संजीव
*
मुख पुस्तक मुख को पढ़ने का ग्यान दे
क्या कपाल में लिखा दिखा वरदान दे
शान न रहती सदा मुझे मत ईश्वर दे
शुभाशीष दे, स्नेह, मान जा दान दे
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मुख पर आते भाव, कहते कैसा किसका चाव
चाह रहा है डुबाना या पार लगाना नाव?
मुखपोथी को पढ़ सखे! तभी हो सके पार-
सत्य जानकर शांत रह; होगा तभी निभाव
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मुखपोथी पर गुरु मिले अगिन; न लेकिन शिष्य
खुद का ज्ञात न; बाँचते दुनिया का भवितव्य
प्रीति पुरातन से नहीं यहाँ किसी को काम-
करें न लेकिन चाहते; प्रीति पा सकें नव्य
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