कुल पेज दृश्य

शनिवार, 21 नवंबर 2020

एक रचना

एक रचना
*
भ्रमरवत करो सभी गुंजार,
बाग में हो मलयजी बयार.
अजय वास्तव में श्रीे के साथ
लिए चिंतामणि बाँटे प्यार.
बसन्ती कांति लुटा मिथलेश
करें माया की हँस मनुहार.
कल्पना कांता सत्या संग
छंद रच करें शब्द- श्रन्गार.
अदब की पकड़े लीक अजीम
हुमा दे दस दिश नवल निखार.
देख विश्वंभर छिप रति-काम
मौन हो गए प्रशांत, न धार.
सुमन ले सु-मन, विनीता कली
चंचला तितली बाग-बहार.
प्रेरणा गिरिधारी दें आज
बिना दर्शन मेघा बेज़ार.
विनोदी पुष्पा हो संजीव,
सरस रस वर्षा करे निहार.
रहे जर्रार तेज-तर्रार,
विसंगति पर हो शब्द-प्रहार.
अनिल भू नभ जल अग्नि अमंद
काव्यदंगल पर जग बलिहार.
***
२१-११-२०१७

कोई टिप्पणी नहीं: