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दोहा शतक
बसंत कुमार शर्मा
जन्म५.३.१९६६, धौलपुर, राजस्थान।
आत्मज: श्रीमती कमला शर्मा-श्री दौलतराम शर्मा।
जीवन संगिनी: मंजरी शर्मा।
शिक्षा: एम.कॉम.।
संप्रति: उप मुख्य परिचालन प्रबंधक भारतीय रेल यातायात सेवा पश्चिम मध्य रेलवे जबलपुर।
लेखन विधा: छंद, मुक्तक, गीत, दोहा, ग़ज़लें, व्यंग्य, लघुकथाएँ।
प्रकाशन: साझा काव्य संकलन उत्कर्ष १-२, गीतिका लोक, कुण्डलिनी लोक, अब तो, दोहा दर्पण, गीतिका है मनोरम सभी के लिए, मुक्तक मंजूषा, दोहा प्रसंग, तन दोहा मन मुक्तिका।
संपर्क: ३६६/२ रेल अधिकारी आवास, सिविल लाइन्स, जबलपुर म.प्र.।
संपर्क: ३६६/२ रेल अधिकारी आवास, सिविल लाइन्स, जबलपुर म.प्र.।
चलभाष: ९४७९३५६७०२, ९७५२४१७९०७, ईमेल: basant5366@gmail.com।
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दोहा शतक
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दोहा शतक
लेकर नाम गणेश का, मन में रख विश्वास।
कर्म करो सब प्रेम से, पूरी होगी आस।।
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गणपति का घर आगमन, देता है संदेश।
विपदा होगीं दूर सब, मिट जायेंगे क्लेश।।
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देवों के भी देवता, पूजित प्रथम गणेश।
ऋद्धि-सिद्धि के साथ प्रभु, घर में करो प्रवेश।।
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घर-आँगन में सज रहा, माता का दरबार।
दुर्गा माँ की भक्ति में, आनंदित संसार।।
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छुए न मन को छल कपट, जब तक तन में जान।
देना मातु सरस्वती, मुझको यह वरदान।।
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मानवता संसार से, हो न कभी भी लुप्त।
आकर मातु जगाइए, पड़े हुए सब सुप्त।।
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खुला हुआ सबके लिए, भोले का दरबार।
रोक-टोक कुछ भी नहीं, मिलता सबको प्यार।।
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कान्हा तेरी बाँसुरी, लेती मन को मोह।
मधुर-मधुर आरोह है, मधुर-मधुर अवरोह।।
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कुछ तो जादू कर रही, मुरली की धुन खास।
गाय रँभाती जा रही, मनमोहन के पास।।
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राजमहल भी तज दिया, छोड़े भोग-विलास।
मीरा होकर बावरी, चली कृष्ण के पास।।
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सरहद पर रहता खड़ा, लिये हथेली जान।
ऐसे वीर जवान पर, क्यों न करें अभिमान।।
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न्योछावर तन-मन किया, किया न कोई शोक।
ऐसे वीर जवान को, मेरी शत-शत ढोक।।
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सुख में दुख में हर जगह, आ जाता है काम।
हे आँसू! तू धन्य है, मेरा तुझे सलाम।।
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हे आँसू! तू धन्य है, मेरा तुझे सलाम।।
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जो था दर दर घूमता, करवाने सब काज।
दर्शन दुर्लभ हो गये, उस नेता के आज।।
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नेता भाषण दे रहे, भूखे मरें किसान।
उनके घर रोटी नहीं, इनके घर पकवान।।
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दे गरीब रिश्वत यहाँ, काट-काट कर पेट।
नेता-अफसर के सतत, बढ़ते जाते रेट।।
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भरें तिजोरी रात दिन, लगे हुए हैं रोग।
नहीं भरोसा आज का, कल को जोड़ें लोग।।
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सावन सूखा ही गया, हुई नहीं बरसात।
खेतों में पीले पड़े, कोमल-हरियल पात।।
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लिखो छंद दोहा भजन, गजल कथा नवगीत।
शेर -शायरी कुण्डली, रचो बढ़ाओ प्रीत।।
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पानी को तरसे कभी, कभी न मिलती धूप।
जिन्दा है पीपल मगर, बिगड़ गया है रूप।।
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बुद्ध यहाँ पैदा हुए, मिला यहीं पर ज्ञान।
नाहक उनके देश में, लड़ते हैं इंसान।।
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जाति-धर्म के नाम पर, नेता माँगें वोट।
चमचे भी कुछ जुगत कर, कमा रहे हैं नोट।।
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सदा सत्य पकड़े रहो, है यह सच्चा मीत।
झूठ हमेशा हारता, होती सच की जीत।।
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हँसते-हँसते कीजिये, आप अतिथि सत्कार।
छोटी सी मुस्कान भी, देती ख़ुशी अपार।।
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तन से श्रम करते रहो, मन को रखो फ़क़ीर।
आती अच्छी नींद फिर, रहता स्वस्थ शरीर।।
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आओ हम सब खोल लें, बंद हृदय के द्वार।
आर-पार बहती रहे, शीतल प्रेम बयार।।
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सदाचार सद्भावना, मानवता का मूल।
आदत इसे बनाइये, खिलें प्रेम के फूल।।
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स्नेह-प्रेम, सद्भाव का, सस्ता-सरल उपाय।
आओ! सब मिल-बैठकर, पी लें कॉफ़ी-चाय।।
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मन से मन जब मिल गया, मिला हाथ से हाथ।
एक दूसरे का हुआ, जीवन भर का साथ।।
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होतीं सबसे गल्तियाँ, तुरत कीजिये माफ़।
मान बढ़ेगा आपका, हृदय रहेगा साफ़।।
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खुशियाँ सब तुझको मिलें, मिले न कोई पीर।
मेरे नयनों से बहे, तेरे दुख का नीर।।
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भीड़-भाड़ है सड़क पर, लगा हुआ है जाम।
गाँव छोड़कर शहर में, मिला किसे आराम।।
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जाने कैसे हो गये, हरियाणा के जाट।
पूरे भारत देश की, खड़ी कर रहे खाट।।
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आरक्षण की आग में, झुलस रहा है देश।
नेताओं के हैं मजे, कलुषित है परिवेश।।
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जो भी देखो कर रहा, रेलों का नुकसान।
जाट कभी गुर्जर कभी, कभी पटेल महान।।
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फसल कटी पैसा मिला, नहीं बचा कुछ काम।
जाटों ने मिलकर किया, सबका चक्का जाम।।
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पिद्दी सा यह देश है, जिद्दी पाकिस्तान।
कब तक झेलेगा इसे, चुप रह हिंदुस्तान।।
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पाक सुधर सकता नहीं, कर लो कितनी बात।
बातचीत को छोड़कर, अब मारो दो लात।।
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मैदानों में जीत है, टेबल पर है हार।
हमें समझ आई नहीं, अपनी ही सरकार।।
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सारी दुख तकलीफ का, मिला हमें उपचार।
सुमिरन गुरुवर का किया, दिल में बारंबार।।
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तरसें महलों बीच हम, दिखती कहीं न धूप।
शुद्ध हवा भी खो गयी, लुप्त हुए जलकूप।।
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लालबहादुर ने किया, सबसे शुभ आह्वान।
इज्जत मिले किसान को, वीरों को सम्मान।।
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सरकारी परियोजना, बस कागज़ का फूल।
दिखने में अच्छी लगे, झोंक आँख में धूल।।
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जाति-धर्म-दल हो गये, नेता के हथियार।
भोली जनता पर करें, मिलकर खूब प्रहार।।
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वे तो सोए चैन से, सुनी नहीं फरियाद।
हम ही तड़पे रात भर, कर-कर उनकी याद।।
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यहाँ -वहाँ पर बन गईं, पत्थर की दीवार।
कच्चे आँगन जो मिला, था अदभुत वह प्यार।।
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करवा चौथ मनाइए, पत्नी जी के साथ।
जीवन भर मत छोड़िये, पकड़ा है जो हाथ।।
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घर पर जल्दी आइये, पूरा कर सब काम।
मिले नहीं पतिदेव बिन, पत्नी को आराम।।
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मिले नहीं पतिदेव बिन, पत्नी को आराम।।
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चाँद निरखता चाँद को, मधुर सुहानी रात।
पति की पूजा रोज हो, बन जाए फिर बात।।
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करक चतुर्थी में मिला, पति जी को सम्मान।
फूले-फूले फिर रहे, प्यार चढ़ा परवान।।
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सबको मिले न एक सा, सावन जी का प्यार।
धरती प्यासी है कहीं, कहीं मूसलाधार।।
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हरियाली करने लगी, धरती का श्रृंगार।
श्रावण जैसा मास कब, आता बारंबार।।
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कुहू -कुहू कोयल करे, वन में नाचे मोर।
जियरा ये धक-धक करे, कहाँ छिपा चितचोर।।
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तितली-भँवरे खुश हुए, मन में सजी उमंग।
कलियों को भाने लगा, अब भँवरों का संग।।
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बहुत दिनों के बाद में, निकली है कुछ धूप।
बैठ लॉन में पीजिए, गरम टमाटर सूप।।
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घंटी बजती द्वार पर, जाकर खोले कौन?
ओढ़ रजाई खाट पर, पड़े हुए सब मौन।।
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पंछी कोटर छोड़कर, निकले बाहर आज।
छूना है आकाश को, है बुलंद परवाज।।
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बौर आम पर छा रहा, आया है मधुमास।
मौसम है ये प्रीति का, दिला रहा अहसास।।
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वासंती मौसम हुआ, फूल बिखेरें रंग।
चलो बाग़ में घूम लें, आप-स्वप्न-हम संग।।
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बड़े-बड़े जो देश हैं, डाल रहे हैं फूट।
हथियारों को बेचकर, मचा रहे हैं लूट।।
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हर घर में दीपक जले, अंधकार हो नष्ट।
खुशहाली से दूर हों, जनता के सब कष्ट।।
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चार चरण दो पंक्तियाँ, मात्राएँ चौबीस।
तेरह-ग्यारह बाद यति, दोहा लिखो नफीस।।
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भारत की संसद हुई, है सब्जी-बाजार।
हर दिन बेहद शोरगुल, कान पक गये यार।।
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लोकतंत्र को कर रहे, नेतागण बदनाम।
भत्ते-वेतन अत्यधिक, करें न कोई काम।।
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संसद करते ठप्प मिल, मचा-मचा कर शोर।
खुद के अंदर झाँक लें, मिल जाएगा चोर।।
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धीरे-धीरे उम्र के, बीते बरस पचास।
झोली खुशियों से भरी, मन में है उल्लास।।
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दुनिया में मिलता रहा, मुझे सभी का प्यार।
जीवन के सपने सभी, आज हुए साकार।।
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स्वतंत्रता के नाम पर, मत करिये विद्रोह।
इतना भी अच्छा नहीं, आतंकी से मोह।।
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पढ़ने-लिखने हित खुला, सरकारी संस्थान।
पढ़ने-लिखने हित खुला, सरकारी संस्थान।
हाय! वहीं पर हो रहा, भारत का अपमान।।
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गर्म हवाएँ कर रहीं, सबका मन बेचैन।
हरियाली को देखने, तरस रहे हैं नैन।।
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भले आज हम हो गए, कम्प्यूटर में दक्ष।
मगर देश में जल बिना, सूख रहे हैं वृक्ष।।
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जगह-जगह पर दिख रहे, तरबूजे के ढेर।
गर्मी से राहत मिले, बीस रुपैया सेर।।
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सबसे बढ़िया पीजिए, गन्ने जी का जूस।
कम पैसे में कीजिए, हँस राहत महसूस।।
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कोल्ड ड्रिंक मत पीजिये, होती है बेकार।
मीठी लस्सी में मिले, अपनों जैसा प्यार।।
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जब अनार देने लगा, निज मूँछों पर ताव।
मौसम्मी के चढ़ गए, आसमान पर भाव।।
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लीची जी कहने लगीं, तू मुझसे रह दूर।
तेरे बस का कुछ नहीं, तू ठहरा मजदूर।।
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पंछी सब गायब हुए, नहीं घोंसले आज।
सुबह-सुबह करती नहीं, गौरैया आवाज।।
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स्वागत करना अतिथि का, रही हमारी रीत।
कितना भी अनजान हो, हो जाती है प्रीत।।
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नहीं किसी का टिक सका, जग में कभी गरूर।
लाखों के मालिक यहाँ, हो जाते मजदूर।।
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पूर्ण समर्पण से करो, चाहे जो हो काम।
मिले सफलता आपको, हो जग में यश-नाम।।
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बिना त्याग होते नहीं, हैं रिश्ते मजबूत।
जहाँ त्याग की भावना, होता प्रेम अकूत।।
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दौलत से जो पा रहे, दुनिया में सम्मान।
जैसे ही दौलत गयी, झेलें फिर अपमान।।
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आप कभी मत मानिए, उल्टे-सीधे तर्क।
मेहनत निष्ठा लगन से, करते रहिये वर्क।।
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देश छोड़कर जा रहीं, क्यों प्रतिभाएँ आज?
