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रविवार, 4 नवंबर 2018

muktak

मुक्तक
*
अपने कंधे पे हँस बिठाता है
नाज़ ऊपर से सौ उठाता है
खुद से आगे बढ़ा जो खुश होता
बाप वह शख्स ही कहाता है
*
जिस से चढ़ता उसीको तोड़ रहा
साथ जिनके था उनको छोड़ रहा
वादा करता तुरत भुलाता है
नेता खुद का बयान मोड़ रहा
*

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