कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

सुधियों के दोहे: --- आचार्य संजीव 'सलिल'

सुधियों के दोहे:

आचार्य संजीव 'सलिल'

'सलिल' स्नेह को स्नेह का, मात्र स्नेह उपहार.
स्नेह करे संसार में, सदा स्नेह-व्यापार..

स्नेह तजा सिक्के चुने, बने स्वयं टकसाल.
खनक न हँसती-बोलती, अब क्यों करें मलाल?.

जहाँ राम तहँ अवध है, जहाँ आप तहँ ग्राम.
गैर न मानें किसी को, रिश्ते पाल अनाम..

अपने बनते गैर हैं, अगर न पायें ठौर.
आम न टिकते पेड़ पर, पेड़ न तजती बौर..

वसुधा माँ की गोद है, कहो शहर या गाँव.
सभी जगह पर धूप है, सभी जगह पर छाँव..

निकट-दूर हों जहाँ भी, अपने हों सानंद.
यही मनाएँ दैव से, झूमें गायें छंद..

जीवन का संबल बने, सुधियों का पाथेय.
जैसे राधा-नेह था, कान्हा भाग्य-विधेय..

तन हों दूर भले प्रभो!, मन हों कभी न दूर.
याद-गीत नित गा सके, साँसों का सन्तूर..

निकट रहे बेचैन थे, दूर हुए बेचैन.
तरस रहे तरसा रहे, बोल अबोले नैन..

सुधियों की सुधि लीजिये, बिसर जायेगी पीर.
धूप छाँव बरखा सहें, हँस- बिन हुए अधीर..

सुधियों के दोहे 'सलिल', स्मृति-दीर्घा जान.
कभी लगें अपने सगे, कभी लगें मेहमान..

+++++++++++++++++++++++++++++
divyanarmada.blogspot.com
*****************************

10 टिप्‍पणियां:

montu singh ने कहा…

सलिल जी!
नमस्कार, आ जय भोजपुरी.

निकट रहे बेचैन थे, दूर हुए बेचैन.
तरस रहे तरसा रहे, 'बोल अबोले नैन..

का कही राउुर रचना के?
हम लेखक भा कवि ना हाई एही से कुच्छ सही शब्द नैखि सोच पावत पर एतना बाड़िया रचना
बा की एकर जोड़ ना हो सकेला.
जय भोजपुरी.

sanjiy kumar singh ने कहा…

आचार्य जी,
सादर प्रणाम !

अपना दोहन के माध्यम से जीवन के कई गो पहलु के जिवंत चित्रण कैले बानी, रौवा| मन करत बा बार-बार पढ़त रहीं|

जय भोजपुरी.

dinesh thakur ने कहा…

सलिल जी!
प्रणाम, आ जय भोजपुरी.

तन हों दूर भले प्रभो!, मन हों कभी न दूर.
याद-गीत नित गा सके, साँसों का सन्तूर..

बहुत नीमन रचना बा, हमरो बार बार पढ़े के मान करता.
राउर अगिलका रचना के इंतजार बा ......
जय भोजपुरी

sanjay pandey. ने कहा…

सलिल जी!
पर्णाम आ जय भोजपुरी |
तन हो दूर मन हो कभी न दूर
बहुत बढ़िया लाइन बा दिल छू लेलस |और भेजी हम लोग जोहट बनी |धन्यवाद
संजय पांडे ...जय भोजपुरी

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद.

anoop shrivastava ने कहा…

सलिल जी सादर प्रणाम ,
राउर स्नेह, राउर सानिध्य के अनुभूति करौलस । ए ही तरह आपन आशीर्वाद बनवले रहब ।
हमरे जइसन लोग खातिर राउर रचना काफी प्रेरणाप्रद बा ।
जय भोजपुरी
अनूप

dhanendra kumar srivastav ने कहा…

'सलिल' स्नेह को स्नेह का, मात्र स्नेह उपहार.
aapki pahali line he sabkuchh bol deti hai

Sudhir Kumar ने कहा…

आचार्य जी,
हमेशा का तरह राउर दोहा में राउर जिनगी भर के अनुभव साफ झलकता.
एक से बढ के एक आ शिक्षा देवे वाला दोहा हमनी के संगे बँटला खातिर धन्यवाद...

Navin abhojpuria ने कहा…

सलिल जी!
प्रणाम आ जय भोजपुरी

राउर रचना के कव्नओ जबाब नईखे । एक से एक बेहतरीन, सच्चाई के करीब आ समाज के असली चित्र देखावत राउर दोहा कोहिनुर बाडन स ।

जहाँ राम तहँ अवध है, जहाँ आप तहँ ग्राम.
गैर न मानें किसी को, रिश्ते पाल अनाम

बहुत खुब, सटीक बाडन स राउर हर दोहा, हर लाईन आ हर शब्द ।


साधुवाद बा !


जय भोजपुरी

mrs. saroj ने कहा…

सलिल जी!
प्रणाम.
राउर दोहा के एक एक पंक्ति के बहुत गूढ़ अर्थ बा .......और जीवन के हर पहलु के बहुत सुन्दर चित्रण के दर्शन होता .....


अपने बनते गैर हैं, अगर न पायें ठौर.
आम न टिकते पेड़ पर, पेड़ न तजती बौर..बहुत खूब

राउर अगिला रचना के इंतजार रही ......

jai bhojpuri