गीत :
बजा बाँसुरी… 
नाच खुशी से लूम-लूम मन… 
*
जंगल-जंगल गमक रहा है।
महुआ फूला महक रहा है।
बौराया है आम दशहरी 
पिक कूकी चित चहक रहा है।
डगर-डगर पर छाया फागुन 
कभी न होना सूम-सूम मन… 
*
पिरयाई सरसों जवान है। 
मानसिक ताने शर-कमान है।
दिनकर छेड़े, उषा लजाई-
स्नेह-साक्षी चुप मचान है।
बैरन पायल करती गायन 
पा प्रेयसी सँग घूम-घूम मन… 
*
कजरी होरी राई कबीरा,
टिमकी ढोलक झाँझ मंजीरा।
आल्हा जस फागें बम्बुलियाँ 
सुना हो रही धरा अधीरा।
उड़ा हुलासों की पतंग फिर 
अरमानों को चूम-चूम मन…
२९-४-२०१३ 
***
मुक्तक:
*
जो दूर रहते हैं वही तो पास होते हैं. 
जो हँस रहे, सचमुच वही उदास होते हैं. 
सब कुछ मिला 'सलिल' जिन्हें अतृप्त हैं वहीं- 
२९-४-२०१० 
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें