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शुक्रवार, 19 मई 2023

जबलपुर

चमकते पत्थरों का शहर - जबलपुर

प्रकृति की गोद में पर्यटन करना माँ की आँचल में किलकारी भरते हुए करवट बदलने की तरह है। पर्यटन आत्मिक शांति देने के साथ साथ सांस्कृतिक-सामाजिक संबंधों को सुदृढ़ करता है। अशांत मन कोशांत करने के लिए पर्यटन करना चाहिए। पर्यटन से पर्यटक का ज्ञान वर्धन होता है। पर्यटन स्थल की लोक संस्कृति और लोक जीवन के बारे में बहुत सारी गूढ़ जानकारी प्राप्त होती है। भारतवर्ष भिन्न-भिन्न विविधताओं, संस्कृतियों, संस्कारों, धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों से भरा हुआ देश है। हमारे देश के प्रत्येक राज्य में धार्मिक, प्राकृतिक, ऐतिहासिक महत्व के पर्यटक स्थल मिल जाएंगे जो भारत की विशालता और वैभवशाली प्राचीन विरासत को दर्शाते है। आइये, आज जबलपुर की सैर करते हैं। जबलपुर मध्यप्रदेश का प्रमुख महानगर है। यह समुद्र तट से ४१२ मी. की ऊँचाई पर स्थित है। इसका क्षेत्रफल ५२११ वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या लगभग २५ लाख है। जबलपुर के निकट नर्मदा क्षेत्र साधना भूमि के रूप में प्रसिद्ध रहा है। महर्षि अगस्त्य, जाबालि, भृगु, दत्तात्रेय आदि ने यहाँ तपस्या की है। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार त्रेता में राम सीता लक्षमण तथा द्वापर में कृष्ण व पांडवों का यहाँ आगमन हुआ था। यह गोंड़ तथा कलचुरी राजाओं के समय समृद्ध क्षेत्र रहा है। भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति का प्रथम प्रयास इसी अञ्चल में बुंदेला क्रांति १८४२ के रूप में सामने आया जिसने अग्रेजों का हृदय कँपा दिया था। सन १७८१ के बाद ही मराठों के मुख्यालय के रूप में चुने जाने पर इस नगर की सत्ता बढ़ी, बाद में यह सागर और नर्मदा क्षेत्रों के ब्रिटिश कमीशन का मुख्यालय बन गया। यहाँ  १८६४ में नगरपालिका का गठन हुआ था।

पुरातन वैभव


जबलपुर के समीप राष्ट्रीय जीवाश्म उद्यान, घुघवा (डिंडोरी) में ७५ एकड़ में पत्तियों और पेड़ों के आकर्षक और दुर्लभ जीवाश्म हैं जो ४ करोड़ से १५ करोड़ साल पहले मौजूद थे।नर्मदाघाटी के भू स्तरों की खोजों से पता चलता है कि नर्मदाघाटी की सभ्यता सिन्धु घाटी की सभ्यता से बहुत पुरानी है। लम्हेटा घाट के चट्टानों को कार्बन डेटिंग परीक्षण में लगभग ६ करोड़ वर्ष पुराना अनुमानित किया गया है। आयुध निर्माणी खमारिया के समीप पाटबाबा की पहाड़ियों से लगभग २ करोड़ वर्ष पूर्व विचरनेवाले भीमकाय डायनासौर राजासौरस नर्मदेडेंसिस के जीवाश्म तथा अंडे शिकागो विश्वविद्यालय के पेलियनोलिस्ट्स पॉल सेरेनो, मिशिगन विश्वविद्यालय के जेफ विल्सन और सुरेश श्रीवास्तव ने खोजे। नर्मदाघाटी में प्राप्त भैंसा, घोड़े, रिनोसिरस, हिप्पोपोटेमस, हाथी और मगर की हड्डियों तथा प्रस्तर-उद्योग संपन्न यह भूभाग आदि मानव का निवास था। १८७२ ई. में मिली स्फटिक चट्टान से निर्मित एक तराशी पूर्व-चिलयन युग की प्रस्तर कुल्हाड़ी भारत में प्राप्त प्रागैतिहासिक चिन्हों में सबसे प्राचीन है। भेड़ाघाट में पुरापाषाण युग के अनेक वृहत् जीवाश्म और प्रस्तरास्त्र मिले हैं। जबलपुर से लगभग २० कि.मी. दूर भेड़ाघाट विश्व का एकमात्र स्थान है जहाँ बहुरंगी संगमरमरी पहाड़ के बीच से नर्मदा की धवल सलिल धार प्रवाहित होती है। पंचवटी घाट से बंदरकूदनी तक नौकायन करते समय आकर्षित करते रंग-बिरंगे पत्थर मानो हमसे कहते हैं, आओ मुझे छूकर तो देखो… नर्मदा अञ्चल के ग्रामों में बंबुलिया और लमटेरा लोकगीतों की मधुर ध्वनि आज भी गूँजती है -

