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शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

धनतेरस कब, क्यों और कैसे?
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर सागर मंथन से उत्पन्न हुए थे। इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस घोषित किया है। धनतेरस यानी अपने धन को १३ गुणा बनाने की लोक मान्यता का द‌िन है । धनतेरस पर बरतन वाहन, गहने, बहुमूल्य उपकरण आदि खरीदने की प्रथा है। 
धनतेरस पर धन्वन्तरि,लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की पूजा करने से स्वास्थ्य-समृद्धि बनी रहती है। ॐ धं धन्वन्तरये नमः मंत्र का १०८ बार उच्चारण करभगवान धनवंतरी से अच्छी सेहत की कामना करें। धनवन्तरी की पूजा के बाद गणेश जी के समक्ष दिया-धूपबत्ती जला, फूल अर्पण कर मिठाई का नैवैद्य अर्पित करें। इसी तरह लक्ष्मी पूजन करें। धनतेरस और कुबीर देवता की पूजा हेतु एक लकड़ी के तख्ते पर स्वास्तिक का निशान बना लें।इस पर एक तेल का दिया रख-जलाकर,ढक दें। दिये के सब ओर तीन बार गंगा जल छिड़क, दीपक पर रोली-चावल से तिलक कर मीठे का भोग लगा 1 सिक्का रख लक्ष्मी और गणेश जी को अर्पण करें। दीपक को प्रणाम कर बड़ों से आशीर्वाद लें।दिया अपने घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर बाती कर रखें। तेरह दिए बालकर घर में हर ओर रख दें।
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लघुकथा:
धनतेरस
*
वह कचरे के ढेर में रोज की तरह कुछ बीन रहा था, बुलाया तो चला आया। त्यौहार के दिन भी इस गंदगी में? घर कहाँ है? वहाँ साफ़-सफाई क्यों नहीं करते? त्यौहार नहीं मनाओगे? मैंने पूछा।
'क्यों नहीं मनाऊँगा?, प्लास्टिक बटोरकर सेठ को दूँगा जो पैसे मिलेंगे उससे लाई और दिया लूँगा।' उसने कहा।
'मैं लाई और दिया दूँ तो मेरा काम करोगे?' कुछ पल सोचकर उसने हामी भर दी और मेरे कहे अनुसार सड़क पर नलके से नहाकर घर आ गया। मैंने बच्चे के एक जोड़ी कपड़े उसे पहनने को दिए, दो रोटी खाने को दी और सामान लेने बाजार चल दी। रास्ते में उसने बताया नाले किनारे झोपड़ी में रहता है, माँ बुखार के कारण काम नहीं कर पा रही, पिता नहीं है।
ख़रीदे सामान की थैली उठाये हुए वह मेरे साथ घर लौटा, कुछ रूपए, दिए, लाई, मिठाई और साबुन की एक बट्टी दी तो वह प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखते हुए पूछा: 'ये मेरे लिए?' मैंने हाँ कहा तो उसके चहरे पर ख़ुशी की हल्की सी रेखा दिखी। 'मैं जाऊँ?' शीघ्रता से पूछ उसने कि कहीं मैं सामान वापिस न ले लूँ। 'जाकर अपनी झोपड़ी, कपड़े और माँ के कपड़े साफ़ करना, माँ से पूछकर दिए जलाना और कल से यहाँ काम करने आना, बाक़ी बात मैं तुम्हारी माँ से कर लूँगी।
'क्या कर रही हो, ये गंदे बच्चे चोर होते हैं, भगा दो' पड़ोसन ने मुझे चेताया। गंदे तो ये हमारे फेंके कचरे को बीनने से होते हैं। ये कचरा न उठायें तो हमारे चारों तरफ कचरा ही कचरा हो जाए। हमारे बच्चों की तरह उसका भी मन करता होगा त्यौहार मनाने का।
'हाँ, तुम ठीक कह रही हो। हम तो मनायेंगे ही, इस बरस उसकी भी मन सकेगी धनतेरस'
कहते हुए ये घर में आ रहे थे और बच्चे के चहरे पर चमक रहा था थोड़ा सा चन्द्रमा।
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एक रचना
: पाँच पर्व :
*
पाँच तत्व की देह है,
