गुणकारी है धतूरा
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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परिचय-
गुणकारी है धतूरा, मातुल कनक न भूल।
करता है उन्मत्त यह, खिलते सुंदर फूल।१।
धतूरा गुणकारी वनस्पति है। इसे मातुल तथा कनक भी कहा जाता है। यह उन्मत्त कार देता है। धतूरा के पौधे पर सुंदर पुष्प खिलते हैं।१।
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सोलेनशिआ सुनाम है, अरबी में दातूर।
थॉर्न एप्पल इंग्लैंड में, फारस में तातूर।२।
धतूरा को वनस्पति शास्त्र में सोलेनशिआ, अरबी में दातूर, इंग्लिश में थॉर्न एप्पल, तथा फारसी में तातूर कहा जाता है।२।
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सुश्रुत-चरक थे सुपरिचित, जान सके गुण-धर्म।
गणना की विष वर्ग में, लक्ष्य चिकित्सा कर्म।३।
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महर्षि सुश्रुत तथा महर्षि चरक धतूरा से भली-भाँति परिचित थे। उन्होंने धतूरा के गुण-धर्म जानकार इसे विष वर्ग में रखा तथा इसके अध्ययन का लक्ष्य चिकित्सा निर्धारत किया।३।
पहचान-
कद पौधे का तीन फुट, हरे नुकीले पर्ण।
पुष्प पाँच इंची खिलें, पर्पल-श्वेत विवर्ण।४।
धतूरे के पौधे का औसत कद लगभग ३ फुट होता है। इसके पत्ते हरे-नुकीले होते हैं। इसकी शकहाओं पर बैगनी-सफेद रंग के लाह भाग ५ इंच लंबे फूल खिलते हैं।४।
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काँटों सज्जित गोल फल, चपटे भूरे बीज।
वृक्काकारी श्याम भी, चुभें शूल हो खीझ।५।
इसका फल गोलाकार होता है जिस पर सब ओर काँटे होते हैं। इसके बीज आकार में चपटे तथा भूरे अथवा वृक्क के आकार के काले रंग के रंग के होते हैं। इसके नुकीले काँटे चुभ सकते हैं।५।
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उत्पाद-
मिलता हायोसायमिन, हायोसीन सुक्षार।
राल-तेल भी प्राप्त हो, जहँ-तहँ उगे उदार।६।
धतूरा से हायोसायमिन तथा हायोसीन नामक क्षार प्राप्त होता है। धतूरा से रायल तथा तेल भी प्राप्त किया जाता है। इसका पौधा जहाँ-तहाँ कहीं भी ऊग जाता है।६।
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उपयोग/उपचार-
वायु मद
अग्नि वायु मद दे बढ़ा, करे लीख-जूँ नष्ट।
ज्वर कृमि खुजली कोढ़ कफ, व्रण के हरता कष्ट।७।
धतूरा का सेवन अग्नि तथा वायु की वृद्धि करता है। धतूरा बुखार, कृमि, खुजली, कोढ़, कफ तथा घाव को ठीक करता है।७।
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रूखा भ्रमकारी बहुत, कड़वा भी लें मान।
श्वास नली के रोग में, बहु उपयोगी जान।८।
धतूरा बहुत रूखा, भ्रम पैदा करने वाला तथा कड़वा होती है। यह श्वास संबंधी रोगों में बौट उपयोगी है।८।
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सिर-पीड़ा / स्तन सूजन
नित्य बीज दो खाइए, सिर-पीड़ा हो दूर।
स्तन सूजे बाँधें तुरत, पत्ते गर्म हुजूर।९।
धतीर के दो बीज रोज खाने से सिर की पीड़ा दूर होती है।९।
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स्तन में गाँठ
गाँठें हो स्तन में अगर, दूध अधिक हो तात।
ताजा पत्ते बाँधिए, मिले व्याधि को मात।१०।
स्तन में गांठ होने पर धतीर के ताजे पत्ते बाँधने से लाभ होता है तथा दूध अधिक उतरता है।१०।
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सिर में जूँ
राइ-तेल में चौगुना, पत्तों का रस डाल।
पका लगाएँ जूँ मिटे, श्याम स्वस्थ हो बाल।११।