* नरबदा तो ऐसी मिलीं रे
जैसैं मिल गए मताई उन बाप रे

इस बंबुलिया लोकगीत में नवविवाहिता अपने मायके को याद करते हुए नर्मदा को माता और पिता, दोनों के रूप में देख रही है। प्रकृति का मानव के साथ घनिष्ठ संबंध म,आँव सभ्यता की धरोहर है।

* नरबदा मैया उल्टी तो बहै रे,
उल्टी बहै रे तिरबैनी बहै सूधी धार रे।

भारत उपमहाद्वीप की शेष नदियों के सर्वथा विपरीत दिशा में नर्मदा तथा ताप्ती नदियाँ  बहती हैं। यह भौगोलिक तथ्य एक लोक कथा के प्रचलित है है। तदनुसार व्यासजी से मुनियों ने प्रार्थना की, जिससे व्यासजी ने नर्मदा का स्मरण किया और नर्मदा ने अपने बहाव की दिशा बदल दी।

* नरबदा अरे माता तो लगै रे,
माता लगै रे तिरबैनी लगै मौरी बैन रे, नरबदा हो....।

कालक्रम की दृष्टि से नर्मदा बहुत ज्येष्ठ और गंगा कनिष्ठ हैं।  उक्त पंक्तियों में में नर्मदा को माता कहा गया है और त्रिवेणी को बहिन कहकर इस तथ्य को इंगित किया गया है। दश के विविध अंचलों को एक सूत्र में बाँधने की यही लोक रीति सफलराष्ट्रीय एकता का मूल है।

नर्मदा विश्व की एकमात्र नदी है जिसके उद्गम स्थल अमरकंटक पर्वत से सागर में विलय स्थल भरूच गुजरात तक सैंकड़ों परकम्मावासी (पदयात्री) पैदल परिक्रमा करते हैं। वे टोलियों में नदी के एक किनारे से चलकर भरुच में सागर में दूसरे किनारे पर आकर वापिस लौटते हैं। जबलपुर में नर्मदा के कई घाट हैं। हर घाट की अपनी कहानी और मनोरम छटा मन मोह लेती है। सिद्ध घाट, गौरीघाट, दरोगाघाट, खारीघाट, लम्हेटा घाट, तिलवाराघाट भेड़ाघाट, सरस्वती घाट आदि का सौन्दर्य अद्भुत है। चौंसठ योगिनी मंदिर के केंद्र में गौरीशंकर की प्राचीन किन्तु भव्य प्रतिमा है जिसके चारों ओर वृत्ताकार में चौंसठ योगिनियों की मूर्तियाँ हैं। समीप ही धुआँधार जल प्रपात की नैसर्गिक दिव्य छवि छटा अलौकिक है। सरस्वती घाट से बंदरकूदनी तक नौकायन करते समय दोनों ओर बहुरंगी संगमरमरी पहाड़ की छटा मनमोहक है। यह विश्व का एकमात्र स्थल है जहाँ सौन्दर्यमयी नर्मदा संगमरमारी पहाड़ के बीच से बहती है। जिस देश में गंगा बहती है, प्राण जाए पाए वचन न जाए, अशोका, मोहनजोदाड़ो आदि अनेक फिल्मों में यहाँ के भव्य दृश्यों का फिल्कमांन किया जा चुका है।   

गिरि दुर्ग मदन महल 

जबलपुर एक पहाड़ी पर गिरि दुर्ग मदन महल स्थित है जिसे ११०० ई. में राजा मदन सिंह द्वारा बनवाया गया एक पुराना गोंड महल है। इसके ठीक पश्चिम में गढ़ा है, जो १४ वीं शताब्दी के चार स्वतंत्र गोंड राज्यों का प्रमुख नगर-किला था। मदन महल के समीप ही कौआ डोल चट्टान (संतुलित शिला) है। यहाँ एक शिला ऊपर दूसरी विशाल शिला इस तरह रखी है कि मिलन स्थल सुई की नोक की तरह है। देखने से प्रतीत होता है कि कौए के बैठते ही ऊपरवाली चट्टान लुढ़क जाएगी पर भूकंप आने पर भी यह सुरक्षित रही। 

