अमृत ध्वनि छन्द - उन्नत धारा प्रेम की
तब मानव मन को मिले, मन-माफिक सुख चैन||
मन-माफिक सुख चैन, अबाधित होंय अनन्दित|
भाव सुवासित, जन हित लक्षित, मोद मढें नित|
रंज न किंचित, कोई न वंचित, मिटे अदावत|
रहें इहाँ-तित, सब जन रक्षित, सदा समुन्नत||
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घनाक्षरी कवित्त - ढूँढ के छली को पेश कीजै दरबार में
आज सपने में ललिता ने ये दिया हुकुम,
ढूँढ के छली को पेश कीजे दरबार में|
दिलों को दुखाने की मिलेगी सज़ा उसे आज,
जुर्म इकबाल होगा अदालतेप्यार में|
प्रेम का कनून तोड़ा, राधा जी से मुँह मोड़ा,
बख्शा न जाएगा वो, छपा दो अख़बार में|
सभी जगा ढूँढा, पर, मिला नहीं श्याम, चूँकि-
बैठा था वो तो छुप के दिलेसरकार में||
ढूँढ के छली को पेश कीजे दरबार में|
दिलों को दुखाने की मिलेगी सज़ा उसे आज,
जुर्म इकबाल होगा अदालतेप्यार में|
प्रेम का कनून तोड़ा, राधा जी से मुँह मोड़ा,
बख्शा न जाएगा वो, छपा दो अख़बार में|
सभी जगा ढूँढा, पर, मिला नहीं श्याम, चूँकि-
बैठा था वो तो छुप के दिलेसरकार में||
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सांगोपांग सिंहावलोकन छन्द -
तान दें पताका उच्च हिंद की जहान में
ध्यान दें समाज पर अग्रज हमारे सब,
अनुजों की कोशिशों को बढ़ के उत्थान दें|
उत्थान दें जन-मन रुचिकर रिवाजों को,
भूत काल वर्तमान भावी को भी मान दें|
मान दें मनोगत विचारों को समान रूप,
हर बार अपनी ही जिद्द को न तान दें|
तान दें पताका उच्च हिंद की जहान में औ,
उस के तने रहने पे भी फिर ध्यान दें||
अनुजों की कोशिशों को बढ़ के उत्थान दें|
उत्थान दें जन-मन रुचिकर रिवाजों को,
भूत काल वर्तमान भावी को भी मान दें|
मान दें मनोगत विचारों को समान रूप,
हर बार अपनी ही जिद्द को न तान दें|
तान दें पताका उच्च हिंद की जहान में औ,
उस के तने रहने पे भी फिर ध्यान दें||
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ग़ज़ल - फगुआ उमंग तरंग में
न सजावटें, न बनावटें, न बुना वटें, न घुमावटें|
चिठिया में हों, वो लिखावटें, ज ो हरें सकल, अकुलाहटें|१|
मृदुहास मय, परिहास भी, वही खास आस जगा गया|
मधुमास की, अभिलाष में, अतिशय ब ढ़ी झुँझलाहटें|२|
यदि प्रेम है, डरिए नहीं, अभिव् यक्त भी करिए सजन|
फगुआ उमंग तरंग में, क्यूँ न लू टें साथ तरावटें|३|
अनुपम, अमित, अविरल, अगम, अभिनव , अकथ, अनिवार्य सा|
अमि-रस भरा, यहु प्रेम-पथ, न चल ें यहाँ कडुवाहटें|४|
चिठिया में हों, वो लिखावटें, ज
मृदुहास मय, परिहास भी, वही खास
मधुमास की, अभिलाष में, अतिशय ब
यदि प्रेम है, डरिए नहीं, अभिव्
फगुआ उमंग तरंग में, क्यूँ न लू
अनुपम, अमित, अविरल, अगम, अभिनव
अमि-रस भरा, यहु प्रेम-पथ, न चल
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