कुछ तो गड़बड़ है यहाँ, जो इतनीं नाराज।।
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सारी दुनिया कर रही, अब भारत का योग।
सबका तन मन स्वस्थ हो, हर्षित हों सब लोग।।
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करी प्राणायाम हँस, नित अनुलोम-विलोम |
स्वस्थ रहेंगे फेफड़े, उच्चारो यदि ओम।।
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खेती जो आतंक की, करता है दिन-रात।
हाय वकालत कर रहा, चीन उसी की तात।।
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बहुत दिनों के बाद में, हुई आज बरसात।
प्रमुदित पौधों के हुए, आज प्रफुल्लित गात।।
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बारिश से सड़कें धुलीं, गायब सारी धूल।
नव उमंग लेकर खिले, आस-पास में फूल।।
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रामू हरिया खेत में, बैठे मौन-उदास।
सूखा गया आषाढ़ तो, अब सावन से आस।।
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सावन नाचा झूमकर, मचा रहा उत्पात।
गाँव-शहर में बाढ़ से, बिगड़ रहे हालात।।
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नालों के भी आजकल, बढ़े हुए हैं भाव।
जबरन घर में घुस हमें, दिखा रहे हैं ताव।।
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पहली-पहली जब हुई, मौसम की बरसात।
भीषण गर्मी से मिली, थोड़ी बहुत निजात।।
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आज घटाएँ कर रहीं, पानी की बौछार।
तपती धरती को मिला, आसमान का प्यार।।
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हिरन मरा, नर भी मरे, मौन रहा कानून।
बरी सदा होते रहे, जो थे अफलातून।।
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सोच-समझकर बोलना, बोलो जो भी बोल।
कभी-कभी बिन बात के, खुल जाती है पोल।।
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सड़कों पर बरसात का, जमकर हुआ प्रहार।
चाँदी ठेकेदार की, खूब हुई इस बार।।
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माँग भरेगा वह तभी, जब पूरी हो माँग।
पूरी करो न माँग अब, तोड़ो उसकी टाँग।।
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देश-विदेशों में बढ़ा, भारत का सम्मान।
सकल विश्व अब कर रहा, भारत का गुणगान।।
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सदा रही है एकता, भारत की पहचान।
जाति-धर्म-दल बाद में, पहले हम इंसान।।
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राष्ट्रभक्ति जिसके हृदय, बसती है हर वक्त।
कहने में संकोच क्या, हम हैं उसके भक्त।।१०१
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कुछ और दोहे
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कुछ और दोहे
जो भी हो जिसका, रहे, मेरे तो प्रभु राम
उनके ही सानिध्य में, मिला चैन आराम