भारत का वेनिस 

संग्राम सागर, बाजना मठ, अधारताल, रानी ताल, चेरी ताल आदि जबलपुर को गोंड काल की देन है। जबलपुर ५२ तालाबों से संपन्न ऐसा शहर था जिसे भारत का वेनिस कहा जा सकता था। इनका निर्माण भू वैज्ञानिक दृष्टि से इस प्रकार किया गया था कि वर्षा जल सबसे पहले ऊपरी तालाब को भरे, फिर दूसरे, तीसरे चौथे और पाँचवे तालाब को भरने के बाद नर्मदा नदी में बहे। वर्तमान में अधिकांश तालाब पूरकर बस्ती बसा ली गई है तथापि कई तालाब अब भी अवशेष रूप में हैं। रामलला मंदिर, बड़े गणेश मंदिर ग्वारीघाट, गुप्तेश्वर, चित्रगुप्त मंदिर फूटाताल, राम जानकी मंदिर लाल माटी, पुष्टिमार्ग प्रवर्तक गोस्वामी  विट्ठल दास जी की बैठकी देव ताल, ओशो आश्रम, ओशो संबोधि वृक्ष भँवरताल, राजा रघुनाथ शाह बलिदान स्थल, त्रिपुर सुंदरी मंदिर, ब्योहार निवास साठिया कुआं, गोपाल लाल मंडी हनुमानताल, बड़ी खरमाई मंदिर, बूडी खरमाई मंदिर आदि महत्वपूर्ण स्थल हैं।


साहित्यिक अवदान


जबलपुर अञ्चल में आधुनिक हिन्दी अपने शुद्ध साहित्यिक रूप में आम लोगों में बोली लिखी पढ़ी जाते है। हिंदी का पहला व्याकरण जबलपुर में ही कामता प्रसाद गुरु जी द्वारा लिखा गया। पिंगल शास्त्र का प्रसिद्ध ग्रंथ छंद प्रभाकर रचनेवाले जगन्नाथ प्रसाद भानु भी जबलपुर से जुड़े हुए थे। जबलपुर की समृद्ध सारस्वत साधना के कालजयी हस्ताक्षरों में जगद्गुरु ब्रह्मानन्द सरस्वती जी, स्वरूपानन्द सरस्वती जी, क्रांतिकारी माखन लाल चतुर्वेदी, क्रांतिकारी ज्ञानचंद वर्मा, महीयसी महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेव प्रसाद 'सामी', केशव प्रसाद पाठक, रामानुज लाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी', पन्नालाल श्रीवास्तव 'नूर', ब्योहार राजेन्द्र सिंह, भवानी प्रसाद तिवारी, सेठ गोविन्द दास, महर्षि महेश योगी, आचार्य रजनीश (ओशो), द्वारका प्रसाद मिश्र, जवाहरलाल चौरसिया 'तरुण', हरिशंकर परसाई, प्रेमचंद श्रीवास्तव 'मज़हर', इंद्र बहादुर खरे, रामकृष्ण श्रीवास्तव, अमृत लाल वेगड़ आदि अविस्मरणीय हैं।

वर्तमान काल में हिंदी भाषा विज्ञान के विद्वान डॉक्टर सुरेश कुमार वर्मा, ५०० से अधिक नए छंदों की रचना करनेवाले तथा शिशु मंदिर विद्यालयों में गाई जाती दैनिक प्रार्थना 'हे हंसवाहिनी, ज्ञान-दायिनी,अंब- विमल मति दे' के रचनाकार आचार्य संजीव वर्मा "सलिल", राम वनवास यात्रा के अन्वेषक डॉ. गिरीश कुमार अग्निहोत्री, पाली विशेषज्ञ आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी, वैदिक वांगमय विशेषज्ञ डॉ. इला घोष, ख्यात वनस्पति शास्त्री डॉ. अनामिका तिवारी, समाजसेवी साधन उपाध्याय, अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त रसायनविद डॉ. अनिल बाजपेयी आदि सारस्वत साधन की अलख आज भी जलाए हुए हैं। जबलपुर के ख्यात चित्रकारों में ब्योहार राममनोहर सिन्हा, अमृत लाल वेगड़, हरी भटनागर, हरी श्रीवास्तव, सुरेश श्रीवास्तव, राजेन्द्र कामले, अस्मिता शैली आदि उल्लेखनीय हैं।   

तिलवारा एक्वाडक्ट 

जबलपुर में एशिया का सबसे अधिक लंबा एक्वाडक्ट तिलवारा घाट नें है। एक्वाडक्ट एक जटिल  संरचना अभियांत्रिकी संरचना होती है जिसमें नदी के ऊपर से नहर बहती है। तिलवार एक्वाडक्ट की खासियत यह है कि नर्मदा नदी के ऊपर से नर्मदा की ही नहर बहती है और उसके ऊपर से जबलपुर नागपूर राष्ट्रीय राजमार्ग का भारी सड़क यातायात भी जारी रहता है। 

