कुल पेज दृश्य

शनिवार, 21 नवंबर 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
*  
शांत हों, प्रशांत हों
पर नहीं अशांत हों
असंतुष्ट?, क्रांत हों.
युवा नहीं भ्रांत हों.
सूर्य बने, तम हरें
अस्त हो दिनांत हों.
कांत कांता सुशांत
शांत सफ़ल कांत हों.
सबद, प्रे, अजान सम
बात कह, दिशांत हों.
...
२१-११-२०१७ 

कोई टिप्पणी नहीं: