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रविवार, 29 नवंबर 2020

दोहा सलिला

 दोहा सलिला

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नारी के दो-दो जगत, वह दोनों की शान
पाती है वरदान वह, जब हो कन्यादान.
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नारी को माँगे बिना, मिल जाता नर-दास.
कुल-वधु ले नर दान में, सहता जग-उपहास.
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दल-बल सह जा दान ले, भिक्षुक नर हो दीन.
नारी बनती स्वामिनी, बजा चैन से बीन.
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चीन्ह-चीन्ह आदेश दे, बीन-बीन ले हक.
समता कर सकता न नर, तज कोशिश नाहक.
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दो-दो मात्रा अधिक है, नारी नर से जान.
कुशल चाहता तो कभी, बैर न उससे ठान.
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यह उसका रहमान है, वह इसकी रसखान.
उसमें इसकी जान है, इसमें उसकी जान.
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२९-११-२०१७

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