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शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

कृति चर्चा: संजीव

kruti charcha : sanjiv

धरती से नभ तक: कविता की दस्तक     
चर्चाकार: आचार्य  संजीव 
[कृति विवरण: धरती से नभ तक, कविता संग्रहडॉ. राजकुमारी पाठक, आकार डिमाई, आवरण सजिल्द, बहुरंगी, २००५, पृष्ठ ८०, ८०/-, सारंग प्रकाशन मथुरा]

जब से मनुष्य ने कलकल करती सलिलाओं, कलरव करते पंछियों और गर्जन करते मेघों की ध्वनि में आरोह-अवरोह की अनुभूति कर गुनगुनाना आरम्भ किया तभी से गीत और कविता ने जन्म लिया। भाषा और लिपि के जन्म से सदियों पूर्व धरती से नभ तक और नभ से धरती तक पहुँचनेवाली कविता आज भी मानव की भावाभिव्यक्ति का सर्वसुलभ, सर्वमान्य और सर्वश्रुत माध्यम है। कहन की सहजता, अभिव्यक्ति की स्पष्टता, कथ्य की सार्वजनीनता, लय की सरसता और रूपक की मर्मबेधकता कविता को चारुत्व, लालित्य और ग्राह्यता प्रदान करती हैं। डॉ. राजकुमारी pathakपाठक मुक्तिबोध साहित्य की अध्येता, मीमांसक और शोधक हैं किन्तु उनकी ये कवितायें मुक्तिबोध-चितन की छायामात्र नहीं अपितु स्वतंत्र चिंतन से उपजी रचनाएँ हैं। छंद मुक्त २८ कविताओं का विवेच्य संग्रह कवयित्री की कारयित्री प्रतिभा का परिचायक है। ये रचनाएँ सरस, सहज, स्पष्ट, सुबोध तथा जीवंत हैं।

अच्छा लगता है, बरगद, कल्पना तरंग, समता-समरसता, अमल कमल, लोकमंगल, कीर्ति की सुगंध, आदि में कवयित्री प्रफुल्लता लुटाती चलती है। भुखमरी, भूखा, विवशता, रोटी, मुट्ठी हबर आटा आदि सामाजिक वैषम्यजनित कविताओं पर प्रगतिवाद की छाप है। पार्क जो तालाब बना, लोकोपकारी बरगद, आदि कविताओं में राजकुमारी जी की पर्यावरणीय चिंतायें शब्दित हुई हैं। यदि काँटों को / तुम पालोगे / तो कीर्ति की सुगंध / निश्चय ही पा लोगे (यमक दृष्टव्य)- पृष्ठ ६, और हम अपनी दृढ़ इच्छा, संकल्पशक्ति / सुकर्मोम में अनुरक्ति और गुरुभक्ति से जीतते रहे / जीवन की जंग- पृष्ठ ६८, जैसे अच्छे समय को मुदित हो स्वीकारा / वैसे ही कुसमय को हबी स्वीकारो / समझकर ईश का वरद उपहार मनो न हार- पृष्ठ ६१, गुदगुदी बालू के गद्दे पर / शिशुओं का लोटना / कभी घर बनाना, इस सफलता पर / खिलखिलाना, अच्छा लगता है- पृष्ठ १२, कब सुधरेगी मानसिकता / मेरे देशवासियों की / कब इनकी चेतना होगी पूर्ण स्वस्थ?- पृष्ठ १८, जीवन का सत्य / इच्छाएं रहती हैं / जीवन में नित्य- पृष्ठ २१ आदि पंक्तियाँ साक्षी हैं की राजकुमारी जी की कवितायेँ ताजमहली वाग्विलास या आकाश कुसुम सी काल्पनिक नहीं अपितु आम आदमी के दैनंदिन सरोकारों से जुडी हैं।

इन कविताओं का एक वैशिष्ट्य यह भी है कि ये परदोषदर्शनी वृत्ति का वैचारिक वमन मात्र नहीं हैं, ये विषमताओं और विसंगतियों के समाधान भी सुझाती है।व्यवसाय से प्राध्यापक डॉ. राजकुमारी के लिए यह उनके दैनंदिन दायित्वों के निर्वहन की तरह स्वाभाविक है। यह काव्य संग्रह ‘सामान्य जन का, के लिए और के द्वारा है’ यही इसकी सफलता है।

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