एक कुण्डली:
पानी बिन यमुना दुखी
संजीव 'सलिल'
*
पानी बिन यमुना दुखी, लज्जित देखे ताज.
सत को तजकर झूठ को, पूजे सकल समाज..
पूजे सकल समाज, गंदगी मन में ज्यादा.
समय-शाह को, शह देता है मानव प्यादा..
कहे 'सलिल' कविराय, न मानव कर नादानी.
सारा जीवन व्यर्थ, न हो यदि बाकी पानी..
पानी बिन यमुना दुखी
संजीव 'सलिल'
*
पानी बिन यमुना दुखी, लज्जित देखे ताज.
सत को तजकर झूठ को, पूजे सकल समाज..
पूजे सकल समाज, गंदगी मन में ज्यादा.
समय-शाह को, शह देता है मानव प्यादा..
कहे 'सलिल' कविराय, न मानव कर नादानी.
सारा जीवन व्यर्थ, न हो यदि बाकी पानी..
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