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रविवार, 18 अक्तूबर 2020

गुरु घनाक्षरी, चित्रगुप्त घनाक्षरी

ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 

आचार्य संजीव वर्मा सलिल'                                                                                                                 कार्यालय ४०१ विजय अपार्टमेंट,   
संस्थापक-संचालक                                                                                                                           नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१

माँ नर्मदा और विश्ववाणी हिंदी के गर्व पुत्र गुरु सक्सेना जी शिक्षक रहते हुए भी और सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी गुरु-धर्म का मर्म ग्रहण कर भावी पीढ़ियों को शिक्षित ही नहीं संस्कारित भी करते रहे हैं। नर्मदा के जीवनदायी जल की तरह गुरु जी अपने शिष्यों के विचार संस्कारित कर उन्हें भाषा, व्याकरण और पिंगल के प्रति सजग-सचेत कर सर्व कल्याणकारी सृजन की ओर उन्मुख कर सके हैं। पाश्चात्य संस्कारहीनता और पूँजीवादी आत्मकेंद्रित तंत्र के काल में 'सत-शिव-सुंदर' की आराधना करने-कराने से बढ़कर उत्तम अन्य अनुष्ठान नहीं हो सकता। 'गुरुकुल काव्य कलश' का प्रकाशन गुरु-शिष्य परंपरा को संजीवित करने के साथ-साथ छांदस शोध-सृजन-प्रकाशन के सारस्वत अनुष्ठान को भी दिशा और गति देगा। 
इस मांगलिक अवसर पर गुरु और शिष्य सभी साधुवाद के पात्र हैं। गुरु जी के सृजन का साक्षी बनना एक सुखद अनुभव हैं। मेरी अनंत शुभकामनायें। गुरु जी 'जीवेम शरद: शतम' का वैदिक जीवन लक्ष्य पूर्ण कर हिंदी के ध्वजा सकल जगत में फहरा सकें। 
                                                                                                                                            संजीव वर्मा 'सलिल'   

गुरु घनाक्षरी :
गरज-गरज घन, बरस-बरस कर, प्रमुदित-पुलकित, कर गुरु वंदन। 
गुरुकुल चल मन, गुरु पग धर मन, गुरु सम गुरु कर, कर यश गायन।
धरणि गगन सह, अनिल अनल मिल, सलिल लहर सह, शतदल चंदन।   
अठ अठ अठ सत, यति गति लय रस, गुरु वर जल-लभ, सरस समापन।  
विधान :
१. प्रति पद - वर्ण ३१, यति ८-८-८-७।
२. प्रतिपद - मात्रा - २८, यति ८-८-८-८। 
३. गणसूत्र - ९ नगण + जगण + लघु या ९ नगण + लघु + भगण। 
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चित्रगुप्त घनाक्षरी 
चित्रगुप्त प्रभु कर्म नियंता, कर्मदेव को पुलक मना मन, निश-दिन साँझ-सकारे।
मात-तात प्रभु धर्म नियंता, धर्म देव को हुलस मना मन, पल-पल क्यों न पुकारे। 
ब्रह्म-विष्णु-हर कर्म करें जो, जन्म दे रहे कर जग पालन, तन घर संग भुला रे। 
स्वामि मात्र प्रभु आत्म नियंता, मर्म सृष्टि का समझ बता मन, प्रभु महिमा नित गा रे।        
विधान :
१. प्रति पद - वर्ण ३२, यति ११-१२-९ ।
२. प्रतिपद - मात्रा - ४४, यति १६-१६-१२। 
३. गणसूत्र - र न भ म ज भ स न न भ ग ग  । 
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