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मंगलवार, 24 नवंबर 2020

दोहा और रेलगाड़ी

दोहा और  रेलगाड़ी 
संजीव 
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बीते दिन फुटपाथ पर, प्लेटफॉर्म पर रात
ट्रेन लेट है प्रीत की, बतला रहा प्रभात
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बदल गया है वक़्त अब, छुकछुक गाड़ी गोल 
इंजिन दिखे न भाप का, रहा नहीं कुछ मोल 
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भोर दुपहरी सांझ या, पूनम-'मावस रात 
काम करे निष्काम रह, इंजिन बिन व्याघात 
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'स्टेशन आ रहा है', क्यों कहते  इंसान? 
आते-जाते आप वे, जगह नहीं गतिमान 
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चलें 'रेल' पर गाड़ियाँ, कहते 'आई रेल'
आती-जाती 'ट्रेन' है, बात न कर बेमेल 
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डब्बे में घुस सके जो, थाम किसी का हाथ 
बैठ गए चाहें नहीं, दूजा बैठे साथ
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तीसमारखाँ बन करें, बिना टिकिट जो सैर 
टिकिट निरीक्षक पकड़ता, रहे न उनकी खैर
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दर्जन भर करते विदा, किसी एक को व्यर्थ 
भीड़ बढ़ाते अकारण, करते अर्थ-अनर्थ 
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ट्रेन छूटने तक नहीं चढ़ते, करते गप्प 
चढ़ें दौड़ गिरते फिसल, प्लॉटफॉर्म पर धप्प 
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सुविधा का उपयोग कर, रखिए स्वच्छ; न तोड़ 
बारी आने दीजिए, करें न नाहक होड़ 
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कभी नहीं वह खाइए, जो देता अनजान 
खिला नशीली वस्तु वह, लूटे धन-सामान 
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चेहरा रखिए ढाँककर, स्वच्छ हमेशा हाथ 
दूरी रखिए हमेशा, ऊँचा रखिए माथ 
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२३-११-२०२० 
 

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