलिल जी का कृतित्व, उनकी बुआश्री महीयसी महादेवी वर्मा से अत्यधिक प्रभावित होने के कारण उन्हें उनकी विरासत के रूप में भी देखा और परखा जा सकता है परन्तु यहाँ बुआ जी के लेखन और सलिल जी के लेखन में एक बड़ा अन्तर भी है। महीयसी महादेवी हिन्दी साहित्य की लेखिका थीं और सलिल जी ने हिन्दी भाषा, पिंगल और साहित्य की त्रिवेणी बहाई है ।

पूत के पाँव पालने में अपना भविष्य दिखा देते हैं। शैशवावस्था में ही सलिल जी ने अपने हाव-भाव, चांचल्य और अजीबोगरीब हरकतों से अपना परिचय देना प्रारम्भ कर दिया था। वे आम शिशुओं से भिन्न लीक पर अपने कर्तव्य दिखानेवाले शिशु साबित हुए जिससे परिवार और स्वजन परिजनों के बीच यह धारणा बनने लगी थी कि ये शिशु अवश्य ही किसी दैवी प्रतिभा का वरदान लेकर जन्मा है और यह कुछ अलग ही करके दिखायेगा और पालने के संकेत आज उन्हें एक विशिष्ट जन साबित कर रहे हैं।

घर परिवार : के बारे में जानने की मैंने कभी कोई चेष्टा नहीं की । लेखक का परिवार उसका सृजन होता है और सदस्य उसकी पुस्तकें । लेखक के साहित्य के बारे में पूंछ कर अधिकांश लोग परिचय पर ताला डाल देते हैं । मैंने भी वही किया ।

जीवन संघर्ष : संघर्ष जीवन की चल अचल सम्पत्ति की तरह हैं। संघर्ष कभी समाप्त नहीं होते। हर संघर्ष नया होता है, हर संघर्ष अनझेला होता है जिसे लेखक अपनी कृतियों में संजोकर रखता है । ये संघर्ष ही जीवन के अनुुभव हैं। ये जितने कटु और असहनीय होते हैं उतने ही जीवन के अनुभव प्रखर और शोध शक्ति से परिपूर्ण होते हैं। सलिल जी के जीवन संघर्ष उनकी रचनाओं में मुखरित हुए हैं । संघर्षों को पृथक से गिनना उन लोगों का कार्य है जिन्होंने कभी लेखनी नहीं उठाई और न ही कभी उन संघर्षों पर शोध किया है। सलिल जी के जीवन संघर्ष प्रखर थे इसीलिये उनकी लेखनी अत्यधिक प्रभावी है ।

जागरूक अभियन्ता : जीवकोपार्जन के लिये व्यक्ति का कोई भी क्षेत्र क्यों न हो, उसमें ईमानदारी लगन और जागरूकता अनिवार्य शर्तें हैं जिन्हें सलिल जी ने बखूबी निभाया है । वे विज्ञान के विद्यार्थी होने के साथ साहित्य के भी विद्यार्थी थे और दोनों ही रास्तों पर उनके कदम बराबरी से दौड़े हैं। कहीं भी किसी एक के कारण दूसरे में व्यवधान नहीं आया। यह उनकी खूबी है। वे एक सफल जागरूक अभियन्ता एवं सभी विधाओं के सृजनधर्मी साहित्यकार हैं। संवेदनशील हृदय साहित्यकार का दैवी गुण है। संवेदनशीलता ही उसे साहित्य लेखन की प्रेरणा देती है। वह जो कुछ लिखता है , उसमें समूची मानवता का हृदय प्रतिबिम्बित होता है। सलिल जी की रचनाएँ केवल उनकी रचनाएँ नहीं हैं। उनकी रचनाओं के माध्यम से हर पाठक बोलता है। हर पाठक अपना हर्ष और विषाद व्यक्त करता है।

चिन्तन की मौलिकता से रचना की ऊँचाई एवं गहराई नापी जाती है । जीवन के असीम आकाश और अतल सागर में असंख्य नवीनताएँ भरी पड़ी हैं। उन नवीनताओं को चुन कर लाना और अपनी लेखनी का विषय बनाना मौलिकता की शर्त है जिसे सलिल जी ने अपनी रचनाओं में बड़े अधिकार के साथ दर्शाया है।

अनेक पुस्तकों के लेखक सलिल जी का रचना संसार एक ऐसा उपवन है जहाँ पुष्पों की संख्या को गिनती में नहीं सँजोया जा सकता। पुष्पों की सुन्दरता, ख़ुशबू  और रंगों के निखार मात्र देखे जा सकते हैं । सलिल जी साहित्य की जो धूनी रमा कर बैठे हैं उसे कोई बाधित नहीं कर सकता।

साहित्य की सभी विधाओं पर अधिकार रखने वाले सलिल जी ने अधिक से अधिक विषयों पर लेखनी चलाई है। वे साधक हैं और उनकी साधना उन्हें उस लक्ष्य की ओर ले जा रही है जहाँ जीव और जगत , आत्मा और परमात्मा का एकाकार दिखाई पड़ने लगते हैं।

सलिल जी के बहुआयामी कृतित्व का मूल्यांकन अभी बाकी है । बिलम्ब हो सकता है लेकिन वक़्त अन्याय नहीं कर सकता।

विजयलक्ष्मी 'विभा'
साहित्य सदन ,
149 जी / 2 , चकिया ,
प्रयागराज - 211016
मो. 7355648767

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