दोहा सलिला
खोता निज पहचान तब, रेखा बनता बिंदु।
पीट रहा निज ढोल पर, तारा बना न इंदु।।
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चिल्लाने से नियति कब, सुनती? व्यर्थ पुकार।
मौन भाव से टेर प्रभु, सुन करते उद्धार।।
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२३-११-२०१७
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
दोहा सलिला
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