चित्रगुप्त वंदना भोजपुरी
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करत रहल बा चित्रगुप्त प्रभु!, सगरो जै-जैकार।
मति; मेहनत अरु मेल-जोल बर; आए सरन तोहार।।
जगवा में केहू नईखे हे, तोहरे बिना सहाई।
डोल रहल बा दा न जगाई, काहे भगिया हमार।।
छोड़ी चरनिया तोहरो, बारह भाई कहाँ हम जाई।
कृपा करल बा दूनो माई, फेरी दा न दिनवा हमार।।
कलम-दावत-कृपाण सजाइब, चूनर लाल चढ़ाई।
ओंकार केर जै गुंजाई, काहे न सुनल पुकार।।
श्रीफल कदली फल स्वीकारब, भगवन भोग मिठाई।
सर पर हाथ धरल दोऊ माई, किरपा दृष्टि निहार।।
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दोहा सलिला
अनिल अनल भू नभ सलिल, अजय उच्च रख माथ।
राम नाथ सीता सहित, रखिए सिर पर हाथ।।
राम नाथ अब अवध में, थामे हैं धनु-बाण।
अब तक दयानिधान थे, अब हरते हैं प्राण।।
राम नाथ भी थे विवश, सके न सिय को रोक।
समय बली विपरीत था, कोई सका न टोक।।
आ! वारा तुझ पर ह्रदय, शारद मातु पुनीत।
आवारा थे शब्द कर, वंदन हुए सुगीत।।
ललिता लय लालित्य ले, नमन करे हो लीन।
मीनाकारी स्वरों की, सुमधुर जैसे बीन।।
सँग नारायण शरद जी, जड़कर नीलम रत्न।
खरे-खरे दोहे कहें, मुक्तक-गीत सुयत्न।।
राम; केश सिय के लिए, सजा रहे हैं फूल।
राम-केश हँस बाँधतीं, सीता सब दुःख भूल।।
कंकर में शंकर बसे, शिमला शर्मा मौन।
सूर्य तपे शिव जी कहें, हिम ला देगा कौन?
चंदा दो चंदा कहे, गई चाँदनी भाग।
नीता-शीला अब न वह, चंद्रकला अनुराग।।
मारीशस से मिल गले, भारत माता झूम।
प्रेमलता महका रही, भुज भर माथा चूम।।
मँज री मति! गुरु निकट जा, माँजेंगे गुरु खूब।
अर्पित कर मन-मंजरी, भाव-भक्ति में डूब।।
अनामिका मति साधिका, रम्य राधिका भ्रांत।
सुमित अमित परिमित सतत, करे न मन को भ्रांत।।
वह बोली आदाब पर, यह समझा आ दाब।
आगे बढ़ते ही पड़ा, थप्पड़ एक जनाब।।
१६-५-२०२२
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Poem
I
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I don't care to those
Who don't care to me
I prefer to play with them
Who prefer to play with me.
Mountain for mountains
For seas I also am a sea
Being nowhere I'm everywhere
Want to meet?, Try to see
Forget I and You
Remember only Us
No place for no
Always welcome yes.
15-5-2022
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कोरोना गीत
सूरज! आओ भेंट तुम्हें हैं रेल कटे मजदूर
भूखे पेट अँतड़ियाँ ऐंठी कितना सहते?
रोजी-रोटी गँवा उधारी कितनी गहते
बिन भाड़ा झोपड़ पट्टी में जगह न मिलती
घर से दूर अभाव आग में कितना दहते?
विवश चले पैदल भारत के बेटे हो मजबूर
खाकी लट्ठ बरसते फिर भी बढ़ते जाते
नेताओं की निष्ठुरता चुप पढ़ते जाते
कृषक-श्रमिक संघों को सूँघा साँप अचानक
शासन के अखबार कसीदे पढ़ते जाते
इंसानों को भून रहा बदहाली का तंदूर
उजड़ीं माँगें टूटे मंगलसूत्र चूड़ियाँ टूटीं
बिना लुटेरे अबलाएँ असहाय गई हैं लूटीं
कौन सहारा दे किसको, है दोष सभी का साझा
पैसेवाले ठठा रहे, निर्धन तकदीरें फूटीं
तुम तो तनिक बहा लो आँसू हे दिनकर अक्रूर
१६-५-२०२०***
द्विपदी
दोस्ती की दरार छोटी पर
साँप शक का वहीं मिला लंबा।
१६-५-२०१९
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छंद बहर का मूल है १३
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संरचना- २१२ २१२, सूत्र- रर.
वार्णिक छंद- ६ वर्णीय गायत्री जातीय विमोह छंद.
मात्रिक छंद- १० मात्रिक देशिक जातीय छंद
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सत्य बोलो सभी
झूठ छोडो कभी
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रीतती रात भी
जीतता प्रात ही
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ख्वाब हो ख्वाब ही
आँख खोलो तभी
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खाद-पानी मिले
फूल हो सौरभी
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मुश्किलों आ मिलो
मात ले लो अभी
१३-४-२०१७
९.४५ पूर्वाह्न
***दोहा
चित्र गुप्त जिसका वही, लेता जब आकार
ब्रम्हा-विष्णु-महेश तब, होते हैं साकार
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माँ ममता का गाँव है, शुभाशीष की छाँव.