जगह जगह जाकर किया, सबका ही उद्धार
सबके प्रभु श्री राम हैं, मानवता का सार
मन में सुमिरन जो करे, एक बार बस राम
छोटा हो या फिर बड़ा, बन जाता हर काम
जब भी पृथ्वी पर बढ़ा, दानव अत्याचार
धनुष वाण ले राम ने, किया असुर संहार
बात पते की है यही, करना सदा यकीन
सुख ने आ दुख से कहा, मैं हूँ तुझमें लीन
बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष (११.५.१७)
सदा शांति मन में रखो, होना कभी न क्रुद्ध |
मध्य मार्ग को खोज लो, करो कभी मत युद्ध ||
राग द्वेष छूटे सभी, और हुआ मन शुद्ध |
त्यागे सुख, दुख देखकर, तब कहलाये बुद्ध ||
परमारथ करते रहो, इसमें ख़ुशी अपार |
केवल खुद के ही लिए, जीना है बेकार ||
हरियाली का दिन मना, वृक्ष लगाकर आज
कागज़ मत बर्बाद कर, रख धरती की लाज
नारों में मत उलझिए, करते रहिये काम |
मानव केवल कर्म से, पाता जग में नाम ||
धूल और कालिख उड़े, सड़कें रहतीं जाम |
गाँव छोड़ कर शहर में, रहती मस्त अवाम ||
हर आँगन में पेड़ हो, हर आँगन में गाय |
स्वच्छ रहे पर्यावरण, बड़ा सटीक उपाय ||
गौ माता का जो रखे, अपने घर में ध्यान |
दूध-दही खाकर सदा, स्वस्थ रहे इंसान ||
जन जन के संघर्ष को, जिसने दी आवाज |
ऐसे वीर सुभाष पर, है हम सबको नाज ||
भाषाएँ हैं अनगिनत, तरह तरह के वेश
हिंदी बिंदी के बिना, सूना भारत देश
हिंदी भाषा का करें, हम सब मिल उत्थान
काम काज के साथ में, दिल से हो सम्मान
संसद में होने लगी, हिंदी में कुछ बात
निश्चित ही अब एक दिन, सुधरेंगे हालात
गूगल इनपुट टूल से, लिखना अब आसान
हिंदी छायी नेट पर, भारत की है शान
जर्मन रूस अमेरिका, चीन और जापान
निज भाषा में ही हुआ, इन सबका उत्थान
हिंदी में होने लगे, हर सरकारी काज
करे राजभाषा सदा, सबके दिल पर राज
बनकर अर्जुन युद्ध कर, है यह कार्य पवित्र |
स्थापित कर धर्म को, ज्यादा सोच न मित्र ||
विचलित मत हो कर्म से, है यह तेरा धर्म |
फल ईश्वर के हाथ है, सखा समझ यह मर्म ||
अविनाशी आत्मा सदा, छोड़ो जग का मोह |
होना ही है एक दिन, सबसे यहाँ विछोह ||
चलना सच के मार्ग पर, निश्चित होगी जीत |
थोड़ा सा बस धैर्य रख, विचलित मत हो मीत ||
जीवन भर सहती रही, सड़क हमारा भार |
बदले में हमने दिए, गड्ढों के उपहार ||
बादल गरजे तो बहुत, हुई नहीं बरसात |
आसमान सुनता कहाँ, धरती की कुछ बात ||
मीठी है, तीखी कभी, अंदर तक है मार |
मुझको तो अदभुत लगा, दोहों का संसार ||
तपे पतीला आँच पर, चमचा चमचम खाय |
अन्न उगाता है कृषक, आढतिया ले जाय ||
बगुले बैठे घेरकर, हर नदिया का तीर |
किसने समझी है यहाँ, मछली मन की पीर ||
दीपावली
लक्ष्मी जी का आगमन, लाया हर्ष अपार ||
विघ्न हरण गणपति करें, आकर सबके द्वार |
आँगन में रंगोलिया, सजते तोरण द्वार |
गुझियाँ लेकर आ गया, दीपों का त्यौहार ||
लड़ियाँ मिलकर सड़क पर, जमा रहीं हैं रंग ||
नाच रही है फुलझड़ी, प्रिय अनार के संग |
आग लगी जब पूँछ में, दौड़ चला रॉकेट |