ज्ञाननेद्रिय हैं पाँच।
कर्मेन्द्रिय भी पाँच हैं,
पाँच पर्व हैं साँच।।
*
माटी की यह देह है,
माटी का संसार।
माटी बनती दीप चुप,
देती जग उजियार।।
कच्ची माटी को पका
पक्का करती आँच।
अगन-लगन का मेल ही
पाँच मार्ग का साँच।।
*
हाथ न सूझे हाथ को
अँधियारी हो रात।
तप-पौरुष ही दे सके
हर विपदा को मात।।
नारी धीरज मीत की
आपद में हो जाँच।
धर्म कर्म का मर्म है
पाँच तत्व में जाँच।।
*
बिन रमेश भी रमा का
तनिक न घटता मान।
ऋद्धि-सिद्धि बिन गजानन
हैं शुभत्व की खान।।
रहें न संग लेकिन पूजें
कर्म-कुंडली बाँच।
अचल-अटल विश्वास ही
पाँच देव हैं साँच।।
*
धन्वन्तरि दें स्वास्थ्य-
धनहरि दें रक्षा-रूप।
श्री-समृद्धि, गणपति-मति
देकर करें अनूप।।
गोवर्धन पय अमिय दे
अन्नकूट कर खाँच।
बहिनों का आशीष ले
पाँच शक्ति शुभ साँच।।
*
पवन, भूत, शर, अँगुलि मिल
हर मुश्किल लें जीत।
पाँच प्राण मिल जतन कर
करें ईश से प्रीत।।
परमेश्वर बस पंच में
करें न्याय ज्यों काँच।
बाल न बाँका हो सके
पाँच अमृत है साँच
*****

नवगीत
*
मन-कुटिया में
दीप बालकर
कर ले उजियारा।
तनिक मुस्कुरा
मिट जाएगा
सारा तम कारा।।
*
ले कुम्हार के हाथों-निर्मित
चंद खिलौने आज।
निर्धन की भी धनतेरस हो
सध जाए सब काज।
माटी-मूरत,
खील-बतासे
है प्रसाद प्यारा।।
*
रूप चतुर्दशी उबटन मल, हो
जगमग-जगमग रूप।
प्रणय-भिखारी गृह-स्वामी हो
गृह-लछमी का भूप।
रमा रमा में
हो मन, गणपति
का कर जयकारा।।
*
स्वेद-बिंदु से अवगाहन कर
श्रम-सरसिज देकर।
राष्ट्र-लक्ष्मी का पूजन कर
कर में कर लेकर।
निर्माणों की
झालर देखे
विस्मित जग सारा।।
*
अन्नकूट, गोवर्धन पूजन
भाई दूज न भूल।
बैरी समझ कूट मूसल से
पैने-चुभते शूल।
आत्म दीप ले
बाल, तभी तो
होगी पौ बारा।।
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गीत:
दीप, ऐसे जलें...
संजीव 'सलिल'
दीप के पर्व पर जब जलें-
दीप, ऐसे जलें...
स्वेद माटी से हँसकर मिले,
पंक में बन कमल शत खिले।
अंत अंतर का अंतर करे-
शेष होंगे न शिकवे-गिले।।
नयन में स्वप्न नित नव खिलें-
दीप, ऐसे जलें...
श्रम का अभिषेक करिए सदा,
नींव मजबूत होगी तभी।
सिर्फ सिक्के नहीं लक्ष्य हों-
साध्य पावन वरेंगे सभी।।
इंद्र के भोग, निज कर मलें-
दीप, ऐसे जलें...
जानकी जान की खैर हो,
वनगमन-वनगमन ही न हो।
चीर को चीर पायें ना कर-
पीर बेपीर गायन न हो।।
दिल 'सलिल' से न बेदिल मिलें-
दीप, ऐसे जलें...
धन तेरस पर नव छंद
गीत
*
छंद: रविशंकर
विधान:
१. प्रति पंक्ति ६ मात्रा
२. मात्रा क्रम लघु लघु गुरु लघु लघु
***
धन तेरस
बरसे रस...
*
मत निन्दित
बन वन्दित।
कर ले श्रम
मन चंदित।
रचना कर
बरसे रस।
मनती तब
धन तेरस ...
*
कर साहस
वर ले यश।
ठुकरा मत
प्रभु हों खुश।
मन की सुन
तन को कस।
असली तब
धन तेरस ...
*
सब की सुन
कुछ की गुन।
नित ही नव
सपने बुन।
रख चादर
जस की तस।
उजली तब
धन तेरस
***
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
धनतेरस पर विशेष गीत...
प्रभु धन दे...
*
प्रभु धन दे निर्धन मत करना.
माटी को कंचन मत करना.....
*
निर्बल के बल रहो राम जी,
निर्धन के धन रहो राम जी.
मात्र न तन, मन रहो राम जी-
धूल न, चंदन रहो राम जी..
भूमि-सुता तज राजसूय में-
प्रतिमा रख वंदन मत करना.....
*
मृदुल कीर्ति प्रतिभा सुनाम जी.
देना सम सुख-दुःख अनाम जी.
हो अकाम-निष्काम काम जी-
आरक्षण बिन भू सुधाम जी..
वन, गिरि, ताल, नदी, पशु-पक्षी-
सिसक रहे क्रंदन मत करना.....
*
बिन रमेश क्यों रमा राम जी,
चोरों के आ रहीं काम जी?
श्री गणेश को लिये वाम जी.
पाती हैं जग के प्रणाम जी..
माटी मस्तक तिलक बने पर-
आँखों का अंजन मत करना.....
*
साध्य न केवल रहे चाम जी,
अधिक न मोहे टीम-टाम जी.
जब देना हो दो विराम जी-
लेकिन लेना तनिक थाम जी..
कुछ रच पाए कलम सार्थक-
निरुद्देश्य मंचन मत करना..
*
अब न सुनामी हो सुनाम जी,
शांति-राज दे, लो प्रणाम जी.
'सलिल' सभी के सदा काम जी-
आये, चल दे कर सलाम जी..
निठुर-काल के व्याल-जाल का
मोह-पाश व्यंजन मत करना.....
दिवाली गीत:
आओ! दीपावली मनायें...
आचार्य संजीव 'सलिल'
*
साफ़ करें कमरा, घर, आँगन.
गली-मोहल्ला हो मन भावन.
दूर करें मिल कचरा सारा.
हो न प्रदूषण फिर दोबारा.
पन्नी-कागज़ ना फैलायें.
व्यर्थ न ज्यादा शोर मचायें.
करें त्याग रोकेट औ' बम का.
सब सामान साफ़ चमकायें.
आओ! दीपावली मनायें...
*
नियमित काटें केश और नख.
सबल बनें तन सदा साफ़ रख.
नित्य नहायें कर व्यायाम.
देव-बड़ों को करें प्रणाम.
शुभ कार्यों का श्री गणेश हो.
निबल-सहायक प्रिय विशेष हो.
परोपकार सम धर्म न दूजा.
पढ़े पुस्तकें, ज्ञान बढायें
आओ! दीपावली मनायें...
*
धन तेरस पर सद्गुण का धन.
संचित करें, रहें ना निर्धन.
रूप चतुर्दशी कहे: 'सँवारो
तन-मन-दुनिया नित्य निखारो..
श्री गणेश-लक्ष्मी का पूजन.
करो- ज्ञान से ही मिलता धन.
गोवर्धन पूजन का आशय.
पशु-पक्षी-प्रकृति हो निर्भय.
भाई दूज पर नेह बढायें.
आओ! दीपावली मनायें...
*

दोहा-दोहा धन तेरस 
तेरह दीपक बालिए, ग्यारह बाती युक्त। 
हो प्रदीप्त साहित्य-घर, रस-लय हो संयुक्त।। 
लघु से गुरु गुरुता गहे, गुरु से लघु की वृद्धि। 
जब दोनों संयुक्त हो, होती तभी समृद्धि।। 
धन चराग प्रज्वलित कर, बाँटें सतत प्रकाश। 
ज्योतित वसुधा देखकर, विस्मित हो आकाश।। 
ज्योति तेल-बाती जले, दिया पा रहा श्रेय। 
तिमिर पूछता देव से, कहिए क्या अभिप्रेय?? 
ज्योति तेल बाती दिया, तनहा करें न काम। 
मिल जाएँ तो पी सकें, जग का तिमिर तमाम।। 
चल शारद-दरबार में, बालें रचना-दीप। 
निर्धन के धन शब्द हों, हर कवि बने महीप।। 
धन तेरस का हर दिया, धन्वन्तरि के नाम। 
बालें तन-मन स्वस्थ हों, काम करें निष्काम।। 
*
नवगीत
*
लछमी मैया!
भाव बढ़ रहे, रुपया गिरता
दीवाली है।
भरा बताते 
किन्तु खज़ाना और तिजोरी 
तो खाली है
*
धन तेरस पर
निर्धन पल-पल देश क्यों हुआ
कौन बताए?
दीवाली पर
दीवाला ही यहाँ हो रहा?
राम बचाए।
सत्ता चाहे
हो विपक्ष से रहित तंत्र तो
जी भर लूटे।
कहे विपक्षी
लूटपाट कर तंत्र सो रहा
छाती कूटे।
भरा बताते 
किन्तु खज़ाना और तिजोरी 
तो खाली है।
*
डाका डालें 
जन के धन पर नेता-अफसर
कौन बचाए?
सेठ-चिकित्सक, न्याय व्यवस्था 
सत्ता चाहे
हो विपक्ष से रहित तंत्र यह
कहे विपक्षी
लूटपाट कर तंत्र सो रहा
भरा दिखाते
किन्तु खज़ाना और तिजोरी 
तो खाली है।
*

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