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बुधवार, 25 नवंबर 2020

क्षणिका, दोहा, मुक्तक

क्षणिका 
गीत क्या?, 
नवगीत क्या? 
बोलें, निर्मल बोलें 
बात मन की करें 
दिल दरवाजे खोलें.
*
दोहा 
निर्मल है नवगीत का,त्रिलोचनी संसार.
निहित कल्पना मनोरम, ज्यों संध्या आगार.
*
मुक्तक 
यायावर मन दर-दर भटके, पर माया मृग हाथ न आए
निर्मल संध्या कर प्रदीप ले; शरद पूर्णिमा मधु बिखराए  
सलिल साथ खिल पंकज विहँसे, चंचल मधुकर बंधु खोजता-
ले रणजीत चाहता लेकिन, मोहपाश में बंध पछताए 
*

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