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शुक्रवार, 26 मई 2023

बोफोर्स घोटाला

बोफोर्स घोटाला

24 मार्च, 1986: भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कम्पनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ। यह सौदा भारतीय थल सेना को 155 एमएम की 400 होवित्जर तोप की सप्लाई के लिए हुआ था।

16 अप्रैल, 1987: स्वीदेन के रेडियो ने दावा किया कि कम्पनी ने सौदे के लिए भारत के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और रक्षा विभाग के अधिकारी को 60 करोड़ रुपये घूस दिए हैं।

20 अप्रैल, 1987: लोकसभा में प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने बताया था कि न ही कोई रिश्वत दी गई और न ही बीच में किसी बिचौलिये की भूमिका थी।

6 अगस्त, 1987: रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय कमिटी (जेपीसी) का गठन हुआ। इसका नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री बी. शंकरानन्द ने किया।

फरवरी 1988: मामले की जांच के लिए भारत का एक जांच दल स्वीडन पहुंचा।

18 जुलाई, 1989: जेपीसी ने संसद को रिपोर्ट सौंपी।

नवम्बर, 1989: भारत में आम चुनाव हुए और कांग्रेस की बड़ी हार हुई और राजीव गांधी प्रधानमंत्री नहीं रहे।

26 दिसम्बर, 1989: नए प्रधानमन्त्री वी.पी.सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने बोफोर्स पर पाबन्दी लगा दी।

22 जनवरी, 1990: सीबीआई ने आपराधिक षडयन्त्र, धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्डबो, कथित बिचौलिये विन चड्ढा और हिन्दुजा बंधुओं के खिलाफ दर्ज किया।

फरवरी 1990: स्विस सरकार को न्यायिक सहायता के लिए पहला आग्रह पत्र भेजा गया।

फरवरी 1992: बोफोर्स घपले पर पत्रकार बो एंडर्सन की रिपोर्ट से भूचाल आ गया।

दिसम्बर 1992: मामले में शिकायत को सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया और दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया।

जुलाई 1993: स्विटजरलैंड के सुप्रीम कोर्ट ने ओत्तावियो क्वात्रोकी और मामले के अन्य आरोपियों की अपील खारिज कर दी। क्वात्रोकी इटली का एक व्यापारी था जिस पर बोफोर्स घाटाले में दलाली के जरिए घूस खाने का आरोप था। इसी महीने वह भारत छोड़कर फरार हो गया और फिर कभी नहीं आया।

फरवरी 1997: क्वात्रोकी के खिलाफ गैर जमानती वॉरंट (एनबीडब्ल्यू) और रेड कॉर्नर नोटिस जारी की गई।

मार्च-अगस्त 1998: क्वात्रोकी ने एक याचिका दाखिल की जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया क्योंकि उसने भारत के कोर्ट में हाजिर होने से इनकार कर दिया था।

दिसम्बर 1998: स्विस सरकार को दूसरा रोगैटरी लेटर भेजा गया और गर्नसी एवं ऑस्ट्रिया से स्विटजरलैंड पैसा ट्रांसफर किए जाने की जांच का आग्रह किया गया। रोगैटरी लेटर एक तरह का औपचारिक आग्रह होता है जिसमें एक देश दूसरे देश से न्यायिक सहायता की मांग करता है।

22 अक्टूबर, 1999: एबी बोफोर्स के एजेंट विन चड्ढा, क्वात्रोकी, तत्कालीन रक्षा सचिव एस.के.भटनागर और बोफोर्स कंपनी के प्रेजिडेंट मार्टिन कार्ल आर्डबो के खिलाफ पहला आरोपपत्र दाखिल किया गया।

मार्च-सितंबर 2000: सुनवाई के लिए चड्ढा भारत आया। उसने चिकित्सा उपचार के लिए दुबाई जाने की अनुमति मांगी थी लेकिन उसकी मांग खारिज कर दी गई थी।

सितंबर-अक्टूबर 2000: हिंदुजा बंधुओं ने लंदन में एक बयान जारी करके कहा कि उनके द्वारा जो फंड आवंटित किया गया, उसका बोफोर्स डील से कोई लेना-देना नहीं था। हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ एक पूरक आरोपपत्र दाखिल किया गया और क्वात्रोकी के खिलाफ एक आरोपपत्र दाखिल की गई। उसने सुप्रीम कोर्ट से अपनी गिरफ्तारी के फैसले को पलटने का आग्रह किया था लेकिन जब उससे जांच के लिए सीबीआई के समक्ष हाजिर होने को कहा तो उसने मानने से इनकार कर दिया।