कर लेगा वह आज ही, आसमान से भेट ||
कठिन नहीं कुछ भी यहाँ, सबसे करे अपील |
लिए आग को पेट में, उड़ती है कंदील ||
मना रहे दीपावली, जगमग है संसार |
मिटटी की खुशबू लिए, आये दीप हजार ||
नए नए कपड़े पहन, सखी सहेली संग |
बाल टोलियाँ नाचती, दिल में लिए उमंग ||
सूरज जा कर छुप गया, चंदा भी न समीप |
अंधकार से लड़ रहे, छोटे छोटे दीप ||
विपदाएँ आयीं नहीं, कभी हमारे गाँव |
माँ के आँचल की रही, सबके सिर पर छाँव ||
पंछी बन उड़ते रहो, खुला हुआ आकाश |
अपने पंखों पर सदा, रखो अटल विश्वास ||
खोलो मन की खिड़कियाँ, और हृदय के द्वार |
आर-पार बहती रहे, शीतल प्रेम बयार ||
आगे हाथ बढ़ा दिया, दिल में रखकर प्यार |
अपना सा लगने लगा, मुझको ये संसार ||
औरों की खातिर जिये, बाँटे सबको प्यार
यादों में रखता सदा, उसको ये संसार
आज सुबह जब मिल गया, खत का उन्हें जबाब |
कली कली दिल की खिली, मुखड़ा हुआ गुलाब ||
पथराये से हैं नयन, होठों पर है प्यास |
फिर भी ये मौसम लगे, जाने क्यों मधुमास ||
यादों के बादल घने, मन है बहुत उदास |
दूर हुआ मुझसे बहुत, फिर भी लगता पास ||
दुनिया मुझको चाहती, प्यारा यह अहसास |
लेकिन तू मुझको लगे, अपनों में भी खास ||
खुशियों का होता रहा, थोड़ा सा आभास |
लेकिन तेरे बिन लगा, जीवन ये वनवास ||
सुबह हुआ जब सूर्य के, आने का ऐलान |
कलियों की पलकें खुली, लिए अधर मुस्कान ||
कलियों ने भिजवा दिया, भँवरों को पैगाम |
गाँव हमारे आइये, दिल को अपने थाम ||
पुलकित तन, मन है मुदित, अरुणिम हुए कपोल |
चली सजनियाँ द्वार पर, सुन कागा के बोल ||
पुष्पों की मधुरिम महक, और पिया का ध्यान |
मन को घायल कर रही, मधुर मधुर मुस्कान ||
प्रीतम से नजरें मिली, आई थोड़ी लाज |
भाव-भंगिमा कह गयी, सब कुछ बिन आवाज ||
गागर में सागर भरें, मन को कर दें तृप्त |
बूढ़े बच्चे सब रहे, इन दोहों के भक्त ||
थोड़े दिन ही रह सका, मौसम यहाँ हसीन |
ऋतु बसंत के बाद में, जमकर तपी जमीन ||
मौसम का कश्मीर में, कैसा है बदलाव |
पुष्पनगर में दे रहे, शूल मूँछ पर ताव ||
खत्म कभी होते नहीं, घात और प्रतिघात |
प्रेम और बस प्रेम से, बदलेंगे हालात ||
मत से था मतलब कभी, मत पाकर अब मस्त |
मत देकर कुछ माँग मत, साहब जी हैं व्यस्त ||
इतना भी क्या दे रहे, अब मूंछों पर ताव
थोड़ा सा तो दीजिये, प्रेम-भाव को भाव
कुछ सोने में व्यस्त हैं, कुछ सोने में मस्त |
तुम सोना चाहो अगर, रहो कर्म में व्यस्त ||
धूप छाँव बरसात के, करे प्रकट उदगार |
नोंक जरा सी कलम की, सहती कितना भार ||
जयचंदों ने देश का, किया बहुत नुकसान
अब गौरी ही एक दिन, लेगा उनके प्रान
जिसने तपती रेत पर, बना दिए पदचाप |
निश्चय वह संसार मे, पाता सदा प्रताप ||
कौओं जैसी बोलियाँ, साँपों जैसी चाल |
करते भारत देश में, नेता रोज बवाल ||
पले हुए हैं देश में, तरह तरह के नाग |
गिरगिट जैसे रंग हैं, रोज उगलते आग ||
