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मंगलवार, 9 मई 2023

आयुर्वेद, धतूरा

धतूरा
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गुणकारी है धतूरा, मातुल कनक न भूल।
करता है उन्मत्त यह, खिलते सुंदर फूल।१।
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सोलेनशिआ सुनाम है, अरबी में दातूर।
थॉर्न एप्पल इंग्लैंड में, फारस में तातूर।२।
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सुश्रुत-चरक थे सुपरिचित, जान सके गुण-धर्म।
गणना की विष वर्ग में, लक्ष्य चिकित्सा कर्म।३।
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कद पौधे का तीन फुट, हरे नुकीले पर्ण। 
पुष्प पाँच इंची खिलें, पर्पल-श्वेत विवर्ण।४। 
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काँटों सज्जित गोल फल, चपटे भूरे बीज। 
वृक्काकारी श्याम भी, चुभें शूल हो खीझ।५।
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मिलता हायोसायमिन, हायोसीन सुक्षार। 
राल-तेल भी प्राप्त हो, जहँ-तहँ उगे उदार।६।
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अग्नि वायु मद दे बढ़ा, करे लीख-जूँ नष्ट। 
ज्वर कृमि खुजली कोढ़ कफ, व्रण के हरता कष्ट।७।
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रूखा भ्रमकारी बहुत, कड़वा भी लें मान।
श्वास नली के रोग में, बहु उपयोगी जान।८।
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नित्य बीज दो खाइए, सिर-पीड़ा हो दूर। 
स्तन सूजे बाँधें तुरत, पत्ते गर्म हुजूर।९।
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गाँठें हो स्तन में अगर, दूध अधिक हो तात।  
ताजा पत्ते बाँधिए, मिले व्याधि को मात।१०।
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राइ-तेल में चौगुना, पत्तों का रस डाल।
पका लगाएँ जूँ मिटे, श्याम स्वस्थ हो बाल।११।
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पित्त पापड़ा अर्क में, बीज धतूरा श्याम। 
घोंट पिएँ उन्माद हो, शांत मिले आराम।१२। 
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बीज धतूरा में मिला, काली मिर्च समान। 
पानी ले करिए खरल, गोली बना सुजान।१३ अ।

सूर्य-ताप आघात या, प्रसव जनित उन्माद।
रत्ती भर मक्खन सहित, देकर करें निदान।१३ आ।
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नेत्र दुखें यदि हो सखे!, शोथ-दाह से लाल। 
पत्तों का रस लेपिए, दुःख हो दूर कमाल।१४।
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पत्ते फल शाखा सुखा, कूट बनाएँ चूर्ण। 
धूम्रपान से दूर हो, श्वास रोग संपूर्ण।१५।
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अधसूखे पत्ते उठा, टुकड़े रत्ती चार।
ले बीड़ी पी लीजिए, हों न दमा-बीमार।१६।
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बीज तमाखू जवांसा, अपामार्ग समभाग।
चूर्ण चिलम में पिएँ हो, दमा दूर बड़भाग।१७।
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चूर्ण, धतूरा तमाखू, शोरा काली चाय।  
ले समान बीड़ी पिएँ, रोके दमा उपाय।१८।
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हैजे का उपचार है, उत्तम फूल-पराग। 
रखें बतासे में निगल, हैजा मिटे सुभाग।१९।
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फल चूरन घी शहद दें, चटा गर्भ हित आप। 
लें चौथाई ग्राम ही, हर्ष सके तब व्याप।२०।
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पर्ण फूल फल शाख जड़, मिला पका तिल-तेल। 
मलें वात खुजली मिटे, व्यर्थ न पीड़ा झेल।२१। 
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सत दें आधा ग्रेन यदि, तीन बार नित आप। 
अस्थि जोड़ पीड़ा नहीं, सके आपको व्याप।२२। 
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पर्ण धतूरा लेपिए, बाँधें पुलटिस रोज। 
हड्डी-पीड़ा दूर हो, हो चेहरे पर ओज।२३।
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पर्ण पीसकर मिला लें, शिलाजीत कर लेप। 
अंडकोश फुफ्फुस उदर, सूजन हो विक्षेप।२४।
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बीज धतूरा अकरकस, लौंग वटी खा नित्य। 
काम साधना कीजिए, हो आनंद अनित्य।२५।   
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तेल धतूरा बीज का, तलवों पर मल रात। 
करें प्रिया-सहवास हो, स्तंभन बहु भाँत।२६।
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पीस धतूरा बीज-फल, मिला दूध में मीत।
दही जमा घी निकालें, रखें पान में रीत।२६ अ। 

