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रविवार, 14 मई 2023

सवैया

 

सवैया
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सरस सवैया रच पढ़ें
गण की आवृत्ति सात हों, दो गुरु रहें पदांत।
सरस सवैया नित पढो, 'सलिल' न तनिक रसांत।।
बाइस से छब्बीस वर्णों के (सामान्य वृत्तो से बड़े और दंडक छंदों से छोटे) छंदों को सवैया कहा जाता है। सवैया वार्णिक छंद हैं। विविध गणों में से किसी एक गण की सात बार आवृत्तियाँ तथा अंत में दो दीर्घ अक्षरों का प्रयोग कर सवैये की रचना की जाती है। यह एक वर्णिक छन्द है। सवैया को वार्णिक मुक्तक अर्थात वर्ण संख्या के आधार पर रचित मुक्तक भी कहा जाता है। इसका कारन यह है की सवैया में गुरु को लघु पढ़ने की छूट है। जानकी नाथ सिंह ने अपने शोध निबन्ध 'द कंट्रीब्युशन ऑफ़ हिंदी पोयेट्स टु प्राजोडी के चौथे अध्याय में सवैया को वार्णिक सम वृत्त मानने का कारण हिंदी में लय में गाते समय 'गुरु' का 'लघु' की तरह उच्चारण किये जाने की प्रवृत्ति को बताया है। हिंदी में 'ए' के लघु उच्चारण हेतु कोई वर्ण या संकेत चिन्ह नहीं है। रीति काल और भक्ति काल में कवित्त और सवैया बहुत लोकप्रिय रहे हैं. कवितावलि में तुलसी ने इन्हीं दो छंदों का अधिक प्रयोग किया है। कवित्त की ही तरह सवैया भी लय-आधारित छंद है।
विविध गणों के प्रयोग के आधार पर इस छन्द के कई प्रकार (भेद) हैं। यगण, तगण तथा रगण पर आधारित सवैये की गति धीमी होती है जबकि भगण, जगण तथा सगण पर आधारित सवैया तेज गति युक्त होता है। ले के साथ कथ्य के भावपूर्ण शब्द-चित्र अंकित होते हैं। श्रृंगार तथा भक्ति परक वर्ण में विभव, अनुभव, आलंबन, उद्दीपन, संचारी भाव, नायक-नायिका भेद आदि के शब्द-चित्रण में तुलसी, रसखान, घनानंद, आलम आदि ने भावोद्वेग की उत्तम अभिव्यक्ति के लिए सवैया को ही उपयुक्त पाया। भूषण ने वीर रस के लिए सवैये का प्रयोग किया किन्तु वह अपेक्षाकृत फीका रहा।
प्रकार-
सवैया के मुख्य १४ प्रकार हैं।
१. मदिरा, २. मत्तगयन्द, ३. सुमुखि, ४. दुर्मिल, ५. किरीट, ६. गंगोदक, ७. मुक्तहरा, ८. वाम, ९. अरसात, १०. सुन्दरी, ११. अरविन्द, १२. मानिनी, १३. महाभुजंगप्रयात, १४. सुखी सवैया।
मत्तगयंद (मालती) सवैया
इस वर्णिक छंद के चार चरण होते हैं। हर चरण में सात भगण (S I I) के पश्चात् अंत में दो गुरु (SS) वर्ण होते हैं।
उदाहरण:
१.
धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैंसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत-खात फिरें अँगना, पग पैंजनिया, कटी पीरि कछौटी।।
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों ली गयो माखन-रोटी।।
२.
यौवन रूप त्रिया तन गोधन, भोग विनश्वर है जग भाई।
ज्यों चपला चमके नभ में, जिमि मंदर देखत जात बिलाई।।
देव खगादि नरेन्द्र हरी मरते न बचावत कोई सहाई।
ज्यों मृग को हरि दौड़ दले, वन-रक्षक ताहि न कोई लखाई।।
३.
