एक घनाक्षरी
ये तो सब जानते हैं
संजीव 'सलिल'
*
ये तो सब जानते हैं, जान के न मानते हैं,
जग है असार पर, सार बिन चले ना.
मायका सभी को लगे, भला किन्तु ये है सच,
काम किसी का भी, ससुरार बिन चले ना..
मनुहार इनकार, इकरार इज़हार,
भुजहार अभिसार, प्यार बिन चले ना.
रागी हो विरागी हो या, हतभागी बड़भागी,
दुनिया में काम कभी, नार बिन चले ना..
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ये तो सब जानते हैं
संजीव 'सलिल'
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ये तो सब जानते हैं, जान के न मानते हैं,
जग है असार पर, सार बिन चले ना.
मायका सभी को लगे, भला किन्तु ये है सच,
काम किसी का भी, ससुरार बिन चले ना..
मनुहार इनकार, इकरार इज़हार,
भुजहार अभिसार, प्यार बिन चले ना.
रागी हो विरागी हो या, हतभागी बड़भागी,
दुनिया में काम कभी, नार बिन चले ना..
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2 टिप्पणियां:
माना कि विकास, बीज - से ही होता है मगर
इस का प्रयोग किए- बिना, बीज फले ना|
इस में मिठास हो तो, अमृत समान लगे
खारापन हो अगर, फिर दाल गले ना|
इस का प्रवाह भला कौन रोक पाया बोलो
इस का महत्व भैया टाले से भी टले ना|
चाहे इसे पानी कहो, चाहे इसे ज्ञान कहो
सार तो यही है यार 'नार' बिन चले ना||
साभार
नवीन सी चतुर्वेदी
kya kahane......shukriya
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