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रविवार, 22 नवंबर 2020

नवगीत

नवगीत:
*
रस्म की दीवार
करती कैद लेकिन
आस खिड़की
रूह कर आज़ाद देती 
*
सोच का दरिया
भरोसे का किनारा
कोशिशी सूरज
न हिम्मत कभी हारा
उमीदें सूखी नदी में
नाव खेकर
हौसलों को हँस
नयी पतवार देती
*
हाथ पर मत हाथ
रखकर बैठना रे!
रात गहरी हो तो
सूरज लेखना रे!
कालिमा को लालिमा
करती विदा फिर
आस्मां को
परिंदा उपहार देती
*
२२-११-२०१४

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