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रविवार, 7 मार्च 2010

बाल गीत: सोन चिरैया ---संजीव वर्मा 'सलिल'



सोनचिरैया फुर-फुर-फुर,      
उड़ती फिरती इधर-उधर.      
थकती नहीं, नहीं रूकती.     
रहे भागती दिन-दिन भर.    

रोज सवेरे उड़ जाती.         
दाने चुनकर ले आती.        
गर्मी-वर्षा-ठण्ड सहे,          
लेकिन हरदम मुस्काती.    

बच्चों के सँग गाती है,      
तनिक नहीं पछताती है.    
तिनका-तिनका जोड़ रही,  
घर को स्वर्ग बनाती है.     

बबलू भाग रहा पीछे,       
पकडूँ  जो आए नीचे.       
घात लगाये है बिल्ली,      
सजग मगर आँखें मीचे.   

सोन चिरैया खेल रही.
धूप-छाँव हँस झेल रही.
पार करे उड़कर नदिया,
नाव न लेकिन ठेल रही.

डाल-डाल पर झूल रही,
मन ही मन में फूल रही.
लड़ती नहीं किसी से यह,
खूब खेलती धूल रही. 

गाना गाती है अक्सर,
जब भी पाती है अवसर.
'सलिल'-धार में नहा रही,
सोनचिरैया फुर-फुर-फुर. 

* * * * * * * * * * * * * *                                                              
= यह बालगीत सामान्य से अधिक लम्बा है. ४-४ पंक्तियों के ७ पद हैं. हर पंक्ति में १४ मात्राएँ हैं. हर पद में पहली, दूसरी तथा चौथी पंक्ति की तुक मिल रही है.
चिप्पियाँ / labels : सोन चिरैया, सोहन चिड़िया, तिलोर, हुकना, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', great indian bustard, son chiraiya, sohan chidiya, hukna, tilor, indian birds, acharya sanjiv 'salil' 

11 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला … ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत।

आचार्य जी की कलम ही ऐसे अद्भुत गीत रच सकती है। धन्यवाद्

सीमा सचदेव … ने कहा…

आचार्य जी!

आपकी कलम के आगे नत-मस्तक हैं हम । इतनी सुन्दर जानकारी और कविता के लिए धन्यवाद...
सीमा सचदेव

रावेंद्रकुमार'रवि' … ने कहा…

बहुत अच्छी कविता!
कुछ शब्द क्लिष्ट हो गए हैं!

Manju Gupta … ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी ,
सादर नमस्ते .
कला पक्ष -भाव पक्ष में उत्कृष्ट बालगीत .
क्षमा के साथ लिख रही हूँ कि वर्तनी गलती है .जैसे घात /पाती .

Divya Narmada ने कहा…

आचार्य संजीव वर्मा'सलिल' …

रावेंद्रकुमार रवि
आचार्य जी!
सबसे पहले तो मैं यह जानना चाहता हूँ कि
इस कविता को रचने की प्रेरणा आप को किससे/कैसे/कहाँ से/ मिली?

--सोन चिड़िया भारत के लुप्तप्राय पक्षियों में है. इसे संरक्षण देने हेतु भारत सरकार ने एक डाक टिकिट जारी किया. इस टिकिट को संग्रहित करने पर मुझे इस पक्षी की जानकारी मिली. अपने पुत्र मन्वंतर (सनी) और पुत्री तुहिना (हनी) हेतु बाल गीतों की रचना करते समय मस्तिष्क में कहीं छिपी बैठी सोन चिड़िया ने कलम से उतारकर मुझे भी चकित कर दिया. यह १.१०.१९९५ के दैनिक भास्कर जबलपुर में प्रकाशित भी हुई थी.

धन्यवाद, आचार्य जी!
बहुत अच्छी जानकारी मिली आपसे!
मैं तो अभी तक सोन चिरइया को काल्पनिक पक्षी समझता था!
क्या आप उस डाक टिकट का फ़ोटो समूह को उपलब्ध करवा सकते हैं?
--
अगली बात : अब भैया, गैया, गवैया आदि का उच्चारण
भइया, गइया, गवइया ही किया जाता है!
क्या इस कविता में भी चिरैया को चिरइया कर दिया जाना चाहिए?


--बुन्देली में 'चिरैया' हो प्रयोग होता है. भोजपुरी में शायद' चिरइया' लिखा जाता है. डाक टिकिट तलाशकर देने का प्रयास करता हूँ. इसे सोहन चिड़िया, हुकना तथा तिलोर भी कहते हैं. अंगरेजी में इसे ग्रेट इन्डियन बस्टर्ड कहा जाता है.

Divya Narmada ने कहा…

मंजू जी!

त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करने का धन्यवाद. सुधार कर दिए हैं. आप सभी का उत्साहवर्धन हेतु आभार.

Divya Narmada ने कहा…

टंकण त्रुटियाँ सुधार दी हैं.

सोन चिड़िया के कुछ चित्र भी लगा दिए हैं.

लेख समय मिलते ही देने का प्रयास करूंगा.

सीमा सचदेव … ने कहा…

agar mai galat nahi to punjabi me ise TATEEHARI kahaa jaataa hai aur yah to jaanaa pahchaanaa pakshi hai .

jab ham chote the to gaanv me rahate the aur gaanv ke beechom bheench ek badaa saa taalaab tha jahaa ham aksar khelne jaate aur vaheen par isse saamnaa bhi hota tha ab yah pakshi dikhata hai ya nahi nahi jaanti .

mujhe nahi maloom tha ki ise hi SON CHIRAIYAA kahte hai .

aapke maadhyam se anoothi jaankaari mili , usake lie dhanyavaad

Divya Narmada ने कहा…

सीमा जी!
मेरी जानकारी के अनुसार 'टिटहरी' और सोनचिरैया पक्षियों की दो भिन्न प्रजातियाँ है.

सीमा सचदेव … ने कहा…

धन्यवाद आचार्य जी ,

मुझे तस्वीर देखकर तो वही पक्षी लगा था , लेकिन आपने वो दुविधा मिटा दी ।

Divya Narmada ने कहा…

रचना में कुछ संशोधन भी किये हैं.
कठिन शब्द हटा दिए हैं.