घनाक्षरी
संजीव 'सलिल'
*
.... राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइये..
नीतिपरक :
जनगण हितकर, लोकनीति शीश धर, पद-मद भूलकर, देश को चलाइए.
सबसे अधिक दीन, सबसे अधिक हीन, जो है हित उसका न, कभी भी भुलाइए..
दीनबंधु दीनानाथ, द्वारिका के अधिपति, सम राज-पाट तज, मीत अपनाइए..
कंस को पछारिए या, मुरली को बजाइए, राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइये..
*
लाख़ मतभेद रहें, पर मनभेद न हों, भाई को गले हमेशा, हँस के लगाइए.
लात मार दूर कर, दशमुख-अनुज सा, दुश्मन को न्योत घर, कभी भी न लाइए..
भाई को दुश्मन कह, इंच भर भूमि न दे, नारि-अपमान कर, नाश न बुलाइए.
छल-छद्म, दाँव-पेंच, कूटनीति, दंद-फंद, राज नीति का अखाड़ा घर न बनाइये..
*
.....बन्नो का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है..
शहनाई गूँज रही, नाच रहा मन मोर, जल्दी से हल्दी लेकर, करी मनुहार है.
आकुल हैं-व्याकुल हैं, दोनों एक-दूजे बिन, नया-नया प्रेम रंग, शीश पे सवार है..
चन्द्रमुखी, सूर्यमुखी, ज्वालामुखी रूप धरे, सासू की समधन पे, जग बलिहार है..
गेंद जैसा या है ढोल, बन्ना तो है अनमोल, बन्नो का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है..
*
....देख तेरी सुंदरता चाँद भी लजाया है..
जिसका जो जोड़ीदार, करे उसे वही प्यार, कभी फूल कभी खार, मन के मन भाया है.
पास आये सुख मिले, दूर जाये दुःख मिले, साथ रहे पूर्ण करे, जिया हरषाया है..
चाह वाह आह दाह, नेह नदिया अथाह, कलकल हो प्रवाह, डूबा-उतराया है.
गर्दभ कहे गधी से, आँख मूँद कर जोड़, देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है..
*
.... नार बिन चले ना.
पाँव बिन चल सके, छाँव बिन ढल सके, गाँव बिन पल सके, नार बिन चले ना.
नार करे वार जब, नैनन में नार आये, नार बाँध कसकर, नार बिन पले ना..
नार कटे ढोल बजे, वंश-बेल आगे बढ़े, लडुआ-हरीरा बँटे, बिन नार जले ना.
'सलिल' नवीन नार, नगद या हो उधार, हार प्यार अंगार, टाले से टले ना..
(छंद विधान : ८-८-८-७)
**********
Acharya Sanjiv Salil
संजीव 'सलिल'
*
.... राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइये..
नीतिपरक :
जनगण हितकर, लोकनीति शीश धर, पद-मद भूलकर, देश को चलाइए.
सबसे अधिक दीन, सबसे अधिक हीन, जो है हित उसका न, कभी भी भुलाइए..
दीनबंधु दीनानाथ, द्वारिका के अधिपति, सम राज-पाट तज, मीत अपनाइए..
कंस को पछारिए या, मुरली को बजाइए, राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइये..
*
लाख़ मतभेद रहें, पर मनभेद न हों, भाई को गले हमेशा, हँस के लगाइए.
लात मार दूर कर, दशमुख-अनुज सा, दुश्मन को न्योत घर, कभी भी न लाइए..
भाई को दुश्मन कह, इंच भर भूमि न दे, नारि-अपमान कर, नाश न बुलाइए.
छल-छद्म, दाँव-पेंच, कूटनीति, दंद-फंद, राज नीति का अखाड़ा घर न बनाइये..
*
.....बन्नो का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है..
शहनाई गूँज रही, नाच रहा मन मोर, जल्दी से हल्दी लेकर, करी मनुहार है.
आकुल हैं-व्याकुल हैं, दोनों एक-दूजे बिन, नया-नया प्रेम रंग, शीश पे सवार है..
चन्द्रमुखी, सूर्यमुखी, ज्वालामुखी रूप धरे, सासू की समधन पे, जग बलिहार है..
