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गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

गीत, नवगीत, दोहा, मुकताक, बाँसुरी, वास्तु,

त्वरित कविता
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दागी है कुलदीप, बुझा दो श्रीराधे
आगी झट से उसे लगा दो श्रीराधे
रक्षा करिए कलियों की माँ काँटों से
माँगी मन्नत शांति दिला दो श्रीराधे
१६-१२-२०१९
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दोहा मुक्तिका
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दोहा दर्पण में दिखे, साधो सच्चा रूप।
पक्षपात करता नहीं, भिक्षुक हो या भूप।।
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सार-सार को गह रखो, थोथा देना फेंक।
मनुज स्वभाव सदा रखो, जैसे रखता सूप।।
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प्यासा दर पर देखकर, द्वार न करना बंद।
जल देने से कब करे, मना बताएँ कूप।।
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बिसरा गौतम-सीख दी, तज अचार-विचार।
निर्मल चीवर मलिन मन, नित प्रति पूजें स्तूप।।
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खोट न अपनी देखती, कानी सबको टोंक।
सब को कहे कुरूप ज्यों, खुद हो परी अनूप।।
१६-१२-२०१८
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गीत:
दरिंदों से मनुजता को जूझना है
.
सुर-असुर संघर्ष अब भी हो रहा है
पा रहा संसार कुछ, कुछ खो रहा है
मज़हबी जुनून पागलपन बना है
ढँक गया है सूर्य, कोहरा भी घना है
आत्मघाती सवालों को बूझना है
.
नहीं अपना या पराया दर्द होता
कहीं भी हो, किसी को हो ह्रदय रोता
पोंछना है अश्रु लेकर नयी आशा
बोलना संघर्ष की मिल एक भाषा
नाव यह आतंक की अब डूबना है
.
आँख के तारे अधर की मुस्कुराहट
आये कुछ राक्षस मिटाने खिलखिलाहट
थाम लो गांडीव, पाञ्चजन्य फूंको
मिटें दहशतगर्द रह जाएँ बिखरकर
सिर्फ दृढ़ संकल्प से हल सूझना है
.
जिस तरह का देव हो, वैसी ही पूजा
दंड के अतिरिक्त पथ वरना न दूजा
खोदकर जड़, मठा उसमें डाल देना
तभी सूझेगा नयन कर रुदन सूजा
सघन तम के बाद सूरज ऊगना है
***
एक हाइकु-
बहा पसीना
चमक उठी देह
जैसे नगीना।
***
नवगीत:
जितनी रोटी खायी
की क्या उतनी मेहनत?
.
मंत्री, सांसद मान्य विधायक
प्राध्यापक जो बने नियामक
अफसर, जज, डॉक्टर, अभियंता
जनसेवक जन-भाग्य-नियंता
व्यापारी, वकील मुँह खोलें
हुए मौन क्यों?
कहें न तुहमत
.
श्रमिक-किसान करे उत्पादन
बाबू-भृत्य कर रहे शासन
जो उपजाए वही भूख सह
हाथ पसारे माँगे राशन
कब बदलेगी परिस्थिति यह
करें सोचने की
अब ज़हमत
.
उत्पादन से वेतन जोड़ो
अफसरशाही का रथ मोड़ो
पर्यामित्र कहें क्यों पिछड़ा?
जो फैलाता कैसे अगड़ा?
दहशतगर्दों से भी ज्यादा
सत्ता-धन की
फ़ैली दहशत
***
वेणु और वास्तु

भगवान श्रीकृष्ण और वंशी एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। गोपाल की वंशी शब्दब्रह्म की वाहक है। वंशलोचन (बाँस) निर्मित वंशी के आविष्कारक संभवतः कन्हैयाजी ही हैं। ब्रह्मा के किसी शाप वश उनकी मानस पुत्री सरस्वती को बाँस रूपी जड़ रूप में धरती पर आना पड़ा। संयोगवश जड़ होने से पूर्व उन्होंने एक सहस्त्र वर्ष तक भगवत-प्राप्ति के लिए तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर प्रभु ने कृष्णावतार में उन्हें अपनी सहचरी बनाने का वर दिया। तब उन्होंने ब्रह्माजी के शाप का स्मरण करके प्रभु से कहा, " हे प्रभु! मैं तो जड़ बाँस के रूप में जन्म लेने के लिए श्रापग्रस्त हूँ।" यह सुनकर प्रभु ने कहा, "यद्यपि तुम्हें जन्म जड़ रूप में मिलेगा, तथापि मैं तुम्हें अपनाकर तुम में ऐसी प्राण-शक्ति भर दूँगा जिससे तुम विलक्षण चेतना का अनुभव कर सदा चैतन्य रह सकोगी।" वस्तुत: प्रभु के अधरों पर वंशी, मुरली, वेणु या बाँसुरी के रूप में वस्तुतः ब्रह्मा जी की मानस पुत्री सरस्वती जी ही विराजमान हैं।