राइ के तेल में चार गुना धतूरा के पत्तों का रस डालकार लगाने पर जूँ व लीखें नष्ट हो जाती हैं तथा बाल स्वस्थ्य और काले होते हैं।११।
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उन्माद
पित्त पापड़ा अर्क में, बीज धतूरा श्याम।
घोंट पिएँ उन्माद हो, शांत मिले आराम।१२।
पिट पापड़ा के यार्क में काले धतूरा-बीज घोंटकर पीने से उन्माद शांत होकर आराम मिलता है।१२।
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सूर्य-ताप/प्रसव का उन्माद
बीज धतूरा में मिला, काली मिर्च समान।
पानी ले करिए खरल, गोली बना सुजान।१३ अ।
धतूरा के बीज में समान मात्रा में काली मिर्च मिलाकर खरल में कूटकर पानी के साथ गोली बनाकर जानकार रख लेते हैं।१३ अ।
सूर्य-ताप आघात या, प्रसव जनित उन्माद।
रत्ती भर मक्खन सहित, देकर करें निदान।१३ आ।
सूर्य की गर्मी से उत्पन्न आघात या प्रसव से हुए उन्माद में रत्ती भर मक्खन के साथ एक गोली खाने पर रोग दूर होता है ।१३ आ।
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नेत्र पीड़ा
नेत्र दुखें यदि हो सखे!, शोथ-दाह से लाल।
पत्तों का रस लेपिए, दुःख हो दूर कमाल।१४।
हे मित्र! यदि शोथ-दाह से लाल होकर नत्र दुखते हों तो धतूरा के पत्तों के रस का लेप करिए। आराम मिलेगा।१४।
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श्वास रोग
पत्ते फल शाखा सुखा, कूट बनाएँ चूर्ण।
धूम्रपान से दूर हो, श्वास रोग संपूर्ण।१५।
धतूरे के पत्ते, फल शाखा आदि को सुखाकर कूटें तथा चूर्ण बना लें। इसके धुएँ का सेवन करने से श्वास रोग दूर होते हैं।१५।
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दमा
अधसूखे पत्ते उठा, टुकड़े रत्ती चार।
ले बीड़ी पी लीजिए, हों न दमा-बीमार।१६।
धतूरा के अधसूखे चार पत्तों की बीड़ी बनाकर पीने से दमा नहीं होता।१६।
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बीज तमाखू जवांसा, अपामार्ग समभाग।
चूर्ण चिलम में पिएँ हो, दमा दूर बड़भाग।१७।
धतूरा-बीज, तमाखू, जवांसा तथा अपामार्ग को समान मातर में मिलाकर चूर्ण बना लें। इसे चिलम में भरकर पीने से दमा का रोग दूर हो जाता है।१७।
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चूर्ण, धतूरा तमाखू, शोरा काली चाय।
ले समान बीड़ी पिएँ, रोके दमा उपाय।१८।
दमा दूर करने के लिए धतूरा, तमाखू, शोर तथा काली चाय के चूर्ण की बीड़ी पिएँ। यह दमा को रोकती है ।१८।
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हैजा
हैजे का उपचार है, मातुल फूल-पराग।
रखें बतासे में निगल, हैजा मिटे सुभाग।१९।
धतूरे के फूल के पराग को बतासे के साथ खाने से हैजा रोग दूर होता है ।१९।
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गर्भ धारण
फल चूरन घी शहद दें, चटा गर्भ हित आप।
लें चौथाई ग्राम ही, हर्ष सके तब व्याप।२०।
गर्भ धारण करने के लिए धतूरा फल का चूर्ण, घी तथा शहद की चौथाई ग्राम मात्रा कहता दें तो गर्भ थराने से खुशी होती है।२०।
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वात खुजली
पर्ण फूल फल शाख जड़, मिला पका तिल-तेल।
मलें वात खुजली मिटे, व्यर्थ न पीड़ा झेल।२१।
खुजली होने पर व्यर्थ पीड़ा मत झेलिए। धतूरे के पत्तों, फूलों, फलों तथा जड़ों को तिल के तेल में पका कर मलने से खुजली दूर होती है।२१।
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अस्थि जोड़ पीड़ा
सत दें आधा ग्रेन यदि, तीन बार नित आप।
अस्थि जोड़ पीड़ा नहीं, सके आपको व्याप।२२।
