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शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

नवगीत: संजीव

navgeet:  sanjiv

नवगीत:
विश्वासों का
सूर्य न दिखता
.
बहुमत छल-दल बादल का
घाय है स्वर मादल का
जनमत हुआ अवैधानिक
सही फैसला शासक का
जनगण-मन में
क्रोध सुलगता
.
आन्दोलन का दावानल
जन-धरने का बड़वानल
जन-नायक लाचार हुआ
चेले कुर्सी हित पागल
घातक लावा
उबल-उफनता
.
चाहें खेत, नहीं दाना
उद्योगों हित दीवाना
है दलाल हर जन-नेता
सेठों से धन है पाना
जमा विदेशों में
है रखता
२९.१.२०१५
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