आज हमारे देश में, हों न अगर जयचंद |
कभी न कुछ भी कर सकें, दुश्मन के छल छंद ||
कथनी करनी हो सदा, भीतर बाहर एक |
ढूंढें से मिलते नहीं, बन्दे ऐसे नेक ||
जरा जरा सी बात पर, मचता यहाँ बबाल |
नाजुक बंधन प्यार का, रखिये इसे सँभाल ||
सत्य अहिंसा अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य अस्तेय |
पालन करना हर नियम, हो जीवन का ध्येय ||
रिश्तों में जब प्रेम का, हो न कभी रविवार |
सुख-दुख बाँटे मिल सभी, तब बनता परिवार ||
यादों के सपने लिए, आये पास कपोत |
जगा गए मेरे हृदय, पुनः प्रीत की जोत ||
बगिया में खिलने लगे, रंग बिरंगे रोज |
मिल जाता हमको सुबह, रोज प्रेम का डोज ||
हिंदी भाषा सा कहाँ, सरल सुगम साहित्य |
भाषाओँ के गगन में, हिंदी है आदित्य ||
ज्ञान और विज्ञान का, हो हिंदी में शोध |
एक राष्ट्र अवधारणा, का है इसमें बोध ||
जन गण की बोली यही, यही राष्ट्र की शान |
दे हर भाषा को जगह, हिंदी हुई महान ||
हों चाहे कितने कठिन, दुनिया में हालात |
अगर प्रेम से बात हो, बन जाती हर बात ||
इक बबूल के पेड़ पर, बसा बया का गाँव
भरी दोपहर में मिले, उसको ठंडी छाँव
सर्दी, गर्मी, बारिशें, हो आँधी तूफ़ान
रहे बया का घोंसला, हरदम सीना तान
फल का राजा आम है, मँहगा उसका दाम |
आम आदमी दूर से, देख रहा है आम ||
फूलों से कुर्सी सजी, साहब जी की रोज |
जन गण को मिलते रहे, बस काँटों के डोज ||
मर जाता रावण अगर, सब के मन का आज
हो जाता फिर देश में, रामचन्द्र का राज
रोज हुआ सीता हरण, प्रति दिन अत्याचार
रावण ने पल पल किया, छल का ही व्यापार
कल की चिंता मत करो, कल होता बेकार
आज हमारे हाथ में, जी लो उसको यार
चाँद दूज का दे गया, हमको ये सन्देश
छोटे बनकर के रहो, पूजें लोग विशेष
भोगों ने बांटा सदा, और दिए हैं रोग |
कला जोड़ने की हमें, सिखलाता है योग ||
देश विदेशों में बढ़ी, आज योग की शान |
सारे रोगों का मिला, सबको मुफ्त निदान ||
राजा रंक फ़क़ीर को, दिखलाई तस्वीर |
जो देखा वह लिख गए, अद्भुत संत कबीर ||
पंछी को मिलतीं कहाँ, आज पेड़ की छाँव |
दे न अतिथि की सूचना, अब कौवे की काँव ||
खून एक इंसान का, क्यूँ करते हो फर्क |
यही फर्क तो कर रहा, सबका बेड़ा गर्क ||
नहीं किसी का टिक सका, जग में कभी गरूर
लाखों के मालिक यहाँ, हो जाते मजदूर
भरी दुपहरी झेलता, सिर पर धूप बबूल |
काँटों के सँग खिल रहे, सुंदर सुंदर फूल ||
गर्मी से व्याकुल सभी, बालक और अधेड़ |
मजे धूप के ले रहा, अमलतास का पेड़ ||
अमलतास से मिल रहा, सबको आज सुकून |
मौसम वासंती हुआ, भले माह है जून ||
अमलतास ने कर दिया, धरती का श्रंगार |
बादल सजकर हो रहे, मिलने को तैयार ||
आँगन में झूला सजा, मन में सजी उमंग |
कर के तेरी याद पिय, फरकत हैं सब अंग ||
रोम रोम पुलकित करे, ठंडी पड़े फुहार |
पर साजन तेरे बिना, सूना है संसार ||
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