मुक्तिका
मछलियाँ
संजीव 'सलिल'
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कामनाओं की तरह, चंचल-चपल हैं मछलियाँ.
भावनाओं की तरह, कोमल-सबल हैं मछलियाँ..
कामनाओं की तरह, चंचल-चपल हैं मछलियाँ.
भावनाओं की तरह, कोमल-सबल हैं मछलियाँ..
मन-सरोवर-मथ रही हैं, अहर्निश ये बिन थके.
विष्णु का अवतार, मत बोलो निबल हैं मछलियाँ..
विष्णु का अवतार, मत बोलो निबल हैं मछलियाँ..
मनुज तम्बू और डेरे, बदलते अपने रहा.
सियासत करती नहीं, रहतीं अचल हैं मछलियाँ..
सियासत करती नहीं, रहतीं अचल हैं मछलियाँ..
मलिनता-पर्याय क्यों मानव, मलिन जल कर रहा?
पूछती हैं मौन रह, सच की शकल हैं मछलियाँ..
पूछती हैं मौन रह, सच की शकल हैं मछलियाँ..
हो विदेहित देह से, मानव-क्षुधा ये हर रहीं.
विरागी-त्यागी दधीची सी, 'सलिल' है मछलियाँ..
विरागी-त्यागी दधीची सी, 'सलिल' है मछलियाँ..
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम
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