धतूरा का आधा ग्रेन सत दिन में तीन बार लेने से अस्थि-जोड़ की पीड़ा नहीं होती।२२।
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पर्ण धतूरा लेपिए, बाँधें पुलटिस रोज।
हड्डी-पीड़ा दूर हो, हो चेहरे पर ओज।२३।
धतूरा के पत्तों को पीसकर रोज लेप लगाएँ तथा पुलटिस बाँधें तो हड्डी का दर्द दूर होता है तथा चेहरे पर चमक आती है।२३।
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सूजन
पर्ण पीसकर मिला लें, शिलाजीत कर लेप।
अंडकोश फुफ्फुस उदर, सूजन हो विक्षेप।२४।
अंधकोश, फुफ्फुस या उदर में सूजन होने पर धतूरा के पत्तों को पीसकर शिलाजीत के साथ मिलाकर लेप करने से सूजन दूर हो जाती है।२४।
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ऐंद्रिक शिथिलता
बीज धतूरा अकरकस, लौंग वटी खा नित्य।
काम साधना कीजिए, हो आनंद अनित्य।२५।
धतूरा के बीज, अकरकस तथा लौंग को पीसकर गोली बना लें। इसका नित्य सेवन करने से काम शक्ति बढ़ती है। इसे खाकर काम की साधना कीजिए, अधिक आनंद मिलेगा।२५।
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तेल धतूरा बीज का, तलवों पर मल रात।
करें प्रिया-सहवास हो, स्तंभन बहु भाँत।२६।
अपने तलवों पर धतूरा के बीजों का तेल मलकर रात को प्रेयसी के साथ सहवास करिए, अधिक और तरह-तरह से स्तंभन कार सकेंगे।२६।
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पीस धतूरा बीज-फल, मिला दूध में मीत।
दही जमा घी निकालें, रखें पान में रीत।२७ अ।
धतूरा के बीज-फल को पीसकर दूध में मिला लें। इसका दही जमाकर घी निकालें। इस घी को पान के पत्ते में रखकर पान बना लें।२७ अ।
खाएँ बाजीकरण हो, करे शिथिलता दूर।
कामेन्द्रिय की मिले, सुखानंद भरपूर।२७ आ।
यह पान खाने से बाजीकरण की तरह प्रभाव होता है। लिंग की शिथिलता दूर होती है और कांक्रीय का भरपूर आनंद मिलता है।२७ आ।
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मलेरिया
बीज-धतूरा जलाकर, सुबह-शाम लें राख।
हो मलेरिया दूर झट, लगे न ज्वर को पाख।२८।
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धतूरे के बीज को जलाकर बनी रख का सुबह-शाम सेवन कीजिए। मलेरिया का ज्वार अधिक नहीं चढ़ सकेगा तथा रोग दूर हो जाएगा।२८।
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कनक बीज का चूर्ण खा, ज्वर आने के पूर्व।
ज्वर को दूर भगाइए, हो आराम अपूर्व।२९।
धतूरे के बीज का चूर्ण यदि बुखार आने के पूर्व या तुरंत बाद खा लें तो तुरंत आराम होता है।२९।
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पान धतूरा पर्ण अरु, काली मिर्ची पीस।
वटी बना खा ज्वर मिटे, रहें निपोरे खीस।३० अ।
पान, धतूरा का पत्ता और काली मिर्च को मिलाकर पीस लें। इसकी गोली बनाकर, ज्वर आने पर एक गोली खालें, ज्वर दूर हो जाएगा।३० अ।
सौंफ अर्क के साथ खा, करिए दूर प्रमेह।
है इलाज यह शर्तिया, तनिक नहीं संदेह।३० आ।
प्रमेह होने पर सौंफ के यार्क के साथ एक गोली खाएँ। यह शर्तिया उपचार है३० आ।
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तिजारी
दही-पर्ण रस का करें, सेवन फिर विश्राम।
रोग तिजारी का मिटे, झट मिलता आराम।३१।
तिजारी रोग होने पर धतूरे के पत्तों का रस तथा दही का सेवन कार आराम कीजिए। तुरंत आराम मिलता है।३१।
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बिच्छू-काटा
पत्तों की लुगदी बना, बाँध दीजिए घाव।
बिच्छू-काटा ठीक हो, पार लग सके नाव।३२।
