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गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

दोहे, मुक्तिका, विद्यासागर, राजेंद्र प्रसाद

माँ पर दोहे
माँ से बढ़कर कौन है, बोलो तारनहार।
कैकइ-जसुदा पग पड़ें, बिन बोले करतार।।
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तन मन धन जीवन करे, संतति पर कुर्बान। 
माँ से बढ़कर कौन है, जिसका हो गुणगान।।
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बृज मुक्तिका
संजीव
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जी भरिकै जुमलेबाजी कर
नेता बनि कै लफ्फाजी कर
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दूध-मलाई गटक; सटक लै
मुट्ठी में मुल्ला-काजी कर
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जनता कूँ आपस में लड़वा
टी वी पै भाषणबाजी कर
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अंडा शाकाहारी बतला
मुर्ग-मुसल्लम को भाजी कर
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सौ चूहे खा हज करने जा
जो शरीफ उसको पाजी कर
२-१२-२०२०
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त्रिपदिक मुक्तिका
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निर्झर कलकल बहता
किलकिल न करो मानव
कहता, न तनिक सुनता।
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नाहक ही सिर धुनता
सच बात न कह मानव
मिथ्या सपने बुनता।
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जो सुन नहीं माना
सच कल ने बतलाया
जो आज नहीं गुनता।
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जिसकी जैसी क्षमता
वह लूट खा रहा है
कह कैसे हो समता?
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बढ़ता न कभी कमता
बिन मिल मिल रहा है
माँ का दुलार-ममता।
२-१२-२०१८
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जुगुनू जगमग कर रहे, सूर्य-चंद्र हैं अस्त.
मच्छर जी हैं जगजयी, पहलवान हैं पस्त.
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अपनी अपनी ढपलियाँ, अपने-अपने राग.
कोयल-कंठी मौन है, सुरमणि होते काग.
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मेधावी छात्र राजेंद्र
*
बात उस समय की है जब भारत के संविधान निर्माता, देश के अग्रणी स्वतन्त्रता संग्राम सत्याग्रही, भारतीय प्रजातन्त्र के प्रथम राष्ट्रपति, कायस्थ कुल दिवाकर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी अपने शिक्षा काल में बी.ए. के विद्यार्थी थे। वे प्रातःकाल दैनिक कार्यों से निपट ही रहे थे कि अचानक ध्यान आया कि आज तो उनकी परीक्षा का अंग्रेजी का दूसरा पर्चा है। तत्काल भागते-दौड़ते कॉलेज पहुँचे लेकिन तब तक परीक्षा समाप्त होने में मात्र एक घंटे का समय शेष था। प्रिंसिपल साहबी से निवेदन किया तो उन्होंने यह सोचकर कि यह एक मेधावी छात्र है इस शर्त पर अनुमति दे दी कि प्रश्नपत्र हल करने के लिये कोई अतिरिक्त समय नहीं दिया जायेगा। राजेन्द्र प्रस़ाद जी ने ग्रामर तथा ट्रान्सलेशन आदि तो तुरन्त हल कर दिया किन्तु एस्से (निबंध) के लिये बहुत कम समय बचा। निबन्ध लिखना था ताजमहल पर। बी.ए. के स्तर का निबंन्ध कम से कम़ ५-६ पृष्ठ का होना ही चाहिये था पर इतना समय तो अब शेष था ही नहीं। उन्होंने मात्र एक वाक्य में कई पृष्ठों का सार निचोड़ते हुए एक वाक्य लिखा और समय समाप्त होते ही उत्तर पुस्तिका निरीक्षक को सौंप दी। वह एक वाक्य था ....
"Taj is the frozen mosque of royal tears".
परीक्षक ने उनके इस निबन्ध की बहुत सराहना की और उसे सर्वश्रेष्ठ निरूपित किया। पटना के संग्रहालय में यह उत्तर पुस्तिका आज भी सुरक्षित है।
दिव्य विभूति को शत-शत वंदन।
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कार्यशाला-
एक मुक्तक
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तुम एक सुरीला मधुर गीत, मैं अनगढ़ लोकगीत सा हूँ
तुम कुशल कलात्मक अभिव्यंजन, मैं अटपट बातचीत सा हूँ - फौजी
तुम वादों को जुमला कहतीं, मैं जी भर उन्हें निभाता हूँ
तुम नेताओं सी अदामयी, मैं निश्छल बाल मीत सा हूँ . - सलिल
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स्मरण:
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
(२६ दिसंबर १८२० - २९ जुलाई १८९१)
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ईश्वरचंद्र विद्यासागर बांग्ला साहित्य के समर्पित रचनाकार तथा श्रेष्ठ शिक्षाविद रहे हैं। आपका जन्म २६ दिसंबर १८२० को अति निर्धन परिवार में हुआ था। पिताश्री ठाकुरदास तथा माता श्रीमती भगवती देवी से संस्कृति, समाज तथा साहित्य के प्रति लगाव ही विरासत में मिला। गाँव में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर आप १८२८ में पिता के साथ पैदल को कलकत्ता (कोलकाता) पहुँचे तथा संस्कृत महाविद्यालय में अध्ययन आरम्भ किया। अत्यधिक आर्थिक अभाव, निरंतर शारीरिक व्याधियाँ, पुस्तकें न खरीद पाना तथा सकल गृह कार्य हाथ से करना जैसी विषम परिस्थितियों के बावजूद अपने हर परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
सन १८४१ में आपको फोर्ट विलियम कोलेज में ५०/- मासिक पर मुख्य पंडित के पद पर नियुक्ति मिली। आपके पांडित्य को देखते हुए आपको 'विद्यासागर' की उपाधि से विभूषित किया गया। १८५५ में आपने कोलेज में उपसचिव की आसंदी को सुशोभित कर उसकी गरिमा वृद्धि की। १८५५ में ५००/- मासिक वेतन पर आप विशेष निरीक्षक (स्पेशल इंस्पेक्टर) नियुक्त किये गये।
अपने विद्यार्थी काल से अंत समय तक आपने निरंतर सैंकड़ों विद्यार्थिओं, निर्धनों तथा विधवाओं को अर्थ संकट से बिना किसी स्वार्थ के बचाया। आपके व्यक्तित्व की अद्वितीय उदारता तथा लोकोपकारक वृत्ति के कारण आपको दयानिधि, दानवीर सागर जैसे संबोधन मिले।
आपने ५३ पुस्तकों की रचना की जिनमें से १७ संकृत में,५ अंग्रेजी में तथा शेष मातृभाषा बांगला में हैं। बेताल पंचविंशति कथा संग्रह, शकुन्तला उपाख्यान, विधवा विवाह (निबन्ध संग्रह), सीता वनवास (कहानी संग्रह), आख्यान मंजरी (बांगला कोष), भ्रान्ति विलास (हास्य कथा संग्रह) तथा भूगोल-खगोल वर्णनं आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
दृढ़ प्रतिज्ञ, असाधारण मेधा के धनी, दानवीर, परोपकारी, त्यागमूर्ति ईश्वरचंद्र विद्यासागर ७० वर्ष की आयु में २९ जुलाई १८९१ को इहलोक छोड़कर परलोक सिधारे। आपका उदात्त व्यक्तित्व मानव मात्र के लिए अनुकरणीय है।
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