वंशी या बांसुरी का वर्णन सबसे पहले सामवेद में ही मिलता है। बाँसुरी संगीत के सप्त स्वरों की एक साथ प्रस्तुति का सर्वोत्तम वाद्ययंत्र है जिसकी मधुर धुन तन-मन को परमानंद से भर देती है। यह क्या जड़ क्या चेतन सभी के मन का हरण कर लेती है इसके गीत की धुन सुनकर गोपियाँ अपनी सुध-बुध तक खो बैठती थीं। गोपियाँ तो गोपियाँ, गायें तक वेणुवादन से आकर्षित होकर कन्हैया के सम्मुख आ उपस्थित होती थीं। वंशी की तान सुनकर आज भी हम सभी को असीमित आनंद की अनुभूति होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के लिए इसे बजाने से पूर्व एक बार इसकी अभूतपूर्व परीक्षा भी ली थी। एक दिन उनके वंशीवादन करते ही वास्तव में यमुना की गति ही रुक गई तदनंतर एक दिन वृन्दावन के पाषाण तक वंशी-ध्वनि का श्रवण कर द्रवीभूत हो उठे, पशु-पक्षी व देवताओं के विमान आदि की गति रुक गई, जिससे सभी स्तब्ध हो उठे। वंशी की पूर्ण परीक्षा हो गई तब श्यामसुन्दर ने अपनी ब्रज-गोपांगनाओं के लिए वंशी बजाई, सुनते ही वे सभी अपनी सुध-बुध ही खो बैठीं। उन सभी के अंत:करण में किशोर श्यामसुन्दर का सुन्दर मनोहारी स्वरूप विराजमान हो गया। ब्रह्म, रुद्र, इन्द्र आदि उस वंशी का सुर सुन एक विशेष भाव में मुग्ध हो गए, किसी-किसी की समाधि भी भंग हुई परन्तु वंशी का तात्विक रहस्य किसी को भी ज्ञात न हो सका।

किसी समय राधा जी ने बाँसुरी से पूछा, "हे बाँसुरी! मैं कृष्ण जी को अत्यंत प्रेम करती हूँ, किंतु श्याम मुझसे अधिक तुमसे प्रेम करते हैं, सदैव अपने होठों से लगाये रखते हैं, इसका क्या रहस्य है?

तब विनीत भाव से सुरीले स्वर में बाँसुरी ने कहा, "प्रिय राधे! प्रभु के प्रेम में पहले मैंने अपने तन को कटवाया, फिर से काट-छाँट कर अलग करके जलती आग में तपाकर सीधी की गई, तद्पश्चात मैंने अपना मन भी कटवाया, अर्थात बीच में से आर-पार एकदम पूरी की पूरी खाली कर दी गई। फिर जलते हुए छिद्रक से समस्त अंग-अंग छिदवाकर स्वयं में अनेक सुराख़ करवाये। तदनंतर कान्हा ने मुझे जैसे बजाना चाहा मै ठीक वैसे ही अर्थात उनके आदेशानुसार ही बजी। अपनी मर्ज़ी से तो मैं कभी भी नहीं बज सकी। मुझमें व तुममें एकमात्र यही अंतर है कि मैं कन्हैया की मर्ज़ी से चलती हूँ और तुम कृष्णजी को अपनी मर्ज़ी से चलाती हो। वंशी प्रेम में त्याग व समर्पण की पराकाष्ठा का सन्देश देती है कि हम अपने प्रभु की इच्छानुसार ही सत्कर्म करके अपना जीवनमार्ग प्रशस्त करें। यह कदापि उचित नहीं कि हम अपने हठयोग से उन्हें विवश करें कि प्रभु हमारे जीवनमार्ग का निर्धारण हमारी इच्छानुसार ही करें।

वास्तु दोष परिहार :

किसी समय अधिकाँश घरों में कोई न कोई व्यक्ति वंशी बजाने में प्रवीण होता ही होता था। लोक गीत है- 'देवर जी आवैं वंशी बजावैं।' आधुनिक दौर में देश में गिने-चुने बाँसुरीवादक हैं। विदेशों में वेणु वादन को अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। चीन में तो अधिकांश लड़कियाँ वेणु वादन में प्रवीण हैं। चीनी वास्तु विद्या फेंगशुई के अनुसार वास्तु दोष के निवारण हेतु बाँस की बाँसुरी का प्रयोग अति उत्तम है। 'लो पिच' पर उत्पन्न की गयी इसकी शंख समान ध्वनि से आस-पास के वातावरण में व्याप्त सूक्ष्म वायरस तक नष्ट हो जाते हैं। यह धनात्मक ऊर्जा का सर्वश्रेष्ठ स्रोत है जिसकी उपस्थिति में नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। भवन के मुख्य द्वार पर लाल धागे में बाँधकर गुणा चिह्न के रूप में दो बाँसुरी एक साथ लगाने से भवन में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं हो पाता है और अचानक आने वाली मुसीबतें दूर हो जाती हैं। शिक्षा, व्यवसाय या नौकरी में बाधा आने पर शयन कक्ष के दरवाजे पर दो बाँसुरियों को लगाना शुभ दायी होता है।