खाएँ बाजीकरण हो, मलें शिथिलता दूर। 
हो कामेन्द्रिय की मिले, सुखानंद भरपूर।२६ आ। 
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दूषित जल पी रोग हो, नारू कृमि दे पीर। 
पत्तों को लें बाँध हो, कष्ट दूर दर धीर।२७।
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सुबह-शाम सेवन करें, बीज जलाकर राख। 
हो मलेरिया दूर झट, लगे न ज्वर को पाख।२८।
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चूर्ण बीज का खाइए, ज्वर आने के पूर्व। 
ज्वर को दूर भगाइए, हो आराम अपूर्व।२९।
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पान धतूरा पर्ण अरु, काली मिर्ची पीस।
वटी बना खा ज्वर मिटे, रहें निपोरे खीस।३० अ। 

सौंफ अर्क के साथ खा, करिए दूर प्रमेह। 
है इलाज यह शर्तिया, तनिक नहीं संदेह।३० आ। 
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दही-पर्ण रस का करें, सेवन फिर विश्राम। 
रोग तिजारी का मिटे, झट मिलता आराम।३१।
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पत्तों की लुगदी बना, बाँध दीजिए घाव।
बिच्छू-काटा ठीक हो, पार लग सके नाव।३२।
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पीप घाव की धोइए, जल ले थोड़ा गर्म। 
पत्ता पुलटिस बाँधिए, पीर मिटे हो नर्म।३३।
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कर्ण शोथ हो लगाएँ, रस गाढ़ा रह मौन। 
सूजन-पीड़ा घटे सब, पूछें पीड़ित कौन।३४।
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हो मवाद यदि कान में, गंधक सरसों-तेल।
पर्ण धतूरा-रस मिला, डालें मिटे झमेल।३५।
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हल्दी पीसें लें मिला, रस धतूर तिल-तेल।
पका छान ले लगा हो, कर्ण नाड़ी व्रण खेल।३६। 
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पत्ते-फूल कपास से, हो धतूर-विष शांत। 
देन ठंडा निर्यास हो, चित्त तनिक नहिं भ्रांत।३७।
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विष धतूर मात्रा अधिक, कर दे सुन्न शरीर। 
हो खुश्की सिर दर्द भी, फिर बेहोशी पीर।३८ अ।  

करिए बाह्य प्रयोग ही, मात्रा कम ही ठीक। 
सावधान हो सजग भी, 'सलिल' न तजिए लीक।३८ आ।
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 आभार- आयुर्वेद जड़ी बूटी रहस्य, भाव प्रकाश, भेषज्य रत्नावली 
सॉनेट
धतूरा
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सदाशिव को है 'धतूरा' प्रिय।
'कनक' कहते हैं चरक इसको।
अमिय चाहक को हुआ अप्रिय।।
'उन्मत्त' सुश्रुत कहें; मत फेंको।।
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तेल में रस मिला मलिए आप।
शांत हो गठिया जनित जो दर्द।
कुष्ठ का भी हर सके यह शाप।।
मिटाता है चर्म रोग सहर्ष।।
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'स्ट्रामोनिअम' खाइए मत आप।
सकारात्मक ऊर्जा धन हेतु।
चढ़ा शिव को, मंत्र का कर जाप।
पार भव जाने बनाएँ सेतु।।
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'धुस्तूर' 'धत्तूरक' उगाता बाल।
फूल, पत्ते, बीज,जड़ अव्याल।।
१७-२-२०२३ 
...
क्षणिका 
धतूरा 
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महक छटा से 
भ्रमित हो  
अमृत न मानो। 
विष पचाना सीख लो 
तब मीत जानो। 
मैं धतूरा 
सदाशिव को 
प्रिय बहुत हूँ। 
विरागी हूँ, 
मोह-माया से रहित हूँ। 
...

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