दिसम्बर 2000: क्वात्रोकी को मलयेशिया में गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन बाद में जमानत दे दी गई। जमानत इस शर्त पर दी गई थी कि वह शहर नहीं छोड़ेगा।

अगस्त 2001: भटनागर की कैंसर से मौत हो गई।

दिसम्बर 2002: भारत नेद्वारा क्वात्रोकी के प्रत्यर्पण की मांग मलयेशिया के हाई कोर्ट ने खारिज कर दी।

जुलाई 2003: भारत ने यूके को अनुरोध पत्र (लेटर ऑफ रोगैटरी) भेजा और क्वात्रोकी के बैंक खाते को जब्त करने की मांग की।

फरवरी-मार्च 2004: कोर्ट ने स्वर्गीय राजीव गांधी और भटनागर को मामले से बरी कर दिया। मलयेशिया के सुप्रीम कोर्ट ने भी क्वात्रोकी के प्रत्यर्पण की भारत की मांग को खारिज कर दिया।

मई-अक्टूबर 2005: दिल्ली हाई कोर्ट ने हिंदुजा बंधु और एबी बोफोर्स के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया। 90 दिनों की अनिवार्य अवधि में सीबीआई ने कोई अपील दाखिल नहीं की। इसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक वकील अजय अग्रवाल को हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक अपील दाखिल करने की अनुमति दी।

जनवरी 2006: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सीबीआई को निर्देश दिया कि क्वात्रोकी के खातों के जब्त करने पर यथापूर्व स्थिति बनाए रखा जाए लेकिन उसी दिन पैसा निकाल लिया गया।

फरवरी-जून 2007: इंटरपोल ने अर्जेंटिना में क्वात्रोती को गिरफ्तार कर लिया लेकिन तीन महीने बाद अर्जेंटिना के कोर्ट ने प्रत्यर्पण के भारत के आग्रह को खारिज कर दिया।

अप्रैल-नवम्बर 2009: सीबीआई ने क्वात्रोकी के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस को वापस लिया। प्रत्यर्पण का प्रयास बार-बार विफल होने के कारण मामले को बंद करने की सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी। बाद में अजय अग्रवाल ने लंदन में क्वात्रोकी के खाते संबंधित दस्तावेज मांगे लेकिन सीबीआई ने याचिका का जवाब नहीं दिया।

दिसम्बर 2010: कोर्ट ने क्वात्रोकी को बरी करने की सीबीआई की याचिका पर फैसले को पलट दिया। इनकम टैक्स ट्राइब्यूनल ने क्वात्रोकी और चड्ढा के बेटे बकाया टैक्स वसूलने का इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को निर्देश दिया।

फरवरी-मार्च 2011: मुख्य सूचना आयुक्त ने सीबीआई पर सूचनाओं को वापस लेने का आरोप लगाया। एक महीने बाद दिल्ली स्थित सीबीआई के एक स्पेशल कोर्ट ने क्वात्रोकी को बरी कर दिया। टिप्पणी की कि टैक्सपेयर्स की गाढ़ी कमाई को देश उसके प्रत्यर्पण पर खर्च नहीं कर सकता हैं, पहले ही करीब 250 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।

अप्रैल 2012: स्वीडन पुलिस ने कहा कि राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन द्वारा रिश्वतखोरी का कोई साक्ष्य नहीं है। आपको बता दें कि अमिताभ बच्चन से राजीव गांधी की गहरी दोस्ती थी। एक समाचार पत्र की रिपोर्ट में अमिताभ बच्चन पर भी रिश्वतखोरी में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद उनके खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया गया था लेकिन बाद में उनको निर्दोष करार दे दिया गया था।

13, जुलाई 2013: सन् 1993 को भारत से फरार हुए क्वात्रोकी की मृत्यु हो गई। तब तक अन्य आरोपी जैसे भटनागर, चड्ढा और आर्डबो की भी मौत हो चुकी थी।

1 दिसम्बर, 2016: 12 अगस्त, 2010 के छह साल बाद अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई हुई।

14 जुलाई, 2017: सीबीआई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और केन्द्र सरकार अगर आदेश दें तो वह फिर से बोफोर्स मामले की जांच शुरू कर सकती है।

2 फरवरी, 2018: सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल करके दिल्ली हाई कोर्ट के 2005 के फैसले को चुनौती दी।

1 नवंबर, 2018: सीबीआई द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में बोफोर्स घोटाले की जांच फिर से शुरू किए जाने की मांग को शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई 13 साल की देरी से अदालत क्यों आई?

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