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शनिवार, 4 दिसंबर 2021

गृह प्रवेश

गृह प्रवेश

मनुष्य के लिये अपना घर होना किसी सपने से कम नहीं होता। अपना घर यानि की उसकी अपनी एक छोटी सी दुनिया, जिसमें वह तरह-तरह के सपने सजाता है। पहली बार अपने घर में प्रवेश करने की खुशी कितनी होती है इसे सब समझ सकते हैं; अनुभव कर सकते हैं लेकिन बता नहीं सकते। यदि आप धार्मिक हैं, शुभ-अशुभ में विश्वास रखते हैं तो गृह प्रवेश से पहले पूजा अवश्य करवायें।

गृह प्रवेश के प्रकार

१. अपूर्व गृह प्रवेश – नवनिर्मित घर में पहली बार प्रवेश।

२. सपूर्व गृह प्रवेश – जब किसी कारण से व्यक्ति अपने परिवार सहित प्रवास पर हो, अपने घर को कुछ समय के लिये खाली छोड़ देते तथा दुबारा रहने के लिये आए।

३. द्वान्धव गृह प्रवेश – जब किसी परेशानी या किसी आपदा के चलते घर को छोड़ना पड़े और कुछ समय पश्चात दोबारा उस घर में प्रवेश करें तो वह द्वान्धव गृह प्रवेश कहलाता है।

४. अस्थाई गृह प्रवेश - किराए के माकन आदि में प्रवेश।

इन सभी स्थितियों में गृह प्रवेश पूजा का विधान आवश्यक है ताकि कि इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है।

गृह प्रवेश की पूजा विधि

गृह प्रवेश के लिये शुभ दिन-तिथि-वार-नक्षत्र देख लें। किसी जानकार की सहायता लें, जो विधिपूर्वक पूजा करा सके अथवा स्वयं जानकारी लेकर यथोचित सामग्री एकत्रित कर पूजन करें। आपातस्थिति में कुछ भी न जुटा सकें तो विघ्न विनाशक श्री गणेश जी, जगत्पिता शिव जी, जगज्जननि दुर्गा जी, वास्तु देव तथा कुलदेव को दीप जलाकर श्रद्धा सहित प्रणाम कर ग्रह प्रवेश करें। पितृपक्ष तथा सावन माह में गृह प्रवेश न करें।

समय

माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ माह गृह प्रवेश हेतु शुभ हैं। आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, पौष ग्रह प्रवेश हेतु शुभ नहीं हैं। सामान्यत: मंगलवार शनिवार व रविवार के दिन गृह प्रवेश वर्जित है। सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार तथा शुक्लपक्ष की द्वितीय, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी व त्रयोदशी गृहप्रवेश के लिये बहुत शुभ मानी जाती हैं।

गृह प्रवेश विधि

पूजन सामग्री- कलश, नारियल, शुद्ध जल, कुमकुम, चावल, अबीर, गुलाल, धूपबत्ती, पांच शुभ मांगलिक वस्तुएं, आम या अशोक के पत्ते, पीली हल्दी, गुड़, चावल, दूध आदि।
गृह के मुख्य द्वार पर आम्र पर्ण का बंदनवार बाँधकर रांगोली, अल्पना या चौक से सजाएँ। पूजा विधि संपन्न होने के बाद मंगल कलश के साथ सूर्य की रोशनी में नए घर में प्रवेश करना चाहिए।
घर को बंदनवार, रंगोली, फूलों से सजाकर; कलश में शुद्ध जल भरकर उसमें आम या अशोक के आठ पत्तों के बीच श्रीफल (नारियल) रखें। कलश व नारियल पर कुमकुम से स्वस्तिक का चिन्ह बनाएँ। गृह स्वामी और गृह स्वामिनी पाँच मांगलिक वस्तुएँ श्रीफल, पीली हल्दी, गुड़, अक्षत (चावल) व पय (दूध), विघ्नेश गणेश की मूर्ति, दक्षिणावर्ती शंख तथा श्री यंत्र लेकर मंगलकारी गीत गायन, शंख वादन आदि के साथ पुरुष पहले दाहिना पैर तथा स्त्री बाँया पैर रखकर नए घर में प्रवेश करें। इसके पूर्व पीतल या मिट्टी के कलश में जल भरकर द्वार पर कर आम के पाँच पत्ते लगाएँ, सिंदूर से स्वास्तिक बनाएँ। गृह स्वामिनी गणेश जी का स्मरण करते हुए ईशान कोण में जल से भरा कलश रखे। गृह स्वामी नारियल, पीली हल्दी, गुड़, चावल हाथ में ले, ग्रह स्वामिनी इन्हें साड़ी के पल्ले में रखें।

श्री गणेश का ध्यान करते हुए गणेश जी के मंत्र वाचन कर घर के ईशान कोण या पूजा घर में कलश की स्थापना करें। ततपश्चात भोजनालय में भी पूजा करें। चूल्हे, पानी रखने का स्थान, भंडार, आदि में स्वस्तिक बनाकर धूप, दीपक के साथ कुमकुम, हल्दी, चावल आदि से पूजन करें। भोजनालय में पहले दिन गुड़ व हरी सब्जियाँ रखना शुभ है। चूल्हे को जलाकर सबसे पहले उस पर दूध उफानना चाहिये, मिष्ठान बनाकर उसका भोग लगाना चाहिये। घर में बने भोजन से सबसे पहले भगवान को भोग लगायें। गौ माता, कौआ, कुत्ता, चींटी आदि के निमित्त भोजन निकाल कर रखें। इसके बाद सदाचारी विद्वानों व गरीब भूखे को भोजन कराएँ। ऐसा करने से घर में सुख, शांति व समृद्धि आती है व हर प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं।

पूजन 

षट्कर्म, तिलक, रक्षासूत्रबन्धन, भूमि पूजन, कलश पूजन, दीप पूजन, देव आह्वान, सर्व देव प्रणाम,. स्वस्तिवाचन, रक्षाविधान पश्चात् पूजा देवी पर वास्तु पुरुष का आह्वान-पूजन करें। 
ॐ वास्तोष्पत्ते प्रतिजानीहि अस्मान् स्ववेशो अनमीवो भवा न:। 
यत्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व, शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे।। (ऋग्वेद ७.५.४.१)

ॐ भूर्भुव: स्व: वास्तुपुरुषाय नम:। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। 
गन्धाक्षतं पुष्पाणि, धूपं, दीपं, नैवेद्यं समर्पयामि। ततो नमस्कारं करोमि। 

ॐ विशंतु भूतले नागा: लोकपालश्च सर्वत:। 
मंडलेs त्रावतिष्ठंतु ह्यायुर्बलकरा: सदा।।

वास्तुपुरुष देवेश! सर्वविघ्न विदारण। 
शन्ति कुरुं; सुखं देहि, यज्ञेsस्मिन्मम सर्वदा।।

यज्ञ : अग्निस्थापन, प्रदीपन, अग्निपूजन आदि कर २४ बार गायत्री मंत्र की आहुति दें। खीर, मिष्ठान्न, गौ-घृत से ५ आहुति स्थान देवता, वास्तुदेवता, कुलदेवता, राष्ट्र देवता तथा सर्व देवताओं को दें। 
पूर्णाहुति, वसोर्धारा, आरती, प्रसाद वितरण आदि कर अनुष्ठान पूर्ण करें। 
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