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रविवार, 14 मार्च 2010

नव गीत: ओ मेरे प्यारे अरमानों! संजीव 'सलिल'

नव गीत: 
ओ मेरे प्यारे अरमानों!   
संजीव 'सलिल'
*
ओ मेरे प्यारे अरमानों!,
आओ, तुम पर जान लुटाऊँ.
ओ मेरे सपने अनजानों!-
तुमको मैं साकार बनाऊँ...
*
मैं हूँ पंख, उड़ान तुम्हीं हो.
मैं हूँ खेत, मचान तुम्हीं हो.
मैं हूँ स्वर, सरगम हो तुम ही-
मैं हूँ अक्षर गान तुम्हीं हो.

ओ मेरी निश्छल मुस्कानों!
आओ, लब पर तुम्हें सजाऊँ...
*
मैं हूँ मधु, मधुगान तुम्हीं हो.
मैं हूँ शर-संधान तुम्हीं हो.
जनम-जनम का अपना नाता-
मैं हूँ रस, रस-खान तुम्हीं हो.

ओ मेरे निर्धन धनवानों!
आओ, श्रम का पाठ पढाऊँ...
*
मैं हूँ तुच्छ, महान तुम्हीं हो.
मैं हूँ धरा, वितान तुम्हीं हो.
मैं हूँ षडरसमय मृदु व्यंजन-
'सलिल' मान का पान तुम्हीं हो.

ओ मेरी रचना संतानों!
आओ, दस दिश तुम्हें सजाऊँ...
***********************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

RaniVishal … ने कहा…

मैं हूँ पंख उड़ान तुम्हीं हो,
मैं हूँ खेत, मचान तुम्हीं हो.
मैं हूँ स्वर, सरगम हो तुम ही-
मैं अक्षर हूँ गान तुम्हीं हो.

Waah! bahut sundar rachana ....itana pyara geet ki har padane sunane wale ko lagega usi ke dil ki awaaz hai!!

Aapko bahut bahut bahut dhanywaad ise padane ke liye.

Udan Tashtari … ने कहा…

बहुत प्यारा गीत है..आचार्य जी को बधाई.

गिरीश बिल्लोरे ''पॉडकास्टर'' … ने कहा…

Badhaiya sweekariye ji

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

aap sabko dhanyavad.