नवगीत
बुद्ध पूर्णिमा
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बुद्ध पूर्णिमा है
प्रबुद्ध नवगीत हुआ।
सब करो दुआ।।
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अब न विसंगति का रोना है
सपने नए नित्य बोना है
संकट-कंटक से क्यों डरना?
धीरज तनिक नहीं खोना है
विडंबना का तोड़ पिंजरा
नापे गगन सुआ।
बुद्ध पूर्णिमा है
प्रबुद्ध नवगीत हुआ।
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जब जब चले, गिरे तब तब हम
झट उठ बढ़े, न अँखियाँ कीं नम
पथ पर पग धर चुभन शूल की
सही-हँसे कोशिश न करी कम
पहले से तैयार, न खोदा
लेकर प्यास कुंआ।
बुद्ध पूर्णिमा है
प्रबुद्ध नवगीत हुआ।
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दीपक-नीचे तिमिर न देखो
आत्म-दीप की आभा लेखो
नास्ति त्याग कर अस्ति पंथ वर
अपरा-परा संग अवरेखो
भटक न जाए मोह पाश बँध
अपना मनस मुआ।
बुद्ध पूर्णिमा है
प्रबुद्ध नवगीत हुआ।
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