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शनिवार, 11 जून 2011

घनाक्षरी: ---संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी:
संजीव 'सलिल'
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बाबा रामदेव जी हैं, विश्व की धरोहर, बाबा रामदेव जी के, साथ खड़े होइए.
हाथ मलें शीश झुका, शीश पीटें बाद में ना, कोई अनहोनी देख, बाद में न रोइए..
सरकार को जगायें, सरदार को उठायें, सड़कों पर आइये, राजनीति धोइए.
समय पुकारता है, सोयें खोयें रोयें मत, तुमुल निनाद कर, क्रांति-बीज बोइए..
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कौन किसी का यहाँ है?, कौन किसी का सगा है?, सेंकते सभी को देखा, रोटी निज स्वार्थ की.
लोकतंत्र में न लोक, मत सुना जा रहा है, खून चूसता है तंत्र, अदेखी लोकार्थ की.
घूस लेता नेता रोज, रिश्वतों का बोलबाला, अन्ना-बाबा कर रहे हैं, बात सर्वार्थ की.
घरों से निकल आयें, गीत क्रांति के सुनायें, बीन शांति की बजायें, नीति परमार्थ की.
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अपना-पराया भूल, सह ले चुभन-शूल, माथे पर लगा धूल, इस प्यारे देश की.
माँ की कसम तुझे, पीछे मुड़  देख मत, लानत मिलेगी यदि, जां की फ़िक्र लेश की..
प्रतिनिधि को पकड़, नत मत हो- अकड़, बात मनवा झगड़, तजे नीति द्वेष की.
'सलिल' विदेश में जो, धन इस देश का है, देश वापिस लाइये, है शपथ अशेष की..
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(मनहरण, घनाक्षरी, कवित्त छंद : ४-४-४-७)
  

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