गेंद जैसा या है ढोल, बन्ना तो है अनमोल, बन्नो का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है..
*
....देख तेरी सुंदरता चाँद भी लजाया है..
जिसका जो जोड़ीदार, करे उसे वही प्यार, कभी फूल कभी खार, मन के मन भाया है.
पास आये सुख मिले, दूर जाये दुःख मिले, साथ रहे पूर्ण करे, जिया हरषाया है..
चाह वाह आह दाह, नेह नदिया अथाह, कलकल हो प्रवाह, डूबा-उतराया है.
गर्दभ कहे गधी से, आँख मूँद कर जोड़, देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है..
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.... नार बिन चले ना.
पाँव बिन चल सके, छाँव बिन ढल सके, गाँव बिन पल सके, नार बिन चले ना.
नार करे वार जब, नैनन में नार आये, नार बाँध कसकर, नार बिन पले ना..
नार कटे ढोल बजे, वंश-बेल आगे बढ़े, लडुआ-हरीरा बँटे, बिन नार जले ना.
'सलिल' नवीन नार, नगद या हो उधार, हार प्यार अंगार, टाले से टले ना..
(छंद विधान : ८-८-८-७)
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
11 टिप्पणियां:
नन्हे बिटवा भाई ,
चिरंजीव भवः
घनाक्षरी अच्छी लगी
Sheila Madan 03 जून 15:09
achal verma
धन्य हैं आचार्य आप तो, हैं कविता की खान|
पढ़-पढ़ हम सुख पाते जाते मन में करें गुणगान सरस्वती और चित्रगुप्त दोनों का है आशीष यही प्रार्थना है हरदम सतसंग रखें भगवान् |
मिले अचल-आशीष जिसे वह,क्यों न बने रास-खान.
महिमा आशिषदाता की है, दिया मुझे सम्मान..
sn Sharma ✆ ekavita
घनाक्षरी में आपकी निपुणता प्रभावशाली रूप से दिखी है | साधुवाद!
विशेष -
गर्दभ कहे गधी से आँख मूँद कर जोड़ , देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है
और - हार,प्यार,अंगार टाले से टले ना |
सादर
कमल
Amitabh Tripathi ✆ ekavita
वाह! आचार्य जी
आप सस्वर पाठ अच्छा करते होंगे|
बधाई!
सादर
अमित
- drdeepti25@yahoo.co.in
प्रकांड विद्वान सलिल जी,
आप में 'केशवदास' की आत्मा नज़र आ रही है....
साधुवाद !
सादर,
दीप्ति
अमित दीप्ति हो कमल सी, नहीं 'सलिल' का भाग्य.
शब्द ब्रम्ह आराधना, साँसों का सौभाग्य..
aachal verma ekavita
भगवान करे ये घनाक्षरी दूर दूर तक पहुंचे और इसकी आवाज़
वहा भी जाय जहां इसकी बहुत आवश्यकता है |
" कुछ तो अब बदले ज़माना|मिल गये अब बाबा , आन्ना |
भारती का हो भला जग में चमक जाए ये गाना |"
- gautamrb03@yahoo.com
आ. संजीव 'सलिल' जी,
घनाक्षरी छंद काफी समय से लुप्त से हो गये थे आज पुनः लिखे जा रहे हैं
ई-कविता में घनाक्षरी छंद पढकर बहुत अच्छा लगा | आपको इन छंदों
में विशेष रूप से योग्यता है आपको वधाई हो |
अंतिम छंद में आपने ८-८-८-७ मात्राओं का उल्लेख किया है क्या सभी
घनाक्षरी छंदों में यही विधा होती है | कृपया थोडा सा बताये तो आपकी
अति कृपा होगी |
मैंने शायद नूतन कपूर के द्वारा १९८२ के मुंबई कवि सम्मेलन में पढ़े गये
घनाक्षरी छंद सुने हैं | उसके वाद डॉ. कीर्ति काले, गजेन्द्र सोलंकी, तथा
मेरठ के मनोज कुमार मनोज से ये घनाक्षरी छंद सुने जा रहे है | मुझे इनकी
मात्राओं में भिन्नता सी लगती है | क्या सबकी परिमार्जन विधा एकसी
होती है | या ८-८-८-७ को घटा-बढ़ा भी सकते है |
मैंने घनानन के वारे में सुना था किन्तु छंद बहुत कम सुनने को मिले जिन्हें
मैं काफी पसंद करता हूँ | आपसे निवेदन है कि समय मिलने पर कुछ लिख
कर प्रकाश डाल सकें तो आपका आभारी रहूँगा |
सादर आभार के साथ -
रामबाबू गौतम
- mukku41@yahoo.com
वाह सलिल जी क्या खूब लिखते है आप ! आदरणीय.अमितजी, दीप्ति जी और कमल जी पर जो आपने लाइने लिखी हैं उनकी मधुरता ही अलग है. आपसे प्रेरणा पाकर मेरी कलम क्या कहती है, देखिए -
कमल निश्छल, प्रेमल, बातें उनकी वत्सल
सबसे करते प्यार है, देते आशीष हर पल
दीप्ति दीप्तिमान है, तेजोमय प्रतिभावान है,
सहज, सरल,विनम्र है, ज्ञान में वो समग्र है
लिखती कितना प्यारा है,भाव उनके प्रखर हैं
कोई उनकी दीदी हैं , तो कोई उनके दादा है.