बिच्छू के काटने पर धतूरा के पत्तों को पीसकार बनाई लुगदी बाँध दें। दर्द तथा जहर दूर होकर तुरंत आराम मिलता है।३२।
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पका घाव
पीप घाव की धोइए, जल ले थोड़ा गर्म।
कनक-पत्र पुलटिस बँधे, पीर मिटे हो नर्म।३३।
घाव पक जाने पर कुनकुने पानी से धोकर, धतूरा के पत्तों को से बनाई लुगदी की पुलटिस बाँध लें। घाव नरम होकर दर्द मिट जाता है।३३।
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कर्ण शोथ
कर्ण शोथ हो लगाएँ, रस गाढ़ा रह मौन।
सूजन-पीड़ा घटे सब, पूछें पीड़ित कौन।३४।
कान में शोथ होने पर धतूरा का गाढ़ा रस लगाएँ। सूजन और दर्द तुरंत दूर हो जाता है।
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हो मवाद यदि कान में, गंधक सरसों-तेल।
पर्ण धतूरा-रस मिला, डालें मिटे झमेल।३५।
कान में मवाद होने पर गंधक, सरसों का तेल, धतूरा के पत्तों का रस मिलकर डालिए, तुरंत आराम हिकार झंझट दूर हो जाता है।३५।
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हल्दी पीसें लें मिला, रस धतूर तिल-तेल।
पका छान ले लगा हो, कर्ण नाड़ी व्रण खेल।३६।
कान की नस में घाव होने पर पीसी हल्दी, धतूरे का रस और तिल का तेल मिला-पाक-छानकर लगाइए। खेल खेल में दर्द दूर हो जाएगा।३६।
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विष
पत्ते-फूल कपास से, हो धतूर-विष शांत।
दें ठंडा निर्यास हो, चित्त तनिक नहिं भ्रांत।३७।
कपास के पत्तों तथा फूल से धतूरे का विष शांत होता है। ठनदा निर्यास देन तो चित्त भ्रांत नहीं होता।
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दूषित जल पी रोग हो, नारू कृमि दे पीर।
पत्तों को लें बाँध हो, कष्ट दूर दर धीर।३८।
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नारू रोग
दूषित पानी पीने से हुए नारू रोग का कीड़ा यदि कष्ट दे रहा हो तो धतूरा के पत्ते बाँध लें, दर्द दूर हो जाएगा।३८।
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दुष्प्रभाव
विष धतूर मात्रा अधिक, कर दे सुन्न शरीर।
हो खुश्की सिर दर्द भी, फिर बेहोशी पीर।३९।
धतूरे के विष की अधिक मात्रा शरीर को सुन्न कर देती है, इससे खुश्की, सिर दर्द और बेहोशी हो सकती है।३९।
सावधानी
करिए बाह्य प्रयोग ही, मात्रा कम ही ठीक।
सावधान हो सजग भी, 'सलिल' न तजिए लीक।४०।
इसलिए बाहरी प्रयोग सावधान और सजग रहकर करें तथा बताई गई लीक का उल्लंघन न करें।४०।
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(आभार- आयुर्वेद जड़ी बूटी रहस्य, भाव प्रकाश, भेषज्य रत्नावली)
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सॉनेट
धतूरा
*
सदाशिव को है 'धतूरा' प्रिय।
'कनक' कहते हैं चरक इसको।
अमिय चाहक को हुआ अप्रिय।।
'उन्मत्त' सुश्रुत कहें; मत फेंको।।
.
तेल में रस मिला मलिए आप।
शांत हो गठिया जनित जो दर्द।
कुष्ठ का भी हर सके यह शाप।।
मिटाता है चर्म रोग सहर्ष।।
.
'स्ट्रामोनिअम' खाइए मत आप।
सकारात्मक ऊर्जा धन हेतु।
चढ़ा शिव को, मंत्र का कर जाप।
पार भव जाने बनाएँ सेतु।।
.
'धुस्तूर' 'धत्तूरक' उगाता बाल।
फूल, पत्ते, बीज,जड़ अव्याल।।
...
क्षणिका
धतूरा
.
महक छटा से
भ्रमित हो
अमृत न मानो।
विष पचाना सीख लो
तब मीत जानो।
मैं धतूरा
सदाशिव को
प्रिय बहुत हूँ।
विरागी हूँ,
मोह-माया से रहित हूँ।
...
संपर्क- विश्ववाणी हिंदी संस्थान, 401 विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर 482001
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