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शनिवार, 25 जून 2011

रचना / प्रतिरचना : गीत- --रेखा राजवंशी, सिडनी/मुक्तिका: सीख लिया... संजीव 'सलिल'

रचना / प्रतिरचना : 
कोई रचना मन को रुचने पर उसके प्रभाव से आप भी कभी-कभी कुछ कह जाते हैं. ऐसी ही रचना / प्रतिरचना इस स्तम्भ के अंतर्गत आमंत्रित है.
रचना:
गीत-  --रेखा राजवंशी, सिडनी
> रातों की तन्हाई में अब दिल बहलाना सीख लिया
> अश्कों की बारिश में भी हंसना मुस्काना सीख लिया

> सावन की रिमझिम हो या फिर पतझड़ के वीराने हों
> टूटे ख़्वाब पुराने हों या फिर मदमस्त तराने हों
> जो भी मिले प्यार से सबको गले लगाना सीख लिया
> रातों की तन्हाई में अब दिल बहलाना सीख लिया

> अपने गम को क्या देखें जब दुनिया ही दीवानी है
> कितने मासूमों के घर में उलझी हुई कहानी है
> उजड़े हुए दयारों में इक दिया जलाना सीख लिया
> रातों की तन्हाई में अब दिल बहलाना सीख लिया

> तुम गिनते थे हीरे-मोती, या संपर्क अमीरों के
> बहुत बुरे लगते थे तुमको आंसू, दर्द फकीरों के
> उनके चिथड़ों पर मैंने पैबंद लगाना सीख लिया
> रातों की तन्हाई में अब दिल बहलाना सीख लिया
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 > http://hindilovers-oz.blogspot.com/
प्रति रचना:
मुक्तिका -- संजीव 'सलिल'
*
मुक्तिका:
सीख लिया...
संजीव 'सलिल'
*
शोर-शराबे में दुनिया के, मौन घटाना सीख लिया.
खुदसे दूर रहे हम इतने, खुद को पाना सीख लिया...

जब तक औरों पर निर्भर थे, बोझा लगते थे सबको.
हुए आत्मनिर्भर तो, औरों ने अपनाना सीख लिया..

जब-जब दिल पर चोट लगी, तब-तब जीभरकर मुस्काये.
वीणा के तारों से हमने, गीत सुनाना सीख लिया..

संबंधों के अनुबंधों के, प्रतिबंधों ने सतत छला.
जब-जब नाते गये निभाए, किस्त चुकाना सीख लिया..

साथ तिमिर ने तनिक न छोड़ा, होली हो या दीवाली.
हमने तम की तन्हाई से, भोर उगाना सीख लिया..

जिसको चाहा वह वातायन से झाँके, दुनिया देखे.
हमने उसके दर्शन, हर कंकर में पाना सीख लिया..

डर-डर कर जीना छोड़ा तो, दर-दर ने बढ़ अपनाया.
भूल गया ठोकरें लगाना, गले लगाना सीख लिया..

नेह-नर्मदा में अवगाहन, कर जीवन का मंत्र मिला.
लहर-लहर से पल में मिटना, फिर बन जाना सीख लिया.. 

रेखा, वर्तुल, वृत्तों ने उलझाया, 'सलिल' बिंदु पाया.
हर उठाव में, हर झुकाव में, राह बनाना सीख लिया..

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http://divyanarmada.blogspot.com

2 टिप्‍पणियां:

Dr.M.C. Gupta ✆ ekavita ने कहा…

सलिल जी,

बहुत सुंदर.

निम्न विशेष है--

साथ तिमिर ने तनिक न छोड़ा, होली हो या दीवाली.
हमने तम की तन्हाई से, भोर उगाना सीख लिया..

--ख़लिश

- rekha_rajvanshi@yahoo.com.au ने कहा…

आदरणीय सलिल जी
उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद. सलिल जी आपकी रचना अच्छी लगी.

रेखा राजवंशी


https://sahityaaustralia.wordpress.com/
http://hindilovers-oz.blogspot.com/