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बुधवार, 29 जून 2011

दोहा सलिला: अधर हुए रस लीन --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:                                                                                                 
अधर हुए रस लीन
संजीव 'सलिल'
*
अधर अधर पर जब धरे, अधर रह गये मूक.
चूक हुई कब?, क्यों?, कहाँ?, उठी न उर में हूक..
*
अधर अबोले बोलते, जब भी जी की बात.
अधर सुधारस घोलते, प्रमुदित होता गात..
*
अधर लरजते देखकर, अधर फड़ककर मौन.
किसने-किससे क्या कहा?, 'सलिल' बताये कौन??
*
अधर रीझकर अधर पर, सुना रहा नवगीत.
अधर खीझकर अधर से, कहे- मौन हो मीत..
*
तोता-मैना अधर के, किस्से हैं विख्यात.
कहने-सुनने में 'सलिल', बीत न जाये रात..
*
रसनिधि पाकर अधर में, अधर हुए रसलीन.
विस्मित-प्रमुदित हैं अधर, देख अधर को दीन..
*
अधर मिले जब अधर से, पल में बिसरा द्वैत.
माया-मायाधीश ने, पल में वरा अद्वैत..
*
अधरों का स्पर्श पा, वेणु-शंख संप्राण.
दस दिश में गुंजित हुए, संजीवित निष्प्राण..
*
तन-मन में लेने लगीं, अनगिन लहर लिहोर.
कहा अधर ने अधर से, 'अब न छुओ' कर जोर..
*
यह कान्हा वह राधिका, दोनों खासमखास.
श्वास वेणु बज-बज उठे, अधर करें जब रास..
*
ओष्ठ, लिप्स, लब, होंठ दें, जो जी चाहे नाम.
निरासक्त योगी अधर, रखें काम से काम..
*
अधर लगाते आग औ', अधर बुझाते आग.
अधर गरल हैं अमिय भी, अधर राग औ' फाग..
*
अधर अधर को चूमकर, जब करते रसपान.
'सलिल' समर्पण ग्रन्थ पढ़, बन जाते रस-खान..
*
अधराराधन के पढ़े, अधर न जब तक पाठ.
तब तक नीरस जानिए, उनको जैसे काठ..
*
अधर यशोदा कान्ह को, चूम हो गये धन्य.
यह नटखट झटपट कहे, 'मैया तुम्हीं अनन्य'..
*
दरस-परस कर मत तरस, निभा सरस संबंध.
बिना किसी प्रतिबन्ध के, अधर करे अनुबंध..
*
दिया अधर ने अधर को, पल भर में पैगाम.
सारा जीवन कर दिया, 'सलिल'-नाम बेदाम..
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

6 टिप्‍पणियां:

मुकेश इलाहाबादी ने कहा…

सलिल जी,

खूबसूरत दोहो के लिये बहुत बहुत बधायी,

मगर (होठो) के बाबत मै कहना चाहूगा


अब कोई किस्सा कहते नही ये होठ

ज़माने ने सिल दिये किस्सेबाज़ो के होठ



मुकेश इलाहाबादी

- chandawarkarsm@gmail.com ने कहा…

आचार्य सलिल जी,
"अधरम्‌ मधुरम्‌" !
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita ने कहा…

आ० आचार्य जी
सभी दोहे आपके काव्य-कौशल की चमक लिये हैं |
विशेष-

अधर लगाते आग औ अधर बुझाते आग

अधर गरल हैं अमिय भी अधर राग औ फाग

सादर;
कमल

madanmohanarvind@gmail.com ने कहा…

Madan Mohan Sharma ✆

तन-मन में लेने लगीं, अनगिन लहर हिलोर.
कहा अधर ने अधर से, 'अब न छुओ' कर जोर.
वाह आचार्य जी, बधाई.
सादर
मदन मोहन 'अरविन्द'

dkspoet@yahoo.com ने कहा…

dks poet ✆ ekavita

आदरणीय आचार्य जी,
हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
और एक नौजवान की तरफ से यह श्रद्धा सुमन ग्रहण करें।

सरस, सजल, सुकुमार ये, सुंदर सुमधुर छंद
सहस बार ‘सज्जन’ सुनें, सदा सराहें बंद

सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

navin c. chaturvedi. ने कहा…

navin
अधरों का स्पर्श पा, वेणु-शंख संप्राण.
दस दिश में गुंजित हुए, संजीवित निष्प्राण..
विलक्षण दोहा

पढ़ रहा हूँ, रस पान कर रहा हूँ श्रीमान
तन-मन में लेने लगीं, अनगिन लहर लिहोर.
कहा अधर ने अधर से, 'अब न छुओ' कर जोर..
एक निवेदन है - यहाँ 'कर ज़ोर'; की जगह 'बरजोर' कैसा रहेगा ?

ओष्ठ, लिप्स, लब, होंठ दें, जो जी चाहे नाम.
निरासक्त योगी अधर, रखें काम से काम..
जबर्दस्त

सर ये दोहा भी आप से कुछ मांग रहा है
अधर लगाते आग औ', अधर बुझाते आग.
अधर गरल हैं अमिय भी, अधर राग औ' फाग..
इस के लिए भी सल्यूट

अधराराधन के पढ़े, अधर न जब तक पाठ.
तब तक नीरस जानिए, उनको जैसे काठ..

आप कृपया इन सभी दोहों को अपनी अनुभवी दृष्टि से दूसरे के दोहे समझ कर परखिये, तराशिए और तब दोबारा एडिट करिएगा
ये वाकई विलक्षण कृति की शुरुआत है

आशा करता हूँ आप मेरे निवेदन को गंभीरता से लेंगे

सर ये दोहे आप का समय मांग रहे हैं
कुछ तो वाकई विलक्षण बन चुके हैं, और कुछ आतुर हैं उस श्रेणी में पहुँचने के लिए