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शुक्रवार, 15 मार्च 2013

muktika, andheron ko raushan... sanjiv 'salil'

मुक्तिका :
अंधेरों को रौशन ...
संजीव 'सलिल'
*
अंधेरों को रौशन किया, पग बढ़ाया
उदासी छिपाकर फलक मुस्कुराया

बेचैनी दिल की न दिल से बताई
आँसू छिपा लब विहँस गुनगुनाया

निराशा के तूफां में आशा का दीपक
सही पीर, बन पीर मन ने जलाया

पतझड़ ने दुःख-दर्द सहकर तपिश की
बखरी में बदरा को पाहुन बनाया

घटायें घुमड़ मन के आँगन में नाचीं
न्योता बदन ने सदन खिलखिलाया

धनुष इंद्र का सप्त रंगी उठाकर
सावन ने फागुन को दर्पण दिखाया

सीरत ने सूरत के घर में किया घर
दुःख ने लपक सुख को अपना बनाया

'सलिल' स्नेह संसार सागर समूचा
सतत सर्जना स्वर सुना-सुन सिहाया

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6 टिप्‍पणियां:

Mukesh Srivastava ने कहा…

Mukesh Srivastava

वाह वाह वाह ,, संजीव जी , बेहतरींन साहित्यकारा 'दीप्ति दीदी' की बेहतरीन कविता 'अभी' पर आपकी यह बेहतरीन ' मुक्तिका ' लाजवाब बन कर आई है.

ढेर सराहना के साथ,

मुकेश इलाहाबादी

s. n. sharma kamal ने कहा…

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


धन्य है आचार्य जी ,
मुक्तिक पर मुग्ध हूँ ,विशेष -


धनुष इंद्र का सप्त रंगी उठाकर

सावन ने फागुन को दर्पण दिखाया

वाह बड़े दूर की कौड़ी है। अनूठा बिम्ब। वाह वाह।

सादर

कमल

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara

संजीव जी,
आपने इतनी उम्दा कविता लिखकर, हमें जो इज्ज़त बख्शी उसके लिए शत-शत आभार!

सादर,
दीप्ति

Indira Pratap ने कहा…

Indira Pratap द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara


संजीव भाई मेरा भी साधुवाद स्वीकार करें| दिद्दा

Pranava Bharti ने कहा…

Pranava Bharti द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


वाह--! सावन ने फागुन को दर्पण दिखाया,
'सलिल'को सदा गुणों की खान ही पाया -----------
अनेकानेक शुभकामनाओं सहित
प्रणव

sanjiv verma salil ने कहा…

सलिल भाग्यशाली शुभाशीष पाया
प्रणव को सुमिर कर विनत सर नवाया