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मंगलवार, 24 नवंबर 2020

मुक्तक

मुक्तक
संजीव
*
मुख पुस्तक मुख को पढ़ने का ग्यान दे
क्या कपाल में लिखा दिखा वरदान दे
शान न रहती सदा मुझे मत ईश्वर दे
शुभाशीष दे, स्नेह, मान जा दान दे
*
मुख पर आते भाव, कहते कैसा किसका चाव 
चाह रहा है डुबाना या पार लगाना नाव? 
मुखपोथी को पढ़ सखे! तभी हो सके पार- 
सत्य जानकर शांत रह; होगा तभी निभाव 
*
मुखपोथी पर गुरु मिले अगिन; न लेकिन शिष्य
खुद का ज्ञात न; बाँचते दुनिया का भवितव्य 
प्रीति पुरातन से नहीं यहाँ किसी को काम-
करें न लेकिन चाहते; प्रीति पा सकें नव्य 
***

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