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रविवार, 1 नवंबर 2020

मेजर शैतान सिंह

मेजर शैतान सिंह


जन्म : १ दिसंबर १९२४, जोधपुर राज्य। 
शहादत : १८ नवंबर १९६२, रेजांग ला वॉर मेमोरियल, अहिर धामपुर।
पत्नी: शगुन कंवर (विवाह –१९६२) ।
माता-पिता: हेम सिंह भाटी।
परमवीर चक्र (मरणोपरांत): १९६३। 
पराक्रम कथा :


अक्टूबर १९६२ में चीन ने भारत पर आक्रमण किया। १३ वीं कुमाऊंनी बटालियन की सी कंपनी के १२० जवान लद्दाख में तैनात थे। १८ नवंबर १९६२ को २००० चीनी सैनिकों ने रेजांग ला में भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया। चीनी मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में वीर सैनिकों ने हाड़ जमा देने वाली भीषण शीत में पर्याप्त कपड़ों और आधुनिक हथियारों के बिना चीनी सैनिकों का सामना किया। चीनी सेना अपेक्षाकृत उन्नत शस्त्रास्त्रोँ और साजो सामान से सुसज्जित थी। 
अनूठी रणनीति 
जब शैतान सिंह को आभास हुआ चीन की ओर से बड़ा हमला होने वाला है तो उन्होंने अपने अधिकारियों को रेडियो संदेश भेजा और मदद माँगी। विधि की विडंबना कि खराब मौसम के कारण कोई मदद पहुँचाना संभव नहीं हो सका। अत:, उनसे कहा गया कि सभी सैनिकों को लेकर चौकी छोड़कर पीछे हट जाओ। स्वाभिमानी मेजर शैतान सिंह ने हार मानकर पीछे न हटने का फैसला लिया। वह बखूबी जानते थे कि वक्त कम है और चीनी सेना कभी भी हमला बोल सकती है। ऐसी विषम परिस्थिति में तुरंत उन्होंने अपने सैनिकों को बुलाया और कहा- "हम १२० हैं, दुश्मनों की संख्या हमसे ज्यादा हो सकती है। पीछे से हमें कोई मदद नहीं मिल रही है। हो सकता है हमारे पास मौजूद हथियार कम पड़ जाए। हो सकता है हम से कोई न बचे और हम सब शहीद हो जाएँ, जो भी अपनी जान बचाना चाहते हैं वह पीछे हटने के लिए आजाद हैं, लेकिन मैं मरते दम तक मुकाबला करूँगा। मेजर शैतान सिंह ने संसाधनों की कमी और शत्रुओं की अधिक सैनिक संख्या को देखते हुए एक रणनीति तैयार की ताकि एक भी गोली बर्बाद न जाए। हर गोली निशाने पर लगे और शत्रु सैनिक के मारे जाने पर उनसे बंदूकें तथा कारतूस आदि छीन लिए जाएँ। 
चीनी सेना के दाँत खट्टे हुए
चीनी सेना ये मान चुकी थी कि भारतीय सेना ने चौकी छोड़ दी है। वह नहीं जानती थी उसका सामना जाबांज शैतान सिंह और उनके पराक्रमी वीर सैनिकों के साथ है। सवेरे लगभग ५ बजे भारतीय सैनिकों ने चीनी सेना पर गोली बरसाकर दुश्मनों को ढेर कर दिया। हर तरफ शत्रु सैनिकों की लाशें पड़ी थीं। मेजर शैतान सिंह ने कहा था कि यह मत समझो युद्ध का अंत हो गया है, यह तो सिर्फ शुरुआत है। कुछ समय बाद चीन ने दोबारा आक्रमण किया। लड़ते-लड़ते भारतीय सैनिकों के पास केवल ५-७ गोलियाँ बचीं। चीनियों ने रेजांग ला में मोर्टार तथा रॉकेटों से भारी गोलीबारी शुरू कर दी। भारतीय सैनिकों को केवल अपने जोश का सहारा था, क्योंकि रेजांग ला पर भारतीय बंकर भी नहीं थे और दुश्मन रॉकेट पर रॉकेट दागे जा रहा था। लड़ते हुएमेजर शैतान सिंह के हाथ में गोली भी लग चुकी थी। 
दूरंदेश मेजर शैतान सिंह
मेजर शैतान सिंह अच्छे से जानते थे कि २००० चीनी सैनिकों और उन्नत हथियारों का केवल १२० भारतीय अपेक्षाकृत कम उन्नत हत्यारों के साथ भारतीय सेना बहुत देर तक सामना नहीं कर सकेगी। यह भी कि सभी जवान शहीद हो गए तो भारत के लोग और सरकार यह बात कभी नहीं जान सकेगी कि आखिर रेजांग ला में क्या हुआ था? उन्होंने दो घायल सैनिकों रामचंद्र और निहाल सिंह से कहा कि वह तुरंत पीछे चले चले जाएँ। निहाल सिंह को चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया और अपने साथ ले गए। १३ वीं कुमाऊँ बटालियन की इस पलटन में १२० में से केवल १४ जवान जिंदा बचे थे जिनमें से ९ गंभीर रूप से घायल थे. बता दें। भारत के केवल जवानों ने १३०० चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। बाद में चीन ने अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में ये कबूल कर लिया कर लिया था कि १९६२ के युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान इसी मोर्चे पर हुआ था। 
जब बर्फ में दबे मिले शव
युद्ध को खत्म हुए ३ महीने हो गए थे किन्तु मेजर शैतान सिंह और उनके सैनिकों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी। मौसम बदलने के साथ रेजांग ला की बर्फ पिघली और रेड क्रॉस सोसायटी और सेना के जवानों ने उन्हें खोजना शुरू किया। एक दिन एक गड़रिये अपनी भेड़ें चराने रेजांग की ओर जा रहा था। उसे बड़ी सी चट्टान में वर्दी में कुछ नजर आया। उसने तुरंत यह सूचना वहाँ पदस्थ सैन्य अधिकारियों को दी। सेना ने अविलंब वाहन पहुँचकर जांच-पड़ताल की। उन्होंने जो दृश्य देखा, उसे देखकर सबके होश उड़ गए। एक-एक सैनिक उस दिन भी अपनी-अपनी बंदूकें थामे ऐसे बैठे थे मानो अभी भी लड़ाई चल रही हो। उनमें शैतान सिंह भी अपनी बंदूक थामे बैठे थे। ऐसा लग रहे थे जैसे मानो अभी भी युद्ध के लिए तैयार हैं। युद्ध कितनी दे तक चला यह तो जानकारी नहीं मिल सकी किन्तु यह स्पष्ट हो गया था कि मेजर शैतान सिंह अपने बहादुर जवानों के साथ अंतिम गोली और अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ते रहे थे और लड़ते-लड़ते बर्फ की आगोश में आ गए थे। मेजर शैतान सिंह का उनके होमटाउन जोधपुर में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उन्हें देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। आज रेजांग ला आज शूरवीरों का तीर्थ है। मेजर शैतान सिंह और उनकी बटालियन सैनिकों का अद्वितीय पराक्रम सैन्य इतिहास में अमर हो गया।
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