मुक्तिका:
संजीव
.
समय चक्र ने झपट गंसा
मैं दुनिया के साथ हँसा
जिसको दूध पिला-पाला
उसने मौका खोज डंसा
दौड़ लगी जब सत्ता की
जिसको कुर्सी मिली ठँसा
जब तक मिली न चाह रही
मिली तो लगा व्यर्थ फँसा
जीत महाभारत लेता
चका भूमि में मगर धँसा
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संजीव
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समय चक्र ने झपट गंसा
मैं दुनिया के साथ हँसा
जिसको दूध पिला-पाला
उसने मौका खोज डंसा
दौड़ लगी जब सत्ता की
जिसको कुर्सी मिली ठँसा
जब तक मिली न चाह रही
मिली तो लगा व्यर्थ फँसा
जीत महाभारत लेता
चका भूमि में मगर धँसा
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