मुक्तिका:
...क्यों हो???
संजीव 'सलिल'
*
लोक को मूर्ख बनाते क्यों हो?
रोज तुम दाम बढ़ाते क्यों हो?
वादा करते हो बात मानोगे.
दूसरे पल ही भुलाते क्यों हो?
लाठियाँ भाँजते निहत्थों पर
लाज से मर नहीं जाते क्यों हो?
नाम तुमने रखा है मनमोहन.
मन तनिक भी नहीं भाते क्यों हो?
जो कपिल है वो कुटिल, धूर्त भी है.
करके विश्वास ठगाते क्यों हो?
ये न भूलो चुनाव फिर होंगे.
अंत खुद अपना बुलाते क्यों हो?
भोली है, मूर्ख नहीं है जनता.
तंत्र से जन को डराते क्यों हो?
घूस का धन जो विदेशों में है?
लाते वापिस न, छिपाते क्यों हो?
बाबा या अन्ना नहीं एकाकी.
संग जनगण है, भुलाते क्यों हो?
*************
...क्यों हो???
संजीव 'सलिल'
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लोक को मूर्ख बनाते क्यों हो?
रोज तुम दाम बढ़ाते क्यों हो?
वादा करते हो बात मानोगे.
दूसरे पल ही भुलाते क्यों हो?
लाठियाँ भाँजते निहत्थों पर
लाज से मर नहीं जाते क्यों हो?
नाम तुमने रखा है मनमोहन.
मन तनिक भी नहीं भाते क्यों हो?
जो कपिल है वो कुटिल, धूर्त भी है.
करके विश्वास ठगाते क्यों हो?
ये न भूलो चुनाव फिर होंगे.
अंत खुद अपना बुलाते क्यों हो?
भोली है, मूर्ख नहीं है जनता.
तंत्र से जन को डराते क्यों हो?
घूस का धन जो विदेशों में है?
लाते वापिस न, छिपाते क्यों हो?
बाबा या अन्ना नहीं एकाकी.
संग जनगण है, भुलाते क्यों हो?
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4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर गीत उभर आया आपके इस ग़ज़ल में |
आप का बहुत बहुत धन्यबाद |
Your's ,
Achal Verma
Kailash C Sharma HRUDAYAM.
8 jun 2011
बहुत सच कहा है...
bahut achchha likhte hain
Dayanidhi Batsa
9:09pm Jun 8
Mukesh Gupta 10:55pm Jun 8
bahut badhiya
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