भारत रत्न विश्वेश्वरैया की ९ मूर्तियाँ 

जबलपुर ने एक कीर्तिमान इंजीनियर्स फोरम के माध्यम से स्थापित किया है। किसी देश के निर्माण और विकास में अभियंताओं का योगदान सर्वाधिक होता है किन्तु सामन्यात: उसे पहचान नहीं जाता। आधुनिक भारतीय अभियांत्रिकी के मुकुटमणि डॉ. भारत रत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया हैं जिनके जन्म दिवस को 'अभियंता दिवस' के रूप में मनाया जाता है। जबलपुर के अभियंताओं ने विश्वेश्वरैया जी को शरुद्धाञ्जली देने के लिए उनकी ९ मूर्तियाँ नगर में स्थापित की हैं। अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' की पहल और प्रयासों से शासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय, मुख्य अभियंता लोक निर्माण विभाग कार्यालय, शासकीय कला निकेतन पॉलिटेकनिक, नर्मदा सर्किल कार्यालय, हितकारिणी अभियांत्रिकी महाविद्यालय, इन्स्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स कार्यालय, अतिथि गृह बरगी हिल्स, अधीक्षण अभियंता लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी कार्यालय तथा विद्युत मण्डल रामपुर में स्थापित एम. व्ही. की प्रतिमाएँ अभियंताओं की प्रेरणा स्रोत हैं। विश्व में अन्यत्र किसी भी नगर में एक अभियंता की इतनी मूर्तियाँ नहीं हैं। 

शिक्षा केंद्र 

जबलपुर में ५ शासकीय विश्वविद्यालय हैं। यह महाकौशल बुंदेलखंड का सबसे बड़ा शिक्षा केंद्र है। यहाँ हर विधा और शाखा की उच्च शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, सुभाषचंद्र बोस मेडिकल यूनिवर्सिटी, पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय तथा विधि विश्वविद्यालय जबलपुर की शान  हैं। जबलपुर  में आई.आई.आई.टी. तथा आई.आई.एम. दोनों राष्ट्रीय संस्थान हैं। अभियांत्रिकी शिक्षा के २० संस्थान, मेडिकल शिक्षा के २८ संस्थानों सहित जबलपुर में २३० विविध शिक्षा संस्थान हैं। 

भारत का रखवाला 

जबलपुर अपनी भौगोलिक स्थितियों के कारण चिरकाल से सुरक्षा का केंद्र रहा है। यहाँ आयुध निरामनीनिर्माणी खमरिया, सेंट्रल ऑर्डिनेंस डिपो, भारी वाहन कारखाना, धूसर लोहा फ़ाउन्ड्री आदि कारखानों में देख की रक्ष में महती भूमिका निभानेवाले अस्त्र-शस्त्र, वाहन आदि का निर्माण होता है। जबलपुर रक्षा क्लस्टर बनना प्रस्तावित है। बांग्ला देश के स्वतंत्रता के पश्चात आत्मसर्पण करनेवाली पकिस्तानी सेना के कमांडर नियाजी तथा सनिक जबलपुर में ही बंदी रखे गए थे।   

जाकी रही भावना जैसी

जबलपुर भारत का हृदय स्थल है। यह मध्यप्रदेश राज्य का सर्वाधिक प्राचीन पवित्र शहर है। सनातन सलिला नर्मदा की गोद में बसा जबलपुर श्यामल बैसाल्ट शिलाओं से संपन्न है, इसे 'पत्थरों का शहर' कहा जाता है। संत विनोबा भावे ने जबलपुर के साँस्कृतिक वैभव से प्रभावित होकर इसे 'संस्कारधानी' का विशेषण दिया तो नेहरू जी ने अपनी सभा में शोर कर रहे युवाओं पर नाराज होकर 'गुंडों का शहर' कहकर अपनी नाराजगी व्यक्त की। जबलपुर अनेकता में एकता परक समन्वय और सहिष्णुता की नगरी है। यहाँ के खान-पान में भी मिश्रित संस्कृति झलकती है। इडली-डोसा', 'वड़ा-सांभर' से लेकर 'दाल-बाफला' ठेठ मालवा फूड, खोवे (मावे) की जलेबी खाने के बाद तो बस आपको आनंद ही आने वाला है। जबलपुर के चप्पे चप्पे में इतिहास है। निस्संदेह आपने जबलपुर नहीं देखा तो आपका भारत भ्रमण पूर्ण नहीं हो सकता। 


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