सबका मेल मिलाप करे, देखे उन्हें विधाता है ! (अचरज से)
अमित तो अमिताभ है, नवरस की वो शान हैं
जादू भरा कलम में उनकी, वो सबके सरताज हैं
शुभेच्छा के साथ
मुकेश
sanjiv verma ✆ ekavita
विवरण दिखाएँ ११:१४ अपराह्न (17 मिनट पहले)
आत्मीय गौतम जी, दीप्ति जी, अचल जी, कमल जी, अमिताभ जी
आपका आशीष पाकर मनोबल बढ़ा. घनाक्षरी का परिचय निम्न है. कुछ उदाहरण भी संलग्न हैं.
दीप्ति जी ! मुझमें आचार्य केशवदास जी की आत्मा का सहत्रंश भी नहीं है, वस्तुतः उनके चरणों की रज कल एक कण होने की भी पात्रता नहीं है. आपके औदार्य को नतमस्तक नमन किन्तु भय है कि चन्द्रवदन मृगलोचानियों को 'बाबा' कहने की प्रेरणा न मिल जाये.
छंद परिचय: मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त -- संजीव 'सलिल'
मनहरण घनाक्षरी छंद/ कवित्त
संजीव 'सलिल'
*
मनहरण घनाक्षरी छंद एक वर्णिक छंद है.
इसमें मात्राओं की नहीं, वर्णों अर्थात अक्षरों की गणना की जाती है. ८-८-८-७ अक्षरों पर यति या विराम रखने का विधान है. चरण (पंक्ति) के अंत में लघु-गुरु हो. इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान दें. स्व. ॐ प्रकाश आदित्य ने इस छंद में प्रभावी हास्य रचनाएँ की हैं.
इस छंद का नामकरण 'घन' शब्द पर है जिसके हिंदी में ४ अर्थ १. मेघ/बादल, २. सघन/गहन, ३. बड़ा हथौड़ा, तथा ४. किसी संख्या का उसी में ३ बार गुणा (क्यूब) हैं. इस छंद में चारों अर्थ प्रासंगिक हैं. घनाक्षरी में शब्द प्रवाह इस तरह होता है मेघ गर्जन की तरह निरंतरता की प्रतीति हो. घंक्षरी में शब्दों की बुनावट सघन होती है जैसे एक को ठेलकर दूसरा शब्द आने की जल्दी में हो. घनाक्षरी पाठक/श्रोता के मन पर प्रहर सा कर पूर्व के मनोभावों को हटाकर अपना प्रभाव स्थापित कर अपने अनुकूल बना लेनेवाला छंद है.
घनाक्षरी में ८ वर्णों की ३ बार आवृत्ति है. ८-८-८-७ की बंदिश कई बार शब्द संयोजन को कठिन बना देती है. किसी भाव विशेष को अभिव्यक्त करने में कठिनाई होने पर कवि १६-१५ की बंदिश अपनाते रहे हैं. इसमें आधुनिक और प्राचीन जैसा कुछ नहीं है. यह कवि के चयन पर निर्भर है. १६-१५ करने पर ८ अक्षरी चरणांश की ३ आवृत्तियाँ नहीं हो पातीं.