मोर पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गले पहिरौंगी।
ओढ़ी पीताम्बर लै लकुटी, वन गोधन गजधन संग फिरौंगी।।
भाव तो याहि कहो रसखान जो, तेरे कहे सब स्वांग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।
दुर्मिल (चन्द्रकला) सवैया
इस वर्णिक छंद के चार चरणों में से प्रत्येक में आठ सगण (I I S) और अंत में दो गुरु मिलाकर कुल २५ वर्ण होते हैं.
उदाहरण:
बरसा-बरसा कर प्रेम सुधा, वसुधा न सँवार सकी जिनको।
तरसा-तरसा कर वारि पिता, सु-रसा न सुधार सकी जिनको।।
सविता-कर सी कविता छवि ले, जनता न पुकार सकी जिनको।
नव तार सितार बजा करके, नरता न दुलार सकी जिनको।।
उपजाति सवैया (जिसमें दो भिन्न सवैया एक साथ प्रयुक्त हुए हों) तुलसी की देन है। सर्वप्रथम तुलसी ने 'कवितावली' में तथा बाद में रसखान व केशवदास ने इसका प्रयोग किया।
मत्तगयन्द - सुन्दरी
प्रथम पद मत्तगयन्द (७ भगण + २ गुरु) - "या लटुकी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुरको तजि डारौ"। तीसरा पद सुन्दरी (७ सगन + १ गुरु) - "रसखानि कबों इन आँखिनते, ब्रजके बन बाग़ तड़ाग निहारौ"।
मदिरा - दुर्मिल
तुलसी ने एक पद मदिरा का रखकर शेष दुर्मिल के पद रखे हैं। केशव ने भी इसका अनुसरण किया है। पहला मदिरा का पद (७ भगण + एक गुरु) - "ठाढ़े हैं नौ द्रम डार गहे, धनु काँधे धरे कर सायक लै"। दूसरा दुर्मिल का पद (८ सगण) - "बिकटी भृकुटी बड़री अँखियाँ, अनमोल कपोलन की छवि है"।
मत्तगयन्द-वाम और वाम-सुन्दरी की उपजातियाँ तुलसी (कवितावली) में तथा केशव (रसिकप्रिया) में सुप्राप्य है। कवियों ने भाव-चित्रण में अधिक सौन्दर्य तथा चमत्कार उत्पन्न करने हेतु ऐसे प्रयोग किये हैं।
आधुनिक कवियों में भारतेंदु हरिश्चन्द्र, लक्ष्मण सिंह, नाथूराम शंकर आदि ने इनका सुन्दर प्रयोग किया है। जगदीश गुप्त ने इस छन्द में आधुनिक लक्षणा शक्ति का समावेश किया है।
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अठ सलल सवैया
११२-११२-११२-११२-११२-११२-११२-११२-११
जय हिंद कहें, सब संग रहें, हँस हाथ गहें, मिल जीत वरें हम
अरि जूझ थकें, हथियार धरें, अरमान यही, कबहूँ न डरें हम
मत-भेद भले, मन-भेद नहीं, हम एक रहे, सच नेक रहें हम
अरि मार सकें, रण जीत तरें, हँस स्वर्ग वरें, मर न मरें हम
१२.३.२०१९
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बातों ही बातों में, रातों ही रातों में, लूटेंगे-भागेंगे, व्यापारी घातें दे आज
वादों ही वादों में, राजा जी चेलों में, सत्ता को बाँटेंगे, लोगों को मातें दे आज
यादें ही यादें हैं, कुर्सी है प्यादे हैं, मौका पा लादेंगे, प्यारे जो लोगों को आज
धोखा ही धोखा है, चौका ही चौका है, छक्का भी मारेंगे, लूटेंगे-बाँटेंगे आज
२१.२.२०१९
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मत्त गयंद सवैया
आज कहें कल भूल रहे जुमला बतला छलते जनता को
बाप-चचा चित चुप्प पड़े नित कोस रहे अपनी ममता को
केर व बेर हुए सँग-साथ तपाक मिले तजते समता को
चाह मिले कुरसी फिर से ठगते जनको भज स्वाराथता को
२.२.२०१९
कमलेश्वरी सवैया प्रति पद 7 (यगण) +लघु
न हल्ला मचाएँ, धुआँ भी न फैला, करें गंदगी भी न मैं आप।
न पूरे तलैया, न तालाब राहों, नदी को न मैली करें आप।।
न तोड़ें घरौंदा, न काटें वनों को, न खोदें पहाड़ी सरे आम-
न रूठे धरा ये, न गुस्सा करें मेघ, इन्सान न पाए कहीं शाप।।
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कन्हैया! कन्हैया!! बजा बाँसुरी, रूठ राधा न जाए, बजा बाँसुरी माधव!
