एक गीत
*
नम थी रेत
पाँव के नीचे
*
चली जा रही थी मरुथल में
खुद को भुला खुशी ज्यों कोई
घिर विपदा में खुद को भूली
राह न जाने भटकी खोई
तप्त रेत भी रोक न पाई
चली जा रही
अँखियाँ मीचे
*
नहीं भाग्य से वह लड़ पाई
तन-मन जलता विरह-व्यथा से
छूट रहे थे सभी सहारे
किसको मतलब करुण-कथा से?
स्मृतियों में डूबी-डूबी
मरुथल को
आँसू से सींचे
*
धूल लिए उठते अंधड़ की
करे अदेखी रूप सलोना
उसे न कुछ पाने की चिंता
और न कुछ बाकी थी खोना
चपल तरंगिणी विद्युत् रेखा
तम से ज्यों
उजियार उलीचे
***
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