मुक्तक
सूरज आया, नभ पर छाया
धरती पर सोना बिखराया
जग जाग उठा कह शुभ प्रभात
खग-दल ने गीत मधुर गाया
*
दोहा
सिया-सिंधु की उर्मि ला, अँजुरी रखें अँजोर.
लछ्मन-मन नभ, उर्मिलामनहर उज्ज्वल भोर.
*
लक्ष्य रखे जो एक ही, वह जन परम सुजान.
लख न लक्ष मन चुप करे साध तीर संधान.
*
लखन लक्ष्मण या कहें, लछ्मन उसको आप.
राम-काम सौमित्र का, हर लेता संताप.
*
मन में बसी सुवास है, उर्मि लखन हैं फ़ूल.
सिया-राम गलहार में, शोभित रहते झूल.
*
लखन-उर्मिला देह-मन, इसमें उसका वास.
इस बिन उसका है कहाँ, कहिए अन्य सु-वास.
*
२१-११-२०१७
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 21 नवंबर 2020
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