कुण्डलिनी छन्द - वास्तविकता स्वीकारें
जब से आइ पि एल ने, यार जगाई आस|
काउन्टी किरकेट का, क्रेज़ रहा ना खास||
क्रेज़ रहा ना खास, वास्तविकता स्वीकारें|
निज गृह, जन, गुण, धर्म, समाज सदा सत्कारें|
निज 'भू' ही सम्मान - दिलाती - कहते तो सब|
किंतु समझते लोग, वक्त - समझाता है जब||
काउन्टी किरकेट का, क्रेज़ रहा ना खास||
क्रेज़ रहा ना खास, वास्तविकता स्वीकारें|
निज गृह, जन, गुण, धर्म, समाज
निज 'भू' ही सम्मान - दिलाती - कहते तो सब|
किंतु समझते लोग, वक्त - समझाता है जब||
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आइ सी सी की चौधराहट को आप लोग भूले नहीं होंगे| पर जब से आइ पी एल फॉर्मेट मशहूर हुआ है, इस को ले कर जब-तब आपत्तियाँ दर्ज कराई जाती रही हैं| हम मानते हैं कि आइ पी एल की अपनी खामियाँ हैं, पर क्या आइ सी सी दूध धुली थी? या है?
आज कम से कम भारतीय हुनरमंद प्रतियोगी किसी की इनायत के मोहताज तो नहीं हैं...................
भाई हमने तो अपने मन की बात कह दी है............................ . आप क्या कहते हैं?
साभार
नवीन सी चतुर्वेदी
मुम्बई
मैं यहाँ हूँ : ठाले बैठे
साहित्यिक आयोजन : समस्या पूर्ति
दूसरे कवि / शायर : वातायन
मेरी रोजी रोटी : http;//vensys.biz
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