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रविवार, 5 दिसंबर 2021

सॉनेट, कबीर

सॉनेट 
कबीर 
*
ज्यों की त्यों चादर धर भाई 
जिसने दी वह आएगा। 
क्यों तैंने मैली कर दी है?
पूछे; क्या बतलायेगा?

काँकर-पाथर जोड़ बनाई 
मस्जिद चढ़कर बांग दे। 
पाथर पूज ईश कब मिलता?
नाहक रचता स्वांग रे!

दो पाटन के बीच न बचता 
कोई सोच मत हो दुखी।
कीली लगा न किंचित पिसता 
सत्य सीखकर हो सुखी। 

फेंक, जोड़ मत; तभी अमीर 
सत्य बोलता सदा कबीर।।
५-१२-२०२१ 
*** 

सवेरा 
*
भोर भई जागो रे भाई!
उठो न आलस करना।
कलरव करती चिड़िया आई।।
ईश-नमन कर हँसना।

खिड़की खोल, हवा का झोंका।
कमरे में आकर यह बोले।
चल बाहर हम घूमें थोड़ा।।
दाँत साफकर हल्का हो ले।।

लौट नहा कर, गोरस पी ले।
फिर कर ले कुछ देर पढ़ाई। 
जी भर नए दिवस को जी ले।।
बाँटे अरुण विहँस अरुणाई।।

कोरोना से बचकर रहना। 
पहन मुखौटा जैसे गहना।।
***
सॉनेट  
मन की बात कर रहे, जन की बात न जिनको भाए। 
उनको चुनकर चूक हो गई, पछताए मतदाता। 
सत्ता पाकर भूले सीढ़ी, चढ़कर तोड़ गिराए।।
अन्धभक्त जो नहीं, न फूटी आँखों तनिक सुहाता।।

जन आंदोलन दबा-कुचलता, शासन मनमानी कर। 
याद न आता रह विरोध में, संसद खुद थी रोकी। 
येन-केन सरकार बनाता, बेहद नादानी कर।।
अब न सुहाती है विरोध की, किंचित रोका-रोकी।।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे, बैर पड़ोसी से कर। 
पड़े अकेले लेकिन फिर भी फुला रहे हैं छाती। 
चंद धनिक खुश; अगिन रो रहे रोजी-काम गँवाकर।। 
जनप्रतिनिधि गण सेवा भूले, सजे बने बाराती।। 

त्याग शहीदों का भूले हैं, बन किसान के दुश्मन। 
लाश उगलती गंगा, ढाँकेँ; कहें न गंदी; पावन।।   
५-१२-२०२१
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