२०१४ का अंतिम नवगीत:
कब आया, कब गया
साल यह
.
रोजी-रोटी रहे खोजते
बीत गया
जीवन का घट भरते-भरते
रीत गया
रो-रो थक, फिर हँसा
साल यह
.
आये अच्छे दिन कब कैसे?
खोज रहे
मतदाता-हित नेतागण को
भोज रहे
छल-बल कर ढल गया
साल यह
.
मत रो रोना, चैन न खोना
धीरज धर
सुख-दुःख साथी, धूप-छाँव सम
निशि-वासर
सपना बनकर पला
साल यह
.
३१.१२. २०१४, २३.५५
कब आया, कब गया
साल यह
.
रोजी-रोटी रहे खोजते
बीत गया
जीवन का घट भरते-भरते
रीत गया
रो-रो थक, फिर हँसा
साल यह
.
आये अच्छे दिन कब कैसे?
खोज रहे
मतदाता-हित नेतागण को
भोज रहे
छल-बल कर ढल गया
साल यह
.
मत रो रोना, चैन न खोना
धीरज धर
सुख-दुःख साथी, धूप-छाँव सम
निशि-वासर
सपना बनकर पला
साल यह
.
३१.१२. २०१४, २३.५५
3 टिप्पणियां:
Shikha Gupta
shikhagupta2111@gmail.com
बहुत सुंदर नव-गीत …
शब्द व्यंजना
shabdvyanjana@gmail.com
www.shabdvyanjana.com
आपके ये दो नवगीत पत्रिका के जनवरी अंक में सम्मिलित कर रहे हैं.
अवश्यं कीजिए. धन्यवाद। मेरा पता: संजीव वर्मा 'सलिल', समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१ , ९४२५१ ८३२४४
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