मेरे मत में इस विषय पर भ्रम या किसी एक को चुनने जैसी कोई स्थिति नहीं है. कवि शिल्पगत शुद्धता को प्राथमिकता देना चाहेगा तो शब्द-चयन की सीमा में भाव की अभिव्यक्ति करनी होगी जो समय और श्रम-साध्य है. कवि अपने भावों को प्रधानता देना चाहे और उसे ८-८-८-७ की शब्द सीमा में न कर सके तो वह १६-१५ की छूट लेता है.
सोचने का बिंदु यह है कि यदि १६-१५ में भी भाव अभिव्यक्ति में बाधा हो तो क्या हर पंक्ति में १६+१५=३१ अक्षर होने और १६ के बाद यति (विराम) न होने पर भी उसे घनाक्षरी कहें? यदि हाँ तो फिर छन्द में बंदिश का अर्थ ही कुछ नहीं होगा. फिर छन्दबद्ध और छन्दमुक्त रचना में क्या अंतर शेष रहेगा. यदि नहीं तो फिर ८-८-८ की त्रिपदी में छूट क्यों?
मंचीय कवि घनाक्षरी को लय के आधार पर गेयता को प्रमुखता देकर रचते-गाते हैं और बहुधा जाने-अनजाने छंद विधान का उल्लंघन कर जाते हैं.
घनाक्षरी रचना विधान :
आठ-आठ-आठ-सात पर यति रखकर,
मनहर घनाक्षरी छन्द कवि रचिए.
लघु-गुरु रखकर चरण के आखिर में,
'सलिल'-प्रवाह-गति, वेग भी परखिये..
अश्व-पदचाप सम, मेघ-जलधार सम,
गति अवरोध न हो, यह भी निरखिए.
करतल ध्वनि कर, प्रमुदित श्रोतागण-
'एक बार और' कहें, सुनिए-हरषिए..
*
वर्षा-वर्णन :
उमड़-घुमड़कर, गरज-बरसकर,
जल-थल समकर, मेघ प्रमुदित है.
मचल-मचलकर, हुलस-हुलसकर,
पुलक-पुलककर, मोर नरतित है..
कलकल,छलछल, उछल-उछलकर,
कूल-तट तोड़ निज, नाद प्रवहित है.
टर-टर, टर-टर, टेर पाठ हेर रहे,
दादुर 'सलिल' संग स्वागतरत है..
*
भारत गान :
भारत के, भारती के, चारण हैं, भाट हम,
नित गीत गा-गाकर आरती उतारेंगे.
श्वास-आस, तन-मन, जान भी निसारकर,
माटी शीश धरकर, जन्म-जन्म वारेंगे..
सुंदर है स्वर्ग से भी, पावन है, भावन है,
शत्रुओं को घेर घाट मौत के उतारेंगे-
कंकर भी शंकर है, दिक्-नभ अम्बर है,
सागर-'सलिल' पग नित्य ही पखारेंगे..
*
हास्य घनाक्षरी
सत्ता जो मिली है तो जनता को लूट खाओ,
मोह बहुत होता है घूस मिले धन का|
नातों को भुनाओ सदा, वादों को भुलाओ सदा,
चाल चल लूट लेना धन जन-जन का|
घूरना लगे है भला, लुगाई गरीब की को,
फागुन लगे है भला, साली-समधन का|
विजया भवानी भली, साकी रात-रानी भली,
चौर्य कर्म भी भला है आँख-अंजन का||
*
नीतिपरक:
लक्ष्य जो भी वरना हो, धाम जहाँ चलना हो,
काम जो भी करना हो, झटपट करिए.
तोड़ना नियम नहीं, छोड़ना शरम नहीं,
मोड़ना धरम नहीं, सच पर चलिए.
आम आदमी हैं आप, सोच मत चुप रहें,
खास बन आगे बढ़, देशभक्त बनिए-
गलत जो होता दिखे, उसका विरोध करें,
'सलिल' न आँख मूँद, चुपचाप सहिये.
*
छंद विधान: वर्णिक छंद, आठ चरण,
८-८-८-७ पर यति, चरणान्त लघु-गुरु.
*********
Acharya Sanjiv Salil
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