क्षणिका
गीत क्या?,
नवगीत क्या?
बोलें, निर्मल बोलें
बात मन की करें
दिल दरवाजे खोलें.
*
दोहा
निर्मल है नवगीत का,त्रिलोचनी संसार.
निहित कल्पना मनोरम, ज्यों संध्या आगार.
*
मुक्तक
यायावर मन दर-दर भटके, पर माया मृग हाथ न आए
निर्मल संध्या कर प्रदीप ले; शरद पूर्णिमा मधु बिखराए
सलिल साथ खिल पंकज विहँसे, चंचल मधुकर बंधु खोजता-
ले रणजीत चाहता लेकिन, मोहपाश में बंध पछताए
*
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