बीम के नीचे बैठकर काम करने, भोजन करने व सोने से दिमागी बोझ व अशान्ति बनी रहती है किन्तु उसी बीम के नीचे यदि लाल धागे में बाँधकर बाँस से बनी बाँसुरीलटका दी जाय तो इस दोष का परिहार हो जाता है। बीमार व्यक्ति के तकिये के नीचे बाँसुरी रखने से रोगमुक्ति होती है। घर के अंदर किसी तरह की बुरी आत्मा या अशुभ चीजों का संदेह हो तो इसे घर की दीवार पर तलवार की तरह लटकाकर अशुभ शक्तियों से घर को मुक्त किया जा सकता है। वैवाहिक जीवन ठीक न चल रहा हो तो सोते-समय इसे सिराहने के नीचे रखने से आपसी तनाव आदि दूर हो जाता है। जन्माष्टमी के दिन बाँसुरी को सजाकर भगवान कृष्ण के समीप रखकर पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। श्रीकृष्ण को बांसुरी अत्यधिक प्रिय है और वे इसे सदैव अपने साथ ही रखते हैं। श्रीकृष्ण का वरदान है कि जिस स्थान पर बाँसुरी वादन होता रहता है वह स्थान वास्तुदोष जनित दुष्प्रभावों व बीमारियों से पूर्णतः सुरक्षित रहता है,परिवार के सदस्यों के विचार सकारात्मक हो जाते हैं जिससे उन्हें सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। बाँसुरी से निकलनेवाला स्वर प्रेम बरसाता है। घर में बाँस की बाँसुरी हो तो प्रेम और धन की कमी नहीं होतीतथा दुःख व आर्थिक तंगी दूर हो जाती है।

सहज उपलब्धता :

बजाने योग्य वंशी आमतौर पर वाद्ययंत्रों की दुकानों पर सहजता से उपलब्ध हो जाती है। मेले में बाँसुरी बेचनेवाले होते हैं किन्तु उनके पास बजाने योग्य बाँसुरियाँ कम ही होती हैं | वाद्य यंत्रों की दुकानों पर विभिन्न ट्यून की तेरह, अठारह व चौबीस बाँसुरियों के ट्यून्ड सेट मिलते हैं जिनकी अधिकतर आपूर्ति उत्तर प्रदेश के पीलीभीत शहर से की जाती है। नबी एण्ड संस यहाँ के प्रमुख बाँसुरी निर्माता हैं जो विदेशों तक भी बाँसुरी का निर्यात करते हैं | पीलीभीत को बाँसुरी नगरी के नाम से भी जाना जाता है |
प्रसिद्ध बाँसुरी वादक :
भगवान् श्रीकृष्ण (सर्वश्रेष्ठ)
पंडित पन्नालाल घोष
पंडित भोलानाथ
पंडित हरिप्रसाद चौरसिया
पंडित रघुनाथ सेठ
पंडित विजय राघव राव
पंडित देवेन्द्र
पंडित देवेन्द्र गुरूदेश्वर
पंडित रोनू मजूमदार
पंडित रूपक कुलकर्णी
बांसुरी वादक श्री राजेंद्र प्रसन्ना
बांसुरी वादक श्री एन रामानी
बांसुरी वादक श्री समीर राव
पंडित प्रमोद बाजपेयी (वरिष्ठ एडवोकेट)
स्वैच्छिक बांसुरी वादक श्री नरेन्द्र मोदी (वर्तमान प्रधानमंत्री भारत सरकार)
स्वैच्छिक बांसुरी वादक श्री लालकृष्ण आडवानी (वरिष्ठ राजनेता)
स्वैच्छिक बांसुरी वादक श्री मुक्तेश चन्द्र (पुलिस कमिश्नर)
बांसुरी वादक श्री बलबीर कुमार (कनॉट प्लेस सब वे पर बांसुरी विक्रेता व बांसुरी-शिक्षक) आदि..
बांसुरी वादकों की न्यून संख्या का प्रमुख कारण हमारे संस्कारों की क्षति व पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण है। हमारी सरकारों व समाज को बाँसुरीवादकों के लिए सम्मानजनक रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने चाहिए।
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मुक्तक:
अधरों पर मुस्कान, आँख में चमक रहे
मन में दृढ़ विश्वास, ज़िन्दगी दमक कहे
बाधा से संकल्प कहो कब हारा है?
आओ! जीतो, यह संसार तुम्हारा है
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दोहा:
पलकर पल भर भूल मत, पालक का अहसान
गंध हीन कटु स्वाद पर, पालक गुण की खान
१६-१२-२०१४

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