कैसी भी सन्तान हो, माँ-चरणों में ठाँव..
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ॐ जपे नीरव अगर, कट जाएँ सब कष्ट
मौन रखे यदि शोर तो, होते दूर अनिष्ट
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स्नेह सरोवर सुखाकर करते जो नाशाद
वे शादी कर किस तरह, हो पायेंगे शाद?
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मुक्तक
तुझको अपना पता लगाना है?
खुद से खुद को अगर मिलाना है
मूँद कर आँख बैठ जाओ भी
दूर जाना करीब आना है
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द्विपदी
ठिठक कर जो रुक गयीं तुम
आ गया भूकम्प झट से.
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दाग न दामन पर लगा है
बोल सियासत ख़ाक करी है
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मौन से बातचीत अच्छी है
भाप प्रेशर कुकर से निकले तो
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तीन अंगुलिया उठतीं खुद पर
एक किसी पर अगर धरी है
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सिर्फ कहना सही ही काफी नहीं है
बात कहने का सलीका है जरूरी
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अजय हैं न जय कर सके कोई हमको
विजय को पराजय को सम देखते हैं
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किस्से दिल में न रखें किससे कहें यह सोचें
गर न किस्से कहे तो ख्वाब भी मुरझाएंगे
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सखापन 'सलिल' का दिखे श्याम खुद पर
अँजुरी में सूर्स्त दिखे देख फिर-फिर
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दुष्ट से दुष्ट मिले कष्ट दे संतुष्ट हुए
दोनों जब साथ गिरे हँसी हसीं कहके 'मुए'
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जो गिर-उठकर बढ़ा मंजिल मिली है
किताबों में मिला हमको लिखित है
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घुँघरू पायल के इस कदर बजाए जाएँ
नींद उड़ जाए औ' महबूब दौड़ते आयें
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रन करते जब वीर तालियाँ दुनिया देख बजाती है
रन न बनें तो हाय प्रेमिका भी आती है पास नहीं
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रंज मत कर बिसारे, जिसने सुधि-अनुबंध
वही इस काबिल न था कि पा सके मन-रंजना
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रूप देखकर नजर झुका लें कितनी वह तहजीब भली थी
रूप मर गया बेहूदों ने आँख फाड़कर उसे तका है
१६-५-२०१५
दोहा का रंग आँखों के संग
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आँख अबोले बोलती, आँख समझती बात.
आँख राज सब खोलत, कैसी बीती रात?
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आँख आँख से मिल झुके, उठे लड़े झुक मौन.
क्या अनकहनी कह गई, कहे-बताये कौन?.
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आँख आँख में बस हुलस, आँख चुराती आँख.
आँख आँख को चुभ रही, आँख दिखाती आँख..
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आँख बने दर्पण कभी, आँख आँख का बिम्ब.
आँख अदेखे देखती, आँखों का प्रतिबिम्ब..
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गहरी नीली आँख क्यों, उषा गाल सम लाल?
नेह नर्मदा नहाकर, नत-उन्नत बेहाल..
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देह विदेहित जब हुई, मिला आँख को चैन.
आँख आँख ने फेर ली, आँख हुई बेचैन..
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आँख दिखाकर आँख को, आँख हुई नाराज़.
आँख मूँदकर आँख है, मौन कहो किस व्याज?
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पानी आया आँख में, बेमौसम बरसात.
आँसू पोछे आँख चुप, बैरन लगती रात..
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अंगारे बरसा रही आँख, धरा है तप्त.
किसकी आँखों पर हुई, आँख कहो अनुरक्त?.
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आँख चुभ गई आँख को, आँख आँख में लीन.
आँख आँख को पा धनी, आँख आँख बिन दीन..
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कही कहानी आँख की, मिला आँख से आँख.
आँख दिखाकर आँख को, बढ़ी आँख की साख..
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आँख-आँख में डूबकर, बसी आँख में मौन.
आँख-आँख से लड़ पड़ी, कहो जयी है कौन?
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आँख फूटती तो नहीं, आँख कर सके बात.
तारा बन जा आँख का, 'सलिल' मिली सौगात..
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कौन किरकिरी आँख की, उसकी ऑंखें फोड़.
मिटा तुरत आतंक दो, नहीं शांति का तोड़..
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आँख झुकाकर लाज से, गयी सानिया पाक.
आँख झपक बिजली गिरा, करे कलेजा चाक..
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आँख न खटके आँख में, करो न आँखें लाल.
काँटा कोई न आँख का, तुम से करे सवाल..
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आँख न खुलकर खुल रही, 'सलिल' आँख है बंद.
आँख अबोले बोलती, सुनो सृजन के छंद..
१६-५-२०१५
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