मुक्तक:
गीता पंडित-संजीव 'सलिल'
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घुटी-घुटी सी श्वासों में, आस-किरण है शेष अभी
उठ जा, चलना मीलों है, थक ना जाना देख अभी
मकड़ी फिर-फिर कोशिश कर, बुन ही लेती जाल सदा-
गिर-उठ-बढ़कर तुझको है, मंज़िल पाना शेष अभी
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गीता पंडित-संजीव 'सलिल'
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घुटी-घुटी सी श्वासों में, आस-किरण है शेष अभी
उठ जा, चलना मीलों है, थक ना जाना देख अभी
मकड़ी फिर-फिर कोशिश कर, बुन ही लेती जाल सदा-
गिर-उठ-बढ़कर तुझको है, मंज़िल पाना शेष अभी
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1 टिप्पणी:
प्रेरणा से भरपूर!
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