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रविवार, 4 नवंबर 2018

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एक गीत 
*
नम थी रेत 
पाँव के नीचे
*
चली जा रही थी मरुथल में 
खुद को भुला खुशी ज्यों कोई 
घिर विपदा में खुद को भूली 
राह न जाने भटकी खोई 
तप्त रेत भी रोक न पाई  
चली जा रही 
अँखियाँ मीचे 
*
नहीं भाग्य से वह लड़ पाई
तन-मन जलता विरह-व्यथा से 
छूट रहे थे सभी सहारे 
किसको मतलब करुण-कथा से? 
स्मृतियों में डूबी-डूबी 
मरुथल को 
आँसू से सींचे 
*
धूल लिए उठते अंधड़ की 
करे अदेखी रूप सलोना 
उसे न कुछ पाने की चिंता 
और न कुछ बाकी थी खोना 
चपल तरंगिणी विद्युत् रेखा 
तम से ज्यों 
उजियार उलीचे 
***

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