मना राधिका नाज़ लेना उठा, रास लेना रचा तू, चला आ दिखा लाघव.
चलो ग्वाल-बालों!, नहीं बात टालो, करें रासलीला, नहीं चूको, करें गायन.
सुना फ़ाग-रासें, लला रंग डालें, लली भाग जाएँ करो बाँसुरी वादन.
६.११.२०१७
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जगो रे!, उठो रे!!, खिलो फ़ूल जैसे, सुगंधें बिखेरो, सवेरे-सवेरे चलो.
न सोना, न खोना, नहीं मीत रोना, न हाथों धरो हाथ, मौके न खोना, चलो.
नदी सा बहो रे!, न मौजे तहो रे! उठा शंख-सीपी, न भागो, गहो रे चलो.
तुम्हीं को पुकारें, तुम्हीं को निहारें, भुला मन्ज़िले दें न, जीतो सितारे चलो.
६.११.२०१७
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कहाँ वो छिपेगी?, कहीं तो मिलेगी, कभी तो मिलेगी, हसीना लुभाए जो।
छलावा-भुलावा?, नहीं वो दिखावा, अदाएँ हजारों, दिखाती-सुहाती जो।।
गुलाबी-गुलाबी, शराबी-शराबी, नशीली-नशीली सूरा सी पिलाती हो।
न भूला उसे मैं, न भूली मुझे वो, भले बाँह में ले, गले ना लगाती हो।।
५.११.२०१७
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न पौधे लगाएँ, न पानी पिलाएँ, न पीड़ा मिटाएँ, करें वोट की माँग।
गरीबी मिटी क्या?, अशिक्षा हटी क्या?, कुरीती तजी क्या?, धरे संत का स्वाँग।।
न भूषा, न भाषा, निराशा-हताशा, न बाकी सुआशा, न छोड़ें अड़ी टाँग।
न लेना, न देना, चबाओ चबेना, भगा दो- भुला दो, पिला दो इन्हें भाँग।।
५.११.२०१७
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न जाओ, न जाओ, बुलाएँ-बिठाएँ, गले से लगाएँ, पुकारें सितारे।
चलो! नील आकाश देखें-निहारें, कहाँ थे?, कहाँ हैं?, निहारें सितारे।।
न भूलो, न भागो, न भोगो, न त्यागो, रहो साथ यारों! सिखाएँ सितारे।
न गली, न दंगा, न वादा, न पंगा, न छीनें, न फेंकें, लुभाएँ सितारे।।
५.११.२०१७
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कहेगा-सुनेगा हमारा फ़साना, हमेशा ज़माना कहो जाने-जां।
नहीं भौंह तानो, न रूठो, न मानो, मिलेगा मजा भी सुनो जाने-जां।
ज़रा पास आओ, नहीं दूर जाओ, गले से लगाओ-लगो जाने-जां।
नहीं जान देना, नहीं जान लेना, सदा साथ होना, हमें जाने-जां।।
५.११.२०१७
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मिटाया अँधेरा, उअगाया सवेरा, उषा ने जलाया, नया दीप आ।
नहीं देर से आ, नहीं शीघ्र जाता, न माँगे मजूरी कभी सूर्य दा।।
न तो धूप भागे, नहीं छाँव माँगे, न छोड़े अधूरा, कभी काम को-
हुई साँझ बैठो, किया क्या? न लेखो, करो काम पूरा भले रात हो।।
४.११.२०१७
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चलें, आ अकेले, लगाना न मेले, न होंगे झमेले, चलें आ चलें।
बढ़ेंगे वही जो चलेंगे-गिरेंगे, उठेंगे-बढ़ेंगे, चलें आ चलें।।
मिलेंगे उन्हीं से, न जो गैर हैं, जो रहे साथ देते हमेशा खड़े ।
कहेंगे कहानी, न बातें बनानी, बचे छंद लाखों चलो भी लिखें।।
४.११.२०१७
विमलेश्वरी सवैया ७ यगण लघु लघु
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कहेगा कहानी जमाना जुबानी, करो काम ऐसा उठो वानर।
नहीं तुच्छ हो रे!, महावीर हो अंजनी-वायु के पुत्र हो वानर।।
छलाँगें लगाओ, उड़ो वायु में भी, न हारो करो पार रे! सागर।
सिया खोज आओ, सभी को बचाओ, यशस्वी बनाओ रे! वानर।।
४.११.२०१७
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राजेश्वरी सवैया ७ यगण गुरु
कभी तो बुलाते, सुनाते-लुभाते, गले से लगाते हमें नेता।
ने वादे निभाते, धता क्यों बताते?, लुकाते-छिपाते, ठगें नेता।।
चुनावी अदाएँ, न भूलें-भुलाऍ, सदा झूठ बोलें, छली नेता।
न कानून जाने, नहीं सत्य माने, नहीं काम आते बली नेता।।
४.११.२०१७
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वागीश्वरी सवैया
गले आ लगो या गले से लगाओ, तिरंगी पताका उडाओ
कहो भी सुनो भी, न बातें बढ़ाओ, भुला भेद सारे न जाओ
जरा पंछियों को निहारो न जूझें, रहें साथ ही वे हमेशा
न जोड़ें, न तोड़ें, न फूँकें, न फोड़ें, उड़ें संग ही वे हमेशा
३०-१०-२०१७
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न तोड़ें घरौंदे, न काटे वनों को, न खोदें पहाड़ी सरे-आम।
न हल्ला मचाएँ, धुँआ भी न फैला, करें गन्दगी भी न मैं-आप।।
न पूरे तलैया, न तालाब पाटें, नदी को न मैली करें आप।
न रूठे धरा ये, न गुस्सा करें मेघ, इंसां न पाए कहीं शाप।।
३०.१०.२०१७
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मातंगी सवैया
प्रति पंक्ति ३६ मात्रा, sss की ६ आवृत्तियाँ, यति १२-२४-३६ पर, आदि-अंत sss
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दौड़ेंगे-भागेंगे, कूदेंगे-फांदेंगे, मेघों सा गाएँगे
वृक्षों सा झूमेंगे, नाचेंगे-गाएँगे, आल्हा गुन्जाएँगे
आतंकी शैतानों, मारेंगे-गाड़ेंगे, वीरों सा जीतेंगे
चंदा सा, तारों सा, आकाशी दीया हो, दीवाली लाएँगे
२६.१०.२०१७
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लता यादव, गुड़गाँव
अरसात सवैया ( वार्णिक छंद )-7भानस,1राजभा
211 211 211 211 211 211 211 212
( 2 लघु को गुरू मानना वर्जित )
पाँव पड़ूं कर जोर मनावत मातु उमा भव-सागर तारिणी
दीपक धूप कपूर जलावत आरति गावत दुःख निवारिणी
धीरज कौन विधी धरुं मात विचार करो मम काज सवारिणी
मातु हरो मम आपद भीषण दीन दुखी जन को भय हारिणी
२९-३-२०१७
बसंत कुमार शर्मा
31 मार्च 2018
एक सवैया का प्रयास
आज करूँ हिय से, विनती पिय से, मत दूर मुझे करना
सोंप दिया तन, सोंप दिया मन, मान सदा इस का रखना
क्लेश न हो, कुछ द्वेष न हो, अपने मन की, बतियाँ कहना
जीवन के पथ में, सुख हो दुख हो, तुम साथ सदा चलना
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मुक्तक -सलिल
भारती की आरती उतारते हैं नित्य प्रति रचनाओं से जो उनको नमन शत-शत.
कीर्ति मृदुल से सुवासित हैं दस दिशा, साधना सफल को नमन आज शत-शत.
जनम दिवस की बधाई भेजता 'सलिल' भाव की मिठाई स्वीकार करें शत-शत.
नेह नरमदा में नहायें आप नित्य प्रति, चांदनी सदृश उजियारें जग शत-शत.
७ १०.२००९
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
फ़िज़ाओं को, दिशाओं को बना अपना शामियाना
सफल होना चाहता तो सीख पगले! मुस्कुराना
ठोकरें खाकर न रुकना, गीत पुनि-पुनि गुनगुनाना
नफरतों का फोड़ पर्वत, स्नेह-सलिला नित बहाना
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हवाओं को दे चुनौती, तान भू पर आशियाना
बहाना सीखा बनाना तो न पायेगा ठिकाना
वही पथ पर पग रखे जो जानता सपने सजाना
सदाओं को, हवाओं को बना अपना शामियाना
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सघनतम हो तिमिर तो सन्निकट जिसने भोर माना
किरण कलमें क्षितिज पत्रों पर जिसे भाता चलाना
कालिमा को लालिमा में बदल जो रचता तराना
ऋचाएँ वंदन उसी का करें, तू मस्तक नवाना
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लक्ष्य पाना चाहता तो सीख पगले! मुस्कुराना
जान वह देता उजाला ले न किंचित मेहनताना
लुटा, पाना चाहता तो सीख पगले! मुस्कुराना
अदाओं को, प्रथाओं को बना अपना शामियाना
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मत लब से तुम याद करो, अंतर्मन से फ़रियाद करो
मतलब पूरा हो जायेगा, खुशियों को आबाद करो
गाँठ बाँध श्रम-कोशिश फेरे सात साथ यदि सकें लगा
देव सदय हों मंज़िल के संग आँख मिला संवाद करो
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जलाया दिया, अँधेरा हँस पिया, हर्षाया हिया
मुझे क्या दिया?, पूछती रही प्रिया, न बोला पिया
रमा में मन, बरबस न रमा, मुझे दें जिया
जिया न जाए, तेरे बिन मुझसे, यह क्या किया?
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मोती पाले गर्भ में, सदा मौन रह सीप
गोबर गुपचुप ही रहे, दें आँगन में लीप
बन गणेश जाता मिले, जब लक्ष्मी का संग
तिमिर मिटाता जगत का, जल-चुप रहकर दीप
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तन-मन रखिए साफ़, तब होगी दीपावली
दुश्मन को कर माफ़, नीति नहीं है यह भली
परख मीत की आप, करिए संकट में सदा-
दीन पाये इन्साफ, तब समझें विपदा टली
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वस्तुवदनक कला चौबिस चुनकर रचते कवि
पदांत चौकल-द्विकल हो तो शांत हो मन-छवि
उदाहरण:
१. प्राची पर लाली झलकी, कोयल कूकी / पनघट / पर
रविदर्शन कर उड़े परिंदे, चहक-चहक/कर नभ / पर
कलकल-कलकल उतर नर्मदा, शिव-मस्तक / से भू/पर
पाप-शाप से मुक्त कर रही, हर्षित ऋषि / मुनि सुर / नर

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