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रविवार, 22 नवंबर 2020

नवगीत

नवगीत:
संजीव
*
अहर्निश चुप
लहर सा बहता रहे
*
आदमी क्यों रोकता है धार को?
क्यों न पाता छोड़ वह पतवार को
पला सलिला के किनारे, क्यों रुके?
कूद छप से गव्हर नापे क्यों झुके?
सुबह उगने साँझ हँस
ढलता रहे
हरीतिमा की जयकथा
कहता रहे
अहर्निश चुप
लहर सा बहता रहे
*
दे सके औरों को कुछ, ले कुछ नहीं
सिखाती है यही भू माता मही
कलुष पंकिल से उगाना है कमल
धार तब ही बह सकेगी हो विमल
मलिन वर्षा जल
विकारों सा बहे
शांत हों, मन में
न दावानल दहे
अहर्निश चुप
लहर सा बहता रहे
*ऊर्जा है हर लहर में कर ग्रहण
लग न लेकिन तू लहर में बन ग्रहण
विहंगम रख दृष्टि, लघुता छोड़ दे
स्वार्थ साधन की न नाहक होड़ ले
कहानी कुदरत की सुन,
अपनी कहे
स्वप्न बनकर नयन में
पलता रहे
अहर्निश चुप
लहर सा बहता रहे
